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Year-Ender 2022: 'AAP' के लिए बड़ी उपलब्धियों और चुनौतियों से भरा रहा यह साल

नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली की सत्ता में बीते आठ वर्ष से काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए 2022 एक यादगार वर्ष के तौर पर याद किया जाएगा। साल की शुरुआत में दिल्ली के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो अंतिम महीने में गुजरात चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। कुल मिलाकर इस वर्ष में आम आदमी पार्टी के कई सपने साकार हुए।

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26 नवम्बर 2012 को अस्तित्व में आई ‘AAP’ पार्टी ने स्थापना के दसवें वर्ष में ही राष्ट्रीय पार्टी बनने का खिताब हासिल कर लिया, इस लिहाज से पार्टी के लिए वर्ष 2022 यादगार बन गया है। ‘आप’ पार्टी अब तक मुफ्त बिजली, पानी, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य मॉडल के बल पर आगे बढ़ रही है। लेकिन पंजाब को छोड़ गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा विधानसभा के चुनाव परिणाम ने बता दिया ये मुद्दे लोगों के बीच उतने असरकारी साबित नहीं हुए जितनी कि इसकी अपेक्षा की जा रही थी। गुजरात विधानसभा चुनाव में बड़े दावों के बावजूद आम आदमी पार्टी पांच सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई।

उत्तराखंड और हिमाचल के चुनाव परिणामों ने बता दिया कि उसके पास लोगों का दिल जीतने की कोई बड़ी वजह नहीं है। हिमाचल प्रदेश में पार्टी की पूरी यूनिट भाजपा में शामिल हो गई तो उत्तराखंड में उसके मुख्यमंत्री पद के चेहरे रहे पूर्व कर्नल अजय कोठियाल भी भाजपा में शामिल हो गए। इससे जाहिर होता है कि यदि पार्टी का कोई सामाजिक आधार होता तो इतनी बड़ी मात्रा में नेता पाला नहीं बदलते।

सत्येंद्र जैन के जेल और शराब नीति में घोटाले से बिगड़ी छवि

आम आदमी पार्टी को इस साल दिल्ली सरकार में मंत्री सत्येंद्र जैन के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल जाने से एक अच्छा खासा डेंट लगा। पार्टी इससे उबरने के प्रयास ही कर रही थी कि गत वर्ष दिल्ली सरकार द्वारा लागू नई शराब नीति में भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई ने मुकदमा दर्ज करते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तक को आरोपित बना दिया। इस घोटाले में कइयों की गिरफ्तारी होने से पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंचा है।

वहीं नगर निगम चुनाव में यह बात भी सामने आई कि मुस्लिम मतदाता दोबारा कांग्रेस की ओर रुख करने लगे हैं। गुजरात व हिमाचल विधानसभा की तैयारियों में जुटी पार्टी के नेता अपने आप को हिंदू नेता के रूप में साबित करने में जुटे रहे। गुजरात चुनाव में बिलकिस बानो प्रकरण पर भी पार्टी का रुख स्पष्ट नहीं रहा। इन्हीं कारणों से मुसलमान मतदाता ‘आप’ पार्टी से दूर हो गए। चूंकि वर्ष 2013 में कांग्रेस के दलित-मुसलमान मतदाता ही केजरीवाल के साथ जुड़कर उनकी ताकत बन गए थे।

साल के अंत में आम आदमी पार्टी ने देश की सबसे बड़े स्थानीय निकाय दिल्ली नगर निगम का चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ जीत लिया। 250 वार्ड वाले नगर निगम में पार्टी ने 134 सीटें हासिल कीं, जबकि 15 साल से सत्ता में रही भाजपा केवल 104 सीटों पर ही सिमट गई। इससे दिल्ली पर आम आदमी पार्टी की पकड़ जरूर मजबूर हुई है।

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