नई दिल्लीः शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्वरूप मां कात्यायनी का पूजन जाता है। देवीस्थलों व मंदिरों में भोर से ही भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं और श्रद्धाभाव से पूजा-आराधना करते हैं। नवरात्र में मां की आराधना करने से कष्टों का नाश होता है। मां भगवती के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी की उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इससे रोग, शोक, संताप और भय भी नष्ट हो जाते हैं। शक्ति स्वरूप मां कात्यायनी की सच्चे मन से आराधना करने वाले भक्तों के सभी पाप माफ कर देती हैं। वहीं एक मान्यता के अनुसार किसी का विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी है तो उसे शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके अलावा नवरात्र के छठे दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। कहा जाता है कि परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से मां के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
विवाह बाधा निवारण
देवी कात्यायनी का तंत्र में अति महत्व है, माना जाता है कि विवाह बाधा निवारण में इनकी साधना चमत्कारिक लाभदायक सिद्ध होती है। मान्यता है कि जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो, अथवा विवाह बाधा आ रही हो, ग्रह बाधा हो, उन्हें कात्यायनी यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर, उस पर निश्चित दिनों तक निश्चित संख्या में कात्यायनी देवी के मंत्र का जप अति लाभदायक होता है और विवाह बाधा का निराकरण हो शीघ्र विवाह हो जाता है। वहीं जो यह साधना खुद न कर सके वे अच्छे कर्मकांडी से इसका अनुष्ठान करवाकर लाभ उठा सकते हैं। इससे उन्हें मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है।
देवी कात्यायनी का मंत्र
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
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ऐसे करनी चाहिए मां की पूजा अर्चना
नवरात्रों के छठे दिन मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए, फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं, उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं। मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है। देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए। वहीं श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।
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