World Water Day दुनिया भर में जल संरक्षण और रखरखाव के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित 'पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन' में की गई थी। संयुक्त राष्ट्र की उसी घोषणा के बाद पहला विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया गया। यह दिन पानी के महत्व को जानने, समय रहते जल संरक्षण के प्रति सचेत होने और पानी बचाने का संकल्प लेने का दिन है।
दरअसल, पृथ्वी पर मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में जल सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और वर्तमान में पृथ्वी पर पेयजल की उपलब्धता से संबंधित आंकड़ों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक-एक बूंद को बचाना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। भारत में भी पानी की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है, जिसका अंदाजा हाल ही में बेंगलुरु जल संकट से आसानी से लगाया जा सकता है।
केंद्र ने चलाया जल शक्ति अभियान
ऐसे में विश्व जल दिवस का महत्व हमारे लिए कई गुना बढ़ जाता है। देश में हर साल जाने-अनजाने करोड़ों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। इसी वजह से कुछ साल पहले 22 मार्च को विश्व जल दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'जल शक्ति अभियान: कैच द रेन' की शुरुआत की थी और उस अभियान के तहत सभी शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन का काम किया गया था। साथ ही देश के ग्रामीण क्षेत्र में नारा था 'जहां भी गिरे, जब भी गिरे, वर्षा का पानी इकट्ठा करें।'
एक ओर जहां खासकर गर्मी के मौसम में करोड़ों लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते हैं, वहीं दूसरी ओर बरसात के मौसम में वर्षा जल के संरक्षण और संचयन की कमी के कारण हर साल लाखों गैलन पानी बर्बाद हो जाता है। अगर इस पानी को संरक्षित किया जाए तो देश की एक बड़ी आबादी की प्यास इस पानी से बुझाई जा सकती है, लेकिन चिंता की बात यह है कि अभी तक देश में वर्षा जल संरक्षण को लेकर कोई जागरूकता नहीं है।
पर्यावरण संरक्षण पर हिंदी अकादमी के सहयोग से प्रकाशित पुस्तक 'प्रदूषण मुक्त सांसें' के अनुसार भारत में बढ़ते जल संकट का एक बड़ा कारण यह है कि हम बहुत कम मात्रा में वर्षा जल का संरक्षण कर पाते हैं। देश को हर साल लगभग तीन हजार अरब घन मीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि भारत में वर्षा की मात्रा लगभग चार हजार अरब घन मीटर है, लेकिन वर्षा जल संग्रहण की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण वर्षा जल की न्यूनतम मात्रा ही एकत्र करना संभव है।
हर साल बढ़ेगी मांग
एक ओर इजराइल जैसे देश में दस सेंटीमीटर की औसत वर्षा के बावजूद इतना अनाज पैदा हो जाता है कि वह उसका निर्यात कर पाता है, वहीं दूसरी ओर भारत में पचास सेंटीमीटर से अधिक की औसत वर्षा के बावजूद भी इतना अनाज पैदा नहीं होता कि वह उसका निर्यात कर पाए। दरअसल, नदियों और तालाबों जैसे पवित्र माने जाने वाले जल स्रोतों को बचाने में लापरवाही, भूमिगत जल में प्रदूषण की बढ़ती मात्रा और वर्षा जल संचयन का उचित प्रबंधन न होना भारत में जल संकट गहराने का मुख्य कारण बन रहा है।
देश में आज के आधुनिक युग में भी कई इलाकों में लोगों को दूर-दूर से पानी लाना पड़ता है या फिर कामचलाऊ पानी के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता है। यह चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आया है कि कुछ इलाकों में महिलाओं को पीने का पानी लाने के लिए हर दिन औसतन छह किलोमीटर से ज्यादा का सफर पैदल तय करना पड़ता है। हालांकि सरकार ने जल शक्ति अभियान के तहत हर घर तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 2030 तक देश में पानी की जरूरत दोगुनी हो जाएगी और 2050 तक चार गुना बढ़ जाएगी और जल संकट पैदा हो जाएगा। इससे देश के सकल घरेलू उत्पाद पर छह फीसदी तक का असर पड़ सकता है।
भारत में पानी की कमी का संकट लगातार कितना गहराता जा रहा है इसका अंदाजा सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी से भी लगाया जा सकता है। 'प्रदूषण मुक्त सांसें' पुस्तक के अनुसार, भूमिगत जल के अंधाधुंध दोहन का नतीजा है कि कई शहरों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। नीति आयोग ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में देश के 21 बड़े शहरों में भूजल स्तर शून्य तक पहुंच सकता है।
तेजी से गिर रहा भूजल स्तर
नदियों और जलाशयों के उचित रख-रखाव का अभाव और उनका अतिक्रमण भी गहराते जल संकट के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। देश की अधिकांश आबादी दूषित पेयजल पीने को मजबूर है। भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के बाद से भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है और यदि इसी गति से भूजल स्तर गिरता रहा, तो बहुत गहराई से निकाला जाने वाला पानी पीने लायक नहीं रहेगा। पीना। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इसमें आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से बीमारियाँ बढ़ेंगी। देश भर में कृषि, उद्योग और दैनिक गतिविधियों की लगभग अस्सी प्रतिशत ज़रूरतें भूमि पर और उसके भीतर उपलब्ध पानी से पूरी होती हैं।
हालाँकि, जल संकट से छुटकारा पाने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि पानी के सीमित और उचित उपयोग के लिए जागरूकता बढ़ाने और वर्षा जल के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करके लोगों में पानी बचाने की आदत विकसित करने का प्रयास किया जाए। हर संभव प्रयास करना चाहिए। वर्षा जल संचयन के लिए नदियों और जलाशयों की स्थिति में सुधार करना, उनकी जल भंडारण क्षमता बढ़ाना और भूजल स्तर बढ़ाने वाले स्थानों की मरम्मत करना बहुत जरूरी है।
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भारत में पेयजल संकट को हल करने के लिए 'जल शक्ति मंत्रालय' का गठन किया गया, जिसके तहत सभी घरों में नल का पानी उपलब्ध कराने के लिए व्यापक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि अगर भूजल स्तर इसी तरह बना रहे ऐसे ही पानी का संकट गहराता गया तो इन नलों से पानी कहां से आएगा और हर घर तक कैसे पहुंचेगा? इसलिए यह बहुत जरूरी है कि प्रत्येक नागरिक को पानी के महत्व से अवगत कराया जाए और बताया जाए कि पानी के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है।
योगेश कुमार गोयल