नई दिल्लीः सावन माह भगवान महादेव को अतिप्रिय है। इस माह भगवान भोलेनाथ की भक्ति करने से सभी मनोवांछित फल प्राप्त होंगे। सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की दीर्घायु, अखंड सौभाग्य और सफल वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत करती हैं और विधि-विधान से पूजा आराधना भी करती है। इसके साथ ही कुंवारी कन्याएं भी हरियाली तीज के दिन व्रत कर सफल जीवन और मनवांछित वर के लिए भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करती हैं। हरियाली तीज के दिन व्रत और पूजन के साथ ही कथा का भी विशेष महत्व होता है।
वरियान और रवि योग में मनायी जा रही हरियाली तीज
हरियाली तीज पर वरियान और रवि योग का बेहद शुभ संयोग बन रहा है। वरियान योग में कोई भी कार्य शुरू करने में सफलता अवष्य ही मिलती है। रवि योग को सूर्य का अभीष्ठ प्राप्त होने से बेहद प्रभावशाली योग माना जाता है।
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हरियाली तीज की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, पर्वतराज हिमालय के घर में माता सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। माता पार्वती बचपन से शिव की अनन्य भक्त थीं और उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा रखती थीं। समय के साथ ही माता पार्वती जब विवाह योग्य हुईं तो पिता हिमालय ने उनके लिए वर तलाशना शुरू किया। एक दिन नारद मुनि हिमालय के पास पहुंचे और तो राजा हिमालय ने अपनी मन की व्यथा उनसे कहीं। तब नारद मुनि ने वर के रूप में भगवान विष्णु के नाम सुझाया। जोकि हिमालय को पहले से ही बेहद पसंद थे। दामाद रूप में भगवान विष्णु का नाम सुझाये जाने पर हिमालय बेहद प्रसन्न हुए और नारद मुनि को तुरंत रजामंदी दे दी। परंतु जब बात माता पार्वती को पता चली तो वह बेहद चिंतित हो गईं क्योंकि वह भगवान शिव को ही अपना पति मानती थीं। इसलिए उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जंगल में जाकर एकांत में तपस्या करने का संकल्प लिया और अपने महल से चली गयीं। जंगल में जाकर उन्होंने रेत का शिवलिंग बनाया और कई वर्षो तक कठोर तपस्या की। माता पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया। जब राजा हिमालय को बेटी पार्वती के मन की बात का संज्ञान हुआ तो वह भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के लिए सहमत हो गये। जिसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का भव्य विवाह संपन्न हुआ। तभी से इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।
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