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भगवान भोलेनाथ को क्यों अर्पित नहीं होता तुलसी, केतकी का फूल

bholenath

नई दिल्लीः इसी माह 11 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। भगवान शिव को भोलेनाथ उनके भोले स्वभाव की वजह से कहा जाता है। क्योंकि भगवान शिव अपने भक्तों की थोड़ी सी भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसके सभी कष्टों को हर लेते हैं। भगवान शिव की पूजा के भी नियम भी बहुत ही सरल है। भगवान शिव को सफेद फूल बेहद पसंद हैं। इसके साथ ही उन्हें बेल पत्र, धतूरा, भस्म, भांग के साथ ही दूध और इससे बना भोग ही चढ़ाया जाता है। कभी भी भगवान शिव की पूजा करते समय तुलसी और केतकी के फूल नही चढ़ाये जाते हैं। इसके पीछे भी कारण हैं कि आखिर भगवान भोलेनाथ को क्यों केतकी के फूल और तुलसी नही अर्पित करनी चाहिए।

तुलसी अपने पूर्व जन्म में राक्षस जालंधर की पत्नी थी और उनका नाम वृंदा था। जालंधर अपनी पत्नी वृंदा पर काफी अत्याचार करता था, लेकिन इसके बावजूद भी वृंदा अति पतिव्रता थी। जिसके चलते राक्षस जालंधर का कोई भी कुछ नही कर सकता था। जालंधर के अत्याचारों को खत्म करने के लिए भगवान शिव ने भगवान श्रीहरि से आग्रह किया। जिस पर भगवान श्रीहरि ने जालंधर का रूप धर वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग कर दिया और जालंधर का अंत किया। किंतु जब यह बात वृंदा को पता चली तो वह भगवान श्रीहरि पर अति क्रोधित हुई और भगवान को श्राप दे दिया कि वह पत्थर के बन जाएं। इसके बाद भगवान श्रीहरि ने कहा कि मैनें तुमको जालंधर के अत्याचारों से बचाने के लिए ऐसा किया और वृंदा को श्राप दे दिया कि तुम लकड़ी की हो जाओं। जिसके बाद वृंदा तुलसी का पौधा बन गयी। शापित होने के कारण भगवान शिव को तुलसी अर्पित नही की जाती है।

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इसी तरह भगवान शिव को केतकी का फूल भी नही चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा में कौन बड़ा है इस पर बहस होने लगी। दोनों इस बात का निर्णय करने के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। तो भगवान शिव ने एक शिवलिंग प्रकट कर कहा कि जो भी इस शिवलिंग के आदि और अंत का पता लगा लेगा। वह ही बड़ा है। यह सुनते ही भगवान विष्णु शिवलिंग के ऊपर की ओर चले गये। लेकिन काफी ऊपर जाने के बाद भी वह उसके आदि-अंत का पता नही कर सके और लौट आए। वहीं भगवान ब्रह्मा नीचे की ओर गये। नीचे जाते समय उनकी नजर केतकी के फूल पर पड़ी जो उनसे साथ चल रहा था। भगवान ब्रह्मा ने केतकी के फूल से झूठ बोलने के लिए हामी भरवा ली। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव के समक्ष आकर झूठ बोल दिया। लेकिन दोनों यह भूल गये थे कि भगवान शिव को त्रिकालदर्शी भी कहा जाता है। भगवान शिव को यह पता चल गया कि वह दोनों झूठ बोल रहे हैं। इस पर भगवान ने क्रोधित होकर ब्रह्मा के झूठ बोलने वाले मस्तिष्क को काट दिया। वहीं केतकी के फूल को खुद के स्पर्श से भी वंचित कर दिया। जिसके चलते भगवान शिव को केतकी का फूल अर्पण नही किया जाता है।