विशेष फीचर्ड

परंपरागत खेती से किसानों का क्यों हो रहा मोहभंग ?

Farmer. (File Photo: IANS)

लखनऊः पश्चिमी यूपी में मक्का सर्दियों में भी तैयार किया जा रहा है। यहां के किसानों की आमदनी भी पूर्वांचल के किसानों से ज्यादा है, इसलिए अब लखनऊ और आस-पास के किसान मोटा अनाज उपजाने के लिए इरादे मजबूत कर चुके हैं।
किसानों का मानना है कि यह अब बेहद मुनाफे वाला है। कभी मक्का की खेती बारिश में शुरू होती थी और सर्दी के शुरुआती माह तक रहती थी। इसे लोग मोटे अनाज के रूप में जानते थे। इसकी पैदावार भले ही कम थी, लेकिन ज्यादातर किसान इसे बोते जरूर थे। अब यह फास्ट फूड के रूप में कई तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है। उपज बढ़ गई, लेकिन किसान इसे कम बो रहे हैं, लिहाजा यह महंगा होता जा रहा है। तमाम जागरूक किसानों का रुझान है कि वह आने वाली गर्मी में बारिश से पहले ही मक्का बो देंगे। इसके लिए किसान गेहूं पकने का इंतजार कर रहे हैं। हम अगर मक्के की बात करें तो यह मैदानी क्षेत्रों में ज्यादा उगाया जाता है। इसके लिए मिट्टी कोई मायने नहीं रखती है। हर मिट्टी में यह खूब खिलता है। आज यूपी में मक्के के पैदावार की नई आवक काफी ज्यादा मात्रा में अपना नया स्थान प्राप्त कर चुकी है। जिन राज्यों में मक्के की खेती की जाती है, उनमें उत्तर प्रदेश का भी नाम आता है। कई राज्यों में यह आज भी काफी मात्रा में उगाया जाता है।

बाजार में हैं कई किस्म

मक्के की बुवाई के लिए दो प्रकार की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती है। इनमें सामान्य प्रजाति के अंतर्गत नवीन स्त्रेता, कंचना, शाक्ति-1 आजाद उत्तम, नव ज्योति, गौरव, प्रगति, आदि सभी संकुल और संकर प्रजाति में गंगा 2, गंगा 11, सरताज, पसा अगेती के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं।

भूमि चयन प्रकृति दे रही साथ

मक्के की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में होती है। इसके लिए ध्यान रखने योग्य है कि दोमट मिट्टी या बलुई मटियार वायु संचार और पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए। खारे पानी की समस्या होने पर मक्के की बिजाई को मेड़ के ऊपर करने की बजाय साइड में करें। वैसे तो खेत की तैयारी को जून के महीने में शुरू किया जाता था, लेकिन अब किसान दो फसलें लेने के लिए गेहूं कटते ही इसे बो देने की तैयारी में हैं। किसानों का तर्क है कि हर सीजन में मक्का देखा जा रहा है। यह पहाड़ों में भी लहलहा रहा है। अगर आपका खेत खाली है और मक्का बोना चाह रहे हैं तो खेत की जुताई करना लाभदायक है। 15-20 सेमी मिट्टी पलटने से इसमें ज्यादा उपज हो सकती है। इसका फायदा यह है कि इसके सहारे कीट, बीमारियों की रोकथाम को रोकने में सहायता मिलती है। बीज बोने वाले दिनों में ज्यादा दिक्कत भी नहीं होगी।

बीजों का करें चुनाव

मक्के की बुआई वर्ष भर कर सकते हैं। खरीफ, रबी, जायद तीनों में यह उपजाया न जाता तो बाजारों में भुट्टे देखने को भी न मिलते। ध्यान रखने योग्य है कि खरीफ में बुवाई मानसून पर निर्भर करती है। अधिकतर राज्यों में जहां सिंचाई सुविधा हो, वहां पर खरीफ में बुआई का सही समय मध्य जून से जुलाई तक रहता है।

यह भी पढ़ेंः-राज्यपाल बोले- बंगाल में कानून व्यवस्था संविधान से परे, आपातकाल जैसे हालात

भंडारण से ज्यादा दें बिक्री पर ध्यान

भुट्टटों को तैयार होने पर आप कोशिश करें कि दाने में दूध होते ही बेच लें। इससे आपको ज्यादा मुनाफा होगा। पहले किसान परंपरागत खेती करता था। इसमें भुट्टों के बेचने के पहले इसे धूप में सुखाया जाता था। दानों में 13-14 फीसदी तक की नमी रहती थी। यह काम वह करते थे, जो दाने का भंडारण करते थे, लेकिन अब यह फैशन में शुमार हो चुका है। पूरे देश में गांव हो या शहर भुट्टा हर सीजन में और महंगा हो रहा है। किसान अब परंपरागत खेती के नियम को तोड़ रहे हैं। कच्चा भुट्टा बेचने से पकने तक रखवाली नहीं करनी होगी। भंडारण और दाने निकालने की मेहनत नहीं करनी होगी, साथ ही यह मुनाफा भी ज्यादा देता है।