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उपेक्षित होती जा रही ‘सफेद सोने’ की खेती

Cotton field plantation texture background

आईपीके, लखनऊः कपास बहुत ही महत्वपूर्ण रेशे वाली फसल है। यह देश के खेती-बाड़ी क्षेत्रों के वित्तीय विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसे सफेद सोना भी कहा जाता है। कपड़ा उद्योग को प्रारंभिक कच्चा माल उपलब्ध करवाने वाली मददगार फसल होने के नाते इसका उत्पादन हमेशा के लिए जरूरी है। उत्पादन की दृष्टि से चीन के बाद भारत का स्थान है, लेकिन इसका अब अनादर होने लगा है। यह करीब एक दशक पहले गांवों की क्यारियों में बोया जाता था और सालों साल अपनी मौजूदगी का अहसास कराता था। दीपावली में बाती से लेकर सर्दी में रजाई बनाने तक की रुई इसी से मिलती थी। अब इसकी जगह अन्य वस्तुएं ले रही हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कपास भारत के 60 लाख किसानों को रोजी-रोटी उपलब्ध करवाती है। इसके व्यापार से लगभग 40 से 50 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इसका उत्पादन करने में किसानों को ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं होती है। यूपी में कपास की खेती मुख्य तौर पर पश्चिमी जिलों में की जाती है। आगरा, मथुरा और अलीगढ़ में आज भी इसका उत्पादन किया जा रहा है। सच्चाई यह है कि उतना उत्पादन नहीं हो रहा है, जो दस साल पहले होता था।

5 हजार रुपये क्विंटल होती है कमाई

कपास कीमती फसलों में माना जाता रहा है। यह एक क्विंटल में किसान को 5 हजार रुपये कीमत भी दिलाता रहा है। गर्मी की छुट्टी में बच्चों और महिलाओं का काम इसके बीज निकालने का होता था। बड़ी आसानी से खाली समय का उपयोग कर लिया जाता था और आर्थिक समस्या का निदान भी होता रहा है।

विलुप्त हो रही देसी रुई

गर्म रुई के लिए देसी कपास ही खास रहा है। गांवों में लोग इसे अपनी क्यारी का हिस्सा बनाकर रखते थे। जब कभी किसी को चोट लग जाती थी तो पट्टी के लिए वह पहले कपास के पौधे की ओर भागता था। इसकी रुई तुरंत काटन के रूप में इस्तेमाल आ जाती थी। सालों-साल जिस घर में दीये जलाए जाते थे, उनमें यही कपास की बाती काम आती थी। चार पौधे इतनी रुई का उत्पादन कर देते हैं कि साल भर में दो रजाई भर जाती थी। कभी भी तकिए के लिए इसे खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती थी।

आधुनिकता के दौर में बदल रहा रुझान

आज लोग शहरों की ओर खिंचे जा रहे हैं। ऐसे में घर का बगीचा या क्यारी संभालने वाले नहीं रहे। इससे कपास का उत्पादन कम होता जा रहा है। दूसरी ओर खेती के तमाम और कमाई के तरीके आ गए हैं। आधुनिक खेती में अमेरिका भारत से दस गुना ज्यादा वाला कपास ले आया है। हमारे देश के कपास का बीज भी उतना फायदेमंद नहीं है। इसके अलावा काटन के धागे, चिड़ियों के पंख शिल्क रेशम की खपत ज्यादा हो गई है।