फीचर्ड बिजनेस

ममता राज में खस्ताहाल हुआ बंगाल, हर शख्स पर 60 हजार का कर्ज, एक्सपर्ट ने जताई ये चिंता

economy of west bengal
economy of west bengal कोलकाताः पश्चिम बंगाल में पिछले 11 वर्षों से तृणमूल कांग्रेस के शासन में राज्य की वित्तीय हालत लगातार खस्ताहाल हुई है। अर्थव्यवस्था किस तरह से बेपटरी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार ने इतना अधिक कर्ज ले रखा है कि राज्य के हर व्यक्ति पर 60 हजार रुपये का कर्ज है। करीब नौ करोड़ की आबादी वाले इस राज्य पर फिलहाल 5.86 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, जो 2011 से पहले के वाममोर्चा सरकार के 1.97 लाख करोड़ के मुकाबले करीब तीन गुना है।
क्या मानना है एक्सपर्ट का
आर्थिक एक्सपर्ट का मानना है कि आने वाले समय में राज्य की अर्थव्यवस्था और अधिक खस्ताहाल होगी। चिंता वाली बात यह है कि इस बदहाली में सुधार के बजाय राज्य सरकार और अधिक कर्ज जुटा रही है जिससे अर्थव्यवस्था और अधिक बिगड़ेगी। पिछले हफ्ते बुधवार को राज्य विधानसभा में वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया गया, जिसमें 79 हजार करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने का प्रस्ताव किया गया है। जबकि सरकार ने पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 75 हजार करोड़ रुपए का कर्ज उठाया था। ये भी पढ़ें..अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति की हालत नाजुक, परिवार के साथ बिताएंगे आखिरी समय मशहूर अर्थशास्त्री एवं चार्टर्ड अकाउंटेंट जय नारायण गुप्ता कहा कि राज्य के वित्तीय हालात के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 1965 के बाद से पश्चिम बंगाल की वित्तीय स्थिति लगातार बिगड़ती गई है। 1965 से पहले बंगाल पूरे देश की सर्वश्रेष्ठ अर्थव्यवस्था वाला राज्य था और आज यह छठे स्थान पर है। चिंता वाली बात यह है कि राज्य सरकार यह बात सीना ठोक कर कहती है। सीएम ममता बनर्जी के कालीघाट स्थित आवास से थोड़ी ही दूरी पर मौजूद कमैक स्ट्रीट में वेस्ट बंगाल इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑथोरिटी का दफ्तर है। यहां राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री का फोटो लगाकर इस बात का जिक्र किया गया है कि बंगाल देश का छठा जीडीपी वाला राज्य है। यह चिंता वाली बात होनी चाहिए थी, लेकिन इसे लेकर राज्य सरकार को कोई चिंता नहीं।
मामता सरकार नहीं उठा रही ठोस कदम
पश्चिम बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (WBSEDCL) के ऑडिटर जय नारायण गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती है और न ही कोई नीति बनाती है।। आम लोग इस बात को समझते नहीं हैं और लगातार राज्य कर्ज तले डूबा जा रहा है। केंद्र सरकार राज्यों को फंड देती है जिससे कई सारी योजनाओं का क्रियान्वयन होता है। इससे कर्ज को कम करने में मदद मिलती है लेकिन राज्य सरकार केंद्रीय योजनाओं का क्रियान्वयन ही नहीं करती। गुप्ता ने कहा, "पिछले चार सालों से हम लोग ऑडिट करते हैं। राज्य के सीमांचल क्षेत्र जहां अल्पसंख्यक जनसंख्या सबसे ज्यादा है और बांग्लादेश सीमा से सटे हैं वहां 95 फीसदी बिलिंग नहीं होती।" दरअसल यहां लोग सीना ठोक कर बिजली चोरी करते है। जबकि राज्य सरकार सब जानती है, लेकिन किसी की बिजली नहीं काटी जाती है। तभी उन्हें मुफ्त बिजली मिलती है। उन्हें मुफ्त में बिजली दी जा रही है। हर साल 24 करोड़ का सेल बिजली कंपनी करती है यानी सरकारी बिजली 24 करोड़ की इस्तेमाल की जाती है और इससे अधिक का नुकसान हो रहा है। इसे दुरुस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता। सरकार की कोई भी नीति अर्थव्यवस्था सुधार के लिए नहीं है। पश्चिम बंगाल की खस्ताहाली सबसे बडी वजह आबादी दरअसल पश्चिम बंगाल में वित्तीय खस्ताहाली की दूसरी सबसे बडी वजह यहां कि आबादी है। यहां आबादी तो ज्यादा पर पर उत्पदन शून्य है। जबकि ज्यादा जनखंख्या होने की कारण यहां खपत अधिक हो रही है इसलिए थोड़ी बहुत अर्थव्यवस्था बची हुई है। अगर खपत भी कम हो जाए तो यहां की अर्थव्यवस्था पूरे देश में सबसे पीछे होगी। मशहूर अर्थशास्त्री अभिजीत राय चौधरी ने कर्ज के बोझ पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अगर इसे जल्द कम नहीं किया गया तो भावी पीढ़ी पर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जाएगा। इससे राज्य की वित्तीय स्थिति और बिगड़ेगी। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)ॉ