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जिला पंचायत की सीट पर कब्जा करने को सपा में छिड़ी जंग

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लखनऊः उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में जिला पंचायत की कुर्सी के लिए समाजवादी पार्टी में महाभारत छिड़ा हुआ है। सपा मुखिया अखिलेश यादव के लाख प्रयास के बाद भी यह महाभारत थमने का नाम नहीं ले रहा है। नतीजतन दोनों पक्ष अपनी अपनी ताकत मजबूत करने में जुटे हुए हैं।

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद अब समाजवादी पार्टी में जिला पंचायत की कुर्सी के लिए राजेपुर के पूर्व ब्लाक प्रमुख सुबोध यादव और सपा के पूर्व मंत्री नरेंद्र यादव के पुत्र सचिन उर्फ लव यादव के बीच जिला पंचायत की सीट हथियाने के लिए यहां जंग शुरू हो गई है। इस लड़ाई को विराम देने के लिए सपा के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दोनों पक्षों को लखनऊ बुला चुके हैं। वह एक पक्ष को विधानसभा चुनाव लड़ने का आश्वासन भी दे चुके हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा यह बात सोच कर सचिन यादव अपना फैसला बदलने को तैयार नहीं है। जिला पंचायत फर्रुखाबाद की सीट पर तकरीबन 32 सदस्य अध्यक्ष के भाग्य का फैसला करेंगे। जिनमें 23 सदस्यों के प्रमाण पत्र राजेपुर के पूर्व ब्लाक प्रमुख एवं सपा मुखिया अखिलेश यादव के करीबी सुबोध यादव के पास मौजूद हैं। दूसरी तरफ सचिन उर्फ लव यादव अपने साथ इन्हीं सदस्यों को लिए महानगरों की सैर करा रहे हैं। जिनके जीत के प्रमाण पत्र सुबोध यादव अपने पास रखे हुए हैं। अध्यक्ष पद के लिए समाजवादी पार्टी में छिड़ी जंग किस मुकाम पर पहुंचेगी यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन मौजूदा समय में दोनों पक्ष अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में जुटे हुए हैं।

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सबसे खास बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह घराने की बहू मोनिका यादव अपने भाई लव यादव के समर्थन में पूरी तरह जुटी हुई है। फिलहाल यह घमासान तेज हो गया है और दोनों पक्ष जिला पंचायत की सीट पर कब्जा करने के लिए बेताब हैं। बताते चलें कि, अलीगंज के पूर्व विधायक रामेश्वर सिंह यादव वर्ष 2014 में फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में सपा के तत्कालीन होमगार्ड मंत्री नरेंद्र सिंह यादव के पुत्र सचिन उर्फ लव यादव ने भी ताल ठोक दी थी। जिसको लेकर सपा के दो बड़े गुट आमने-सामने आ गए। नतीजा यह हुआ कि रामेश्वर यादव और सचिन यादव दोनों चुनाव हार गए। वर्ष 2014 से चली आ रही राजनीतिक कसम-कस जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए फिर खुलकर सामने आ गई। जिसको लेकर सपा के पूर्व मुख्यमंत्री पूरी तरह से इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनके प्रयास विफल होता दिख रहा है।