नई दिल्लीः हनुमान जी कलयुग में जागृत देव हैं। हनुमान जी की कृपा से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल को हनुमान जयंती मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि सुबह 02.25 से शुरू होगी, जो रात्रि 12.24 मिनट पर समाप्त होगी। इसी दिन रवि योग, हस्त व चित्रा नक्षत्र भी रहेगा। रवि योग सुबह 05.55 से शुरू होगा, जो रात्रि 08.40 तक रहेगा, उसके बाद चित्रा नक्षत्र शुरू होगा। हस्त नक्षत्र सुबह 08.40 बजे तक ही रहेगा। इस साल हनुमान जन्मोत्सव कई शुभ योगों और शुभ मुहूर्त में मनाई जाएगी। मान्यता है कि हनुमान जयंती के दिन विधि विधान से बजरंगबली की पूजा अर्चना करने से सभी विघ्न-बाधाओं का अंत होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
हनुमान जयंती का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र की पूर्णिमा 16 अप्रैल को रात 02.25 बजे शुरू हो रही है। 16 और 17 अप्रैल की मध्यरात्रि 12.24 बजे तिथि का समापन होगा। चूंकि 16 अप्रैल, शनिवार के सूर्योदय को पूर्णिमा तिथि मिल रही है, तो उदयातिथि होने के नाते हनुमान जयंती 16 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस दिन ही व्रत रखा जाएगा और हनुमानजी का जन्म उत्सव मनाया जाएगा। इस बार की हनुमान जयंती रवि योग, हस्त एवं चित्रा नक्षत्र में है। 16 अप्रैल को हस्त नक्षत्र सुबह 8.40 बजे तक है, उसके बाद से चित्रा नक्षत्र शुरू होगा। इस दिन रवि योग प्रातः 5.55 बजे से शुरू हो रहा है वहीं इसका समापन 8.40 बजे होगा। भगवान हनुमान को महादेव शंकर का 11वां अवतार भी माना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में हैं या फिर शनि की साढ़ेसाती चल रही है, उन लोगों को हनुमान जी की पूजा विधि करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि ग्रह से जुड़ी दिक्कतें दूर हो जाती हैं। हनुमान जी को मंगलकारी कहा गया है, इसलिए इनकी पूजा जीवन में मंगल लेकर आती है।
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हनुमान जयंती की पौराणिक कथा
शास्त्री के मुताबिक शास्त्रों में हनुमान जी के जन्म को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार स्वर्ग में दुर्वासा द्वारा आयोजित सभा में स्वर्ग के राजा इंद्र भी उपस्थित थे। उस समय पुंजिकस्थली नामक अप्सरा ने बिना किसी प्रयोजन के सभा में दखल देकर उपस्थित देवगणों का ध्यान भटकाने की कोशिश की। इससे नाराज होकर ऋषि दुर्वासा ने पुंजिकस्थली को बंदरिया बनने का श्राप दे दिया। यह सुन पुंजिकस्थली रोने लगी, तब ऋषि दुर्वासा ने कहा कि अगले जन्म में तुम्हारी शादी बंदरों के देवता से होगी। साथ ही पुत्र भी बंदर प्राप्त होगा। अगले जन्म में माता अंजनी की शादी बंदर भगवान केसरी से हुई और फिर माता अंजनी के घर हनुमान जी का जन्म हुआ। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ से प्राप्त हवि को खाकर राजा दशरथ की पत्नियां गर्भवती हुईं। इस हवि के कुछ अंश को एक गरुड़ लेकर उड़ गया और उस जगह पर गिरा दिया, जहां माता अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रही थीं। माता अंजनी ने हवि को स्वीकार कर ग्रहण किया। इस हवि से माता अंजनी गर्भवती हो गईं और गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ।
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