लखनऊः पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख और चर्चित जिला सहारनपुर कभी दलित राजनीति का केंद्र बिंदु हुआ करता था, लेकिन अब यहां की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द ही घूमती दिखाई देती है। जिले की सातों विधानसभा सीटों पर अलग-अलग सियासी समीकरण हैं और यहां पर किसी की लहर नहीं, बल्कि चुनावी चेहरा ही चलता है। 2022 के इस चुनावी महासमर में भी यहां पर सभी दलों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी।
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सहारनपुर जनपद को कभी बहुजन समाज पार्टी का गढ़ कहा जाता था और यहीं की दलित राजनीति ने उसे काफी मजबूत भी किया, लेकिन वर्तमान में बसपा का यहां से कोई विधायक नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा ने अपनी प्रचंड लहर के बाद भी यहां की 4 सीटों पर ही जीत हासिल की, जबकि 01 सीट समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को 2 सीटें हासिल हुई थीं। गढ़ होने के बावजूद बीएसपी का यहां पर कोई भी विधायक जीत हासिल नहीं कर सका। 1991 की राम लहर में भी बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजलुर्रहमान सांसद बने थे। इसके बाद 2014 की मोदी लहर में यह किला ढहा और यहां पर भाजपा के राघव लखनपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को हराने में कामयाबी हासिल की थी।
इसके बाद 2017 विधानसभा चुनाव में लहर के बावजूद बीजेपी को यहां पर कई सीटों पर हार मिली थी। ऐसे में यह कहा जाता है कि इस जिले में लहर नहीं, बल्कि प्रत्याशियों के चेहरे ज्यादा मायने रखते हैं। इस बार भी यहां पर मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। कांग्रेस के कद्दावर नेता कहे जाने वाले इमरान मसूद समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं, ऐसे में यहां के समीकरण काफी बदल गए हैं। भाजपा इस बार जहां और अधिक सीटों पर कमल खिलाने के लिए जातीय समीकरण साध रही है, वहीं इस बार मायावती फिर से अपने गढ़ को मजबूत करना चाह रही हैं।
ये है 7 विधानसभा सीटों का गणित
सहारनपुर शहर विधानसभा सीट
इस सीट पर समाजवादी पार्टी के संजय गर्ग मौजूदा विधायक हैं। 2017 में संजय ने भाजपा प्रत्याशी राजीव गुंबर को मात दी थी। इस सीट पर इस बार 3,49,364 मतदाता हैं। इनमें 1,90,567 पुरुष और 1,58,770 महिला हैं। पंजाबी और व्यापारी वर्ग इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाता है।
सहारनपुर देहात विधानसभा सीट
2017 में इस सीट पर लोगों ने हाथ का साथ दिया था और इमरान मसूद के करीब मसूद अख्तर ने जीत दर्ज की थी। अब इमरान मसूद सपा का दामन थाम चुके हैं, तो यहां का गणित बिगड़ गया है। पिछले चुनाव में बसपा प्रत्याशी जगपाल को मसूद अख्तर ने 12,324 मतों से हराया था। अब जगपाल भाजपा का दामन थाम चुके हैं और भाजपा ने उन्हें टिकट से भी नवाज दिया है। उनके सामने इस सीट पर कमल खिलाने की चुनौती होगी।
बेहट विधानसभा सीट
यहां पर 2017 में कांग्रेस के नरेश सैनी ने जीत दर्ज की थी। नरेश भी इमरान मसूद के करीबियों में गिने जाते हैं। हालांकि, अब नरेश भाजपा का दामन थाम चुके हैं और भाजपा ने उन्हें मैदान में भी उतार दिया है। बसपा ने हाजी इकबाल की जगह रईस मलिक को उतारा है। इस सीट पर दलित, मुस्लिम, सैनी और राजपूत वोटर निर्णायक स्थिति में हैं।
नकुड़ विधानसभा सीट
इस सीट पर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे धर्म सिंह सैनी और इमरान मसूद में वर्चस्व की लड़ाई चलती रही है। हालांकि, इस बार यह दोनों सपा ज्वाइन कर चुके हैं। 2017 के चुनाव में धर्म सिंह सैनी ने कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को मात दी थी। इस सीट पर मुस्लिम, दलित, गुर्जर और सैनी मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। इस बार काफी हद तक यहां का समीकरण सपा के पक्ष में है।
देवबंद विधानसभा सीट
प्रसिद्ध इस्लामिक इदारे दारूल उलूम के चलते देवबंद देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। इस सीट पर राजपूत और मुस्लिम मतदाताओं की ही तूती बोलती है। 2017 में यहां से भाजपा के बृजेश सिंह ने कमल का फूल खिलाया था। इस बार भी भाजपा ने बृजेश को ही मैदान में उतारा है और यहां कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।
रामपुर मनिहारान विधानसभा सीट
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर 2017 में भाजपा-बसपा के बीच कड़ी टक्कर हुई थी और भाजपा के देवेंद्र निम केवल 595 वोटों से जीत दर्ज कर सके थे। इस बार भी वह चुनावी मैदान में हैं। यहां पर मुस्लिम, दलित, सैनी और गुर्जर बिरदारी के वोटर ही प्रत्याशियों के जीत-हार का फैसला करते हैं।
गंगोह विधानसभा सीट
सहारनपुर जिले में अपने रसूख के लिए प्रसिद्ध मसूद परिवार यहीं का रहने वाला है। हालांकि, परिवार में फूट के चलते अब यह सीट अपनों की लड़ाई का मैदान बनी हुई है। 2017 में यहां से भाजपा के प्रदीप चौधरी निर्वाचित हुए थे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी नौमान मसूद को 38,028 मतों से हराया था। इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के साथ गुर्जर मतदाताओं का भी दबदबा है। 2019 में प्रदीप चौधरी कैराना से जीतकर लोकसभा पहुंच गए। इसके बाद उपचुनाव में बीजेपी के कीरत सिंह ने कांग्रेस के नोमान मसूद को 6 हजार से अधिक वोट के अंतर से हराया था। इस बार भी भाजपा ने कीरत पर ही भरोसा जताया है।
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