भोपालः उज्जैन के महाकाल परिसर स्थित महाकाल लोक में तेज आंधी व बवंडर से गिरी छह मूर्तियों की स्थिति का आकलन करने वाली कांग्रेस कमेटी के सदस्य पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा व कांग्रेस मोर्चा की प्रभारी शोभा ओझा संगठन, इस परियोजना में निर्धारित शर्तों पर सहमत हुए हैं। मूर्ति स्थापित नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रतिमा स्थापित करने वाले को तीन गुना से अधिक का भुगतान किया गया।
पूर्व मंत्री वर्मा और ओझा ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि शिवराज सरकार ने महाकाल लोक परिसर के लिए करीब 98 लाख रुपये की लागत का अनुमान लगाया था, लेकिन कमलनाथ सरकार ने इसे नाकाफी मानते हुए महाकाल लोक के लिए 300 करोड़ रुपये आवंटित कर दिए। राशि स्वीकृत की गई। 7 मार्च 2019 को इसका वर्क ऑर्डर भी जारी कर दिया गया। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि मूर्तियों की स्थापना में निर्धारित शर्तों का पालन नहीं किया गया। एफआरपी से बनी मूर्तियों की मजबूती के लिए लोहे का भीतरी ढांचा बनाया जाता है, लेकिन महाकाल लोक में स्थापित मूर्तियों में ऐसा नहीं किया गया।
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मूर्तियों को बनाने में लगने वाली जाली की मोटाई 1200 से 1600 ग्राम जीएसएम होनी चाहिए, लेकिन महाकाल लोक में स्थापित मूर्तियों में 150 से 200 ग्राम जीएसएम की चाइनीज जाली का इस्तेमाल किया गया था। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि बिना नींव के 10 फीट ऊंचे चबूतरे पर सीमेंट से जुड़ी हुई हैं। इसी वजह से 30 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चली हवाओं से मूर्तियां गिरकर टूट गई थी।

मूर्तियों की गुणवत्ता जांचने के लिए स्थल पर ही प्रयोगशाला स्थापित करने की शर्त थी, जो नहीं की गई। मूर्ति की कीमत पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने दावा किया है कि उज्जैन शहर में एक ही ठेकेदार द्वारा स्थापित मूर्तियों के निर्माण की लागत में भारी अंतर है। उज्जैन के स्थानीय सिंधी समाज द्वारा 25 फीट ऊंची मूर्ति का निर्माण 4 लाख 11 हजार रुपये में किया गया, जबकि महाकाल लोक में 15 फीट ऊंची मूर्ति के लिए 10 लाख 2 हजार रुपये का भुगतान किया गया।
साधारण गणित के आधार पर 15 फीट ऊंची मूर्ति की कीमत अधिकतम तीन लाख रुपए होनी चाहिए। उज्जैन के कलेक्टर की 'मूर्तियों को पांच-सात दिनों के भीतर बहाल कर दिया जाएगा' की घोषणा का जिक्र करते हुए कांग्रेस ने कहा कि कलेक्टर के बयान से स्पष्ट है कि केवल खंडित मूर्तियों को तोड़-मरोड़ कर बहाल किया जाएगा।
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