फीचर्ड संपादकीय

‘द केरल स्टोरी’मजहबी उन्माद व आतंक का आईना

The Kerala Story' - A mind-boggling reality
  the-kerla-story-am-eye-opner-truth ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म गैर-मुस्लिम लड़कियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवाद की भट्टी में झोंकने के एक सुनियोजित षड्यंत्र के क्रूर व भयावह यथार्थ को जिस मार्मिक अंदाज में दर्शाती है, वह चित्रांकन भारत से प्रेम करने वाले किसी भी सच्चे भारतीय की आंखों में आंसू व अंतस में आक्रोश लाए बिना नहीं रह सकता। फिल्म के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह और निर्देशक सुदीप्तो सेन का कहना है कि सच्ची घटनाओं पर आधारित इस फिल्म में केरल में वर्षों से जारी जबरन धर्मांतरण के कुचक्र तथा इस्लामिक स्टेट के आतंकवाद के सच को ईमानदारी से दर्शाने का प्रयास किया गया है। यह फिल्म कोई काल्पनिक मैलोड्रामा न होकर उनकी पांच साल की शोध का नतीजा है। ज्यादातर लोग इस तरह के सब्जेक्ट से कतराते हैं लेकिन हम इस भयानक कहानी को गहन रिसर्च के साथ बड़े पर्दे पर लाने के लिए दृढ़ थे। इसके लिए उन्होंने केरल से लेकर अरब देशों की यात्राएं कीं और स्थानीय लोगों व पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और निष्कर्षों ने उनकी आंखों में आंसू ला दिए। निर्देशक सुदीप्तो सेन कहते हैं कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तरह यह फिल्म भी किसी धर्म-जाति के विरुद्ध नहीं है और न ही इसे बनाने के पीछे उनका मकसद इस्लाम की छवि धूमिल करने का है, जैसा कि फिल्म का विरोध करने वालों द्वारा कहा जा रहा है। वे बेबाकी से कहते हैं कि आतंक का कोई भी धर्म नहीं होता और हमने आईएसआईएस के भयावह उन्मादी आतंकी षड्यंत्र को देश-दुनिया के सामने लाने के मकसद से यह फिल्म बनाई है इसलिए इस फिल्म को मुस्लिम धर्म से जोड़ना सरासर गलत है। अदा शर्मा, योगिता बिहानी, सोनिया बलानी और सिद्धि इडनानी द्वारा अभिनीत इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने विगत दस सालों में केरल की 32,000 गैर-मुस्लिम महिलाओं का साजिश के तहत जबरन धर्मांतरण कराकर उन्हें इराक व सीरिया जैसे इस्लामिक देशों में आतंकवादी संगठनों के समक्ष ‘सेक्स-स्लेव’ तथा ‘फिदायीन’ के रूप में परोसे जाने की रोंगटे खड़े कर देने वाली काली करतूत उजागर की है, ताकि देशवासी इस्लामिक आतंकवाद के क्रूर व उन्मादी चेहरे को देख सकें और देश की बहन, बेटी व बच्चियां ऐसे षड्यंत्रकारियों के चंगुल में फंसने से बच सकें। फिल्म का मूल कथानक तीन लड़कियों के बारे में है, जिनका जीवन आईएसआईएस द्वारा नष्ट कर दिया गया है। फिल्म की कहानी शुरू होती है शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) के एक डायलॉग से, जिसे अफगानी सुरक्षा फोर्स आतंकवादी करार देते हुए हिरासत में ले लेते हैं। शालिनी बार-बार उनसे यह कहने की कोशिश करती है कि वो एक षड्यंत्र की शिकार है लेकिन उस पर कोई विश्वास नहीं करता और तब शालिनी की असली कहानी फ्लैशबैक से शुरू होती है। कोच्चि की शालिनी कासरगोड के नर्सिंग स्कूल में पढ़ाई करने जाती है। हॉस्टल में उसकी मुलाकात अपनी रूममेट निमाह, गीतांजलि और आसिफा से होती है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आसिफा हिंदू धर्म और देवी-देवताओं पर कटाक्ष कर अपनी रूममेट्स का ब्रेनवॉश करती है। आसिफा इस्लाम धर्म को सर्वश्रेष्ठ साबित करते हुए शालिनी से कहती है कि तुम लोग पत्थर को क्यों पूजते हो ? कैसा है तुम्हारा भगवान जो अपनी पत्नी की मृत्यु पर आम इंसान की तरह रोता है ? तमाम ऐसे विचार वह लगातार उनके उनके दिमाग में डालती रहती है। वह उनसे कहती है कि क्या तुमने कभी हिजाब पहनने वाली किसी लड़की के साथ छेड़खानी की घटना होते देखा या सुना है ? फिर आगे वह कहती है कि हिजाब पहनने वाली लड़कियों की हिफाजत अल्लाह खुद करते हैं। इस तरह ही तमाम बातें सुन-सुन कर केरल की ये गैर-मुस्लिम लड़कियां आसिफा के चंगुल में फंस जाती हैं। शालिनी उन्नीकृष्णन को एक मुस्लिम शख्स अपने प्रेम के जाल में फांसता है। उसे इस्लाम कबूल करवाकर शालिनी से फातिमा बनाया जाता है और निकाह कर उसे प्रेग्नेंट करने के बाद आतंकवाद की आग में झोंकने के लिए देश से बाहर भेज दिया जाता है। इस फिल्म में हजारों महिलाओं की तस्करी-धर्मांतरण की दिल दहला देने वाली क्रूरता दिखाई गई है कि किस तरह वे चरमपंथी इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) में शामिल हो जाती हैं। फिल्म खत्म होने के बाद उन परिवारों के लोगों के असल इंटरव्यू दिखाए गए हैं, जिनके साथ ये सब वाकई हो चुका है। film-the-kerala-story केरल में आईएसआईएस कनेक्शन का सच इस तरह देश के सबसे ज्यादा साक्षर कहलाने वाले राज्य केरल के आईएसआईएस कनेक्शन का पर्दाफाश करने की एक सफल कोशिश इस फिल्म में की गई है। केरल के इस आईएसआईएस कनेक्शन की बात उन तीन जिहादी लड़कियों में से एक निमाह मैथ्यू (योगिता बिहानी) जिसे धर्मांतरित कर ईसाई से मुसलमान बना दिया जाता है, का वह डायलाग करता है जिसमें वह पुलिस अधिकारी से कहती हैं कि सर ! क्या आप जानते हैं कि कासरगोड़ में कुछ गांव हैं, जहां शरीयत का बोल-बाला है ? दुनिया में जब भी कहीं बम विस्फोट होता है, फिर चाहे वह श्रीलंका में, सिंगापुर में या अफगानिस्तान में, केरल कनेक्शन जरूर निकलकर आता है सामने। ऐसा क्यों होता है सर ? गौरतलब हो कि इस फिल्म को देखने के बाद धर्मांतरण का शिकार हुई श्रुति नाम की युवती अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहती है कि यह सच्ची घटनाओं पर बनी बहुत साहसिक फिल्म है। बकौल श्रुति, 10 साल पहले पढ़ाई के दौरान अपने दोस्तों के प्रभाव में आकर मैं इस्लाम की तरफ बुरी तरह आकर्षित हो गई थी। उस दौरान मेरे मन में हिंदू धर्म के प्रति घृणा पैदा होने लगी थी। मैं सोचती कि मैं इस धर्म में क्यों पैदा हुई। हिंदू देवी-देवताओं व देश के प्रति गलत भावनाएं आती थीं। उस दौरान मैं इस्लाम कबूल करने के लिए कंवर्जन सेंटर भी गई लेकिन वहां मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ। यह तो भगवान की कृपा रही कि अप्पा-अम्मा और पुलिस की सहायता से व कई हिंदू संगठनों की मदद के बाद मैं आर्शा विद्या समाजम में गई। वहां जाकर मैंने अपने धर्म को अच्छे से जाना। वहां से आने के बाद मैंने कई पीड़ितों से बात भी की। उन पीड़िताओं ने बताया कि समाज में अलग-अलग तरह के धर्मांतरण चल रहे हैं। समाज में ब्रेन वॉशिंग का सिस्टम चल रहा है। इसके कई पीड़ित हैं। यहां लव और आइडियोलॉजिकल जिहाद होता है। इसके अलावा लैंड जिहाद व मनी जिहाद भी होता है। अगर मैं भी आर्शा विद्या समाजम से नहीं जुड़ती, तो मेरा भी हाल इस फिल्म की नायिका की तरह ही भयावह होता। श्रुति का कहना है कि यह सब कुछ एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत करते हैं। इनकी रणनीति अब मुझे अच्छे से पता है कि ये लोग कैसे ब्रेनवॉश करते हैं। ये लोग पहले सवाल पूछकर आपके धर्म के बारे में संदेह पैदा करते हैं फिर उसकी आलोचना करते हैं। ऐसी-ऐसी बातें करते हैं कि आपको अपने धर्म के प्रति घृणा हो जाती है। ये लोग कहते हैं कि अल्लाह के अलावा किसी को नहीं पूजना चाहिए और अगर तुम अल्लाह के अलावा किसी की पूजा करती हो, तो तुम्हें नर्क में डाल दिया जाएगा। उसके बाद लव ट्रैप में फंसाकर प्यार की एक्टिंग करते हैं, शारीरिक संबंध बनाते हैं और फिर ब्लैकमेलिंग करते हैं। इस तरह यह फिल्म केरल में युवा हिंदू व ईसाई लड़कियों के धर्मांतरण और चरमपंथी इस्लामिक आतंकवाद के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें उन्मादी मुस्लिम समूह के युवाओं द्वारा गैर-मुस्लिम विशेषकर हिंदू और ईसाई युवतियों को बहला-फुसलाकर प्रेमजाल में फंसाकर, उनका न केवल मजहब बदला जाता है, अपितु निकाह के पश्चात इराक-सीरिया जैसे इस्लामी देशों में आतंकवादी संगठनों के समक्ष ‘सेक्स-स्लेव’ तथा ‘फिदायीन’ के रूप में परोस दिया जाता है। उन्मादी मतांतरण पर बनी यह फिल्म वाकई रोंगटे खड़े कर देती है। the-kerala-story सालों से चल रहा है यह षडयंत्र ऐसी कहानी के लिए जो लोग सुबूत मांग रहे हैं, उनके लिए भी फिल्म के क्लाइमैक्स में बहुत सारी जानकारी है। जिन तीन लड़कियों की जिंदगी पर यह फिल्म बनी है, उनसे कई जुड़े तथ्य फिल्म के अंत में दिखाए गए हैं। मध्यमवर्गीय परिवार की इन तीन लड़कियों के माता-पिता आज भी न्याय की आस में हैं। काबिलेगौर है कि ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन का कहना है कि केरल से 32,000 लड़कियों के गायब होने के ये आंकड़े उनके नहीं हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने एक बातचीत उनको यह जानकारी दी थी कि केरल राज्य की हजारों बेटियां दिन ढले गायब होती रही हैं और ये सिलसिला पिछले 10 साल से चला आ रहा है। बीते दस साल में हर साल लगभग 2,800 से 3,200 लड़कियों को बहला-फुसलाकर और डरा-धमकाकर इस्लाम में कन्वर्जन कराया जा रहा है। इस आधार पर 32,000 का आंकड़ा फिल्म में दिया गया है। फिल्म के टीजर की शुरुआत 2006 से लेकर 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे वी. एस. अचुतानंदन के एक कथित बयान से होती है, जिसमें वह कहते दिख रहे हैं कि पॉपुलर फ्रंट केरल को एक इस्लामी राज्य बनाने के लिए प्रयत्नशील है। प्रतिबंधित संगठन एनडीएफ की तरह इनका ध्येय भी अगले 20 साल में केरल को मुस्लिम राज्य में परिवर्तित कर देना है। ‘अमृता टीवी’ के सौजन्य से हासिल इस वीडियो क्लिप की तारीख 24 जुलाई 2010 की बताई गई है। इसी क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ विचारक और प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार ने भी ‘पांचजन्य’ को दिए गए अपने हालिया साक्षात्कार में कहा है कि ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म ने उस दुरावस्था की एक झलक दिखाई है, जिसमें आज केरल को पहुंचा दिया गया है। उक्त साक्षात्कार में वे यह बताते हैं कि कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने जिस प्रकार केरल में इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों का पोषण दिया है, उसने कभी धर्म और आध्यात्म की पवित्र भूमि रहे केरल को ‘लव जिहाद’, ‘नार्को जिहाद’ और हिन्दू धर्म पर आघात की भूमि बना दिया है। वे बताते हैं कि केरल में डीजीपी रहे लोकनाथ बेहेड़ा ने भी यह बयान दिया था कि केरल में कट्टरपंथियों द्वारा इस्लामीकरण का अवैध षड्यंत्र तेजी से चल रहा है। उनके मुताबिक ‘लव जिहाद’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले केरल में न्यायधीश रहे न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने प्रमाण सहित करते हुए कहा था कि यहां पर सरकार से लेकर पुलिस-प्रशासन तक सभी को इस विषय को गंभीरता से लेने की जरूरत है। यहां तक कि केरल के ईसाई बिशप ने भी चर्च के प्रार्थना मंच से राज्य की इस गंभीर समस्या को उठाते हुए कहा था कि इस्लामिक आतंक के इस षड्यंत्र से लड़कियों को सजग व जागरूक रहने की बहुत आवश्यकता है। बकौल नंदकुमार, शुरू में तो मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने भी माना था कि केरल से लड़कियों को बाहर ले जाया गया है, लेकिन फिर उनको इस्लामी कट्टरपंथियों ने जैसे अपने चंगुल में ले लिया। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि उपरोक्त आधिकारिक बयानों और तथ्यों के बावजूद समाज का एक विरोधी धड़ा इस फिल्म को इस्लाम को बदनाम करने की साजिश बताकर खिलाफत में जुटा हुआ है। इन विरोधियों का कहना है कि फिल्म में हजारों युवतियों के आतंकवादी संगठन ‘आईएसआईएस’ में फंसने का दावा खोखला है। ‘द केरल स्टोरी’ की खिलाफत करने वालों में केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन से लेकर कांग्रेसी सांसद शशि थरूर और जमीयत-उलेमा-ए-हिंद संस्था सबसे आगे है। मुख्यमंत्री विजयन का कहना है कि फिल्म का ट्रेलर देख पहली नजर में ऐसा प्रतीत होता है कि इसका मकसद राज्य के खिलाफ प्रोपेगैंड करना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है। केरल की विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर केरल को बदनाम करने वाली यह फिल्म संघ परिवार के समाज में अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने के एजेंडे से प्रेरित व प्रभावित है। इसी तरह सत्ताधारी सीपीआई(एम) की युवा इकाई ’द डेमोक्रेटिक यूथ फेडेरेशन ऑफ़ इंडिया’ ने भी फिल्म की आलोचना की है। सीपीआई (एम) के राज्यसभा सांसद एए रहीम आरोप लगाते हैं कि झूठ से ढकी इस फिल्म का मकसद लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करना है। वस्तुतः इस फिल्म के विरोधियों के मुख्यतः तीन तर्क हैं। पहला- यह फिल्म राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रतिपादित एक काल्पनिक अवधारणा लव जिहाद पर आधारित है। दूसरा- इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हेतु बनाया गया है। तीसरा- फिल्म में केरल के जिस सच को दिखाने का दावा किया गया है, वह फर्जी है। हालांकि, आधिकारिक तथ्यों के आईने में पूर्ण निष्पक्षता से देखें तो उपरोक्त आरोपों में कोई दम नजर नहीं आता। पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा जाने-माने वरिष्ठ स्तंभकार बलबीर पुंज तथ्यों के साथ उक्त आरोपों की काट करते हुए कहते हैं कि वामपंथियों और कांग्रेस द्वारा ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध विडंबनाओं से भरा है। फिल्म को दर्शकों तक पहुंचने से रोकने के लिए इस वर्ग ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया, किंतु अच्छी बात यह है कि हाईकोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सभी जगह फिल्म को हरी झंडी मिल गई। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी प्रकार के कुतर्कों को रद्द करते हुए ‘द केरल स्टोरी’ पर रोक लगाने की अपील खारिज कर दी। हर्ष का विषय है कि उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया है। बलबीर पुंज के अनुसार, केरल के वर्तमान वामपंथी मुख्यमंत्री विजयन, जो आज ‘द केरल स्टोरी’ को ‘आरएसएस का प्रोपेगेंडा’ बता रहे हैं, उन्हीं की पार्टी के दीर्घानुभवी नेता वीएस अच्युतानंदन, जुलाई 2010 में बतौर केरल मुख्यमंत्री दावा कर चुके थे कि केरल के इस्लामीकरण का षड्यंत्र चल रहा है, जिसमें सुनियोजित तरीके से हिंदू लड़कियों के साथ मुस्लिम लड़कों के निकाह करने का षड्यंत्र चलाया जा रहा है। the-kerala-story-cinemas-duty इसी तरह जो कांग्रेस आज ‘द केरल स्टोरी’ की विषयवस्तु की खिलाफत कर रही है, क्या वह भूल गई है कि जब केरल में 2011-2016 के बीच उसकी सरकार थी, तब तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने 25 जून 2012 को विधानसभा के पटल पर वर्ष 2009-12 के बीच 2,600 से अधिक गैर-मुस्लिम महिलाओं का साजिश के तहत इस्लाम अपनाने का दावा किया गया था। यही नहीं, फिल्म की आलोचना करने वाले शशि थरूर ने भी स्वयं वर्ष 2021 में केरल की उन माताओं से मिलना स्वीकार किया था, जिनकी बेटियां मजहबी कट्टरता का शिकार हुई थीं और अपने पतियों द्वारा अफगानिस्तान भेजी गई थीं। ऐसे में इन तथाकथित विरोधियों का यह कहना कि यदि केरल में बढ़ते इस्लामी कट्टरवाद पर बनी यह फिल्म संघ से प्रेरित है, तो उसमें गलत ही क्या है ? जब समाज के सभी वर्गों को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ प्राप्त है, तो संघ को इससे विमुक्त रखने का प्रयास क्यों ? क्या लोकतांत्रिक-पंथनिरपेक्षी व्यवस्था में विचारों पर केवल एक वर्ग का अधिकार, समाज को लंबे समय तक अक्षुण्ण रख सकता है ? दूसरी बात, यह फिल्म सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं, अपितु समाज में व्याप्त इसके विषाक्त कारकों का सटीक चित्रण है। याद हो कि जब कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ आई थी, तब भी इस गिरोह ने खूब हो-हल्ला मचाया था। जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के साथ हुई त्रासदी को इस वर्ग ने ‘प्रोपेगंडा’ सिद्ध करने के लिए क्या-क्या धत्कर्म नहीं किए थे। ठीक वही रवैया इनका आज लव जिहाद का शिकार होने वाली युवतियों के प्रति दिखाई दे रहा है। केरल की छोड़िए, अब तो समूचे देश में इस ढंग की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिनमें नाम और पहचान बदलकर मुस्लिम लड़के/पुरुष गैर-मुस्लिम लड़कियों से दोस्ती करते हैं और शादी कर लेते हैं। लड़की को बाद में पता चलता है कि वह जिसे संजय समझ रही थी, वह सलीम है। ज्यादातर मामलों में लड़कियां एक ऐसे अंधे कुंए में फंस जाती हैं, जहां से वे बाहर नहीं निकल पाती हैं। जब ये लड़कियां इस साजिश का प्रतिरोध करती हैं, तब या तो उन्हें यूं ही छोड़ दिया जाता है या फिर हत्या कर दी जाती है इसलिए सभी देशवासियों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। विशेषकर अल्लाह के इस्लाम को मानने वाले समाज के सुशिक्षित मुस्लिम भाइयों को, ताकि वे लोग अल्लाह के नाम पर किए जाने वाले घिनौने आपराधिक कृत्यों को देख व जान-समझ कर अपने समाज के अशिक्षित व अल्प शिक्षित भाइयों को भी भाईचारे के मजहब को दूषित व बदनाम करने की इस खौफनाक साजिश से अवगत करा सकें। यह भी पढ़ेंः-लव जिहाद व धर्मांतरण के कुचक्र में फंसती बेटियां

हर माता-पिता को एक बड़ा सबक

आज समाज में बहुसंख्य हिंदू परिवारों के बच्चे प्रायः अपने धर्म, संस्कृति के बारे में बेखबर हैं। वे अपने धर्म शास्त्र, ग्रंथों, पुराणों, वेदों की जानकारी से अनभिज्ञ हैं क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें सिर्फ स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई, शानदार नौकरी, बढ़िया पैकेज तक सीमित रखते आ रहे हैं। अधिकांश मां-बाप इस दिशा में प्रायः उदासीन बने रहते हैं। वे इस बात को भूल जाते हैं कि यदि समय रहते बच्चों को धर्म की जड़ों से नहीं जोड़ा गया, तो परिणाम कितने घातक हो सकते हैं। यदि देश की धर्म, संस्कृति ही मिट जाएगी, तब देश का स्वरूप कितना भयावह हो जाएगा। हिंदू धर्म हमेशा से उदारवादी रहा है और इसी उदारवाद का फायदा कट्टरपंथी मंसूबे पालने वाले लोग उठा रहे हैं, फिल्मकार ने यही संदेश देने की सफल कोशिश की है। इस कारण यह फिल्म हर आयु वर्ग, हर समुदाय के माता-पिता, युवा खासकर लड़कियों को जरूर देखनी चाहिए क्योंकि चरमपंथी धर्मांतरण का यह मुद्दा सिर्फ हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है, इसकी साजिश के शिकार सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध व अन्य समुदाय भी हो रहे हैं। उम्मीद है कि ‘द केरल स्टोरी’ इस दिशा में एक सकारात्मक संदेश देने में सफल होगी। ’द केरल स्टोरी’ फिल्म को देखने वाले दर्शक इसे आंखे खोलने वाली फिल्म बताकर सभी को एक बार इसे जरूर देखने की बात कह रहे हैं। फिल्म देखने वाली लखनऊ पब्लिक स्कूल की शिक्षिका शिखा शर्मा का कहना है कि यह फिल्म यह सिखाती है कि हमें अपने बच्चों को सनातन धर्म और मूल्यों के बारे में बचपन से ही पूरी स्पष्टता से बताना चाहिए। खासतौर पर युवतियों और महिलाओं को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए, ताकि वे जान सकें कि किस तरह मजहबी उन्मादियों के बहकावे में आकर पढ़ी-लिखी लड़कियां अपने धर्म, समाज और परिवार से दूर होकर अपनी जिंदगी को नर्क में झोंक देती हैं। इसी तरह राजकुमार गुप्ता नाम के एक दर्शक का कहना है कि यह फिल्म हिंदू-मुस्लिम को लेकर, नहीं बल्कि मौजूदा वक्त में हमारे समाज में घटित हो रहे एक खतरनाक षड्यंत्र पर आधारित है। इसे सभी को जानना और समझना चाहिए। वे कहते हैं कि इससे पहले सत्य घटनाओं पर आधारित एक फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ भी लोगों ने काफी पसंद की थी। ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए, जिससे लोग जागरूक बन सकें। बिना फिल्म देखे फिल्म को धर्म विरोधी मानकर खिलाफत करने वालों से उनका आग्रह है कि बिना किसी पूर्वाग्रह के खुले मन से इस फिल्म को जरूर देखें। पूनम नेगी (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)