बलियाः जिला मुख्यालय से पांच किमी उत्तर दिशा में बलिया-सिकंदरपुर मार्ग पर स्थित ब्रह्माइन गांव में मां ब्रह्माणी देवी का प्राचीन मंदिर इस नवरात्रि श्रद्धालुओं के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है। नौ दिनों तक माता के भव्य रूपों की पूजा के साथ ही यहां अष्टमी के दिन होने वाली निशा पूजन का कुछ अलग ही महत्व है। मान्यता है कि सच्चे मन से जिस किसी ने कुछ मांगा, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। नवरात्र में ही नहीं बल्कि अन्य अवसरों पर भी दर्शन-पूजन को दूर दराज से लोग यहां आते हैं। गंगा व घाघरा के बीच बसे जिले के इस मंदिर का वर्णन पुराणों में भी इस मिलता है। पुराणों से ही मिलने वाली जानकारियों को मानें तो हनुमानगंज से सटे ब्रह्माईन गांव में स्थित इस मंदिर में यज्ञ में पधारे अपने माता-पिता को महर्षि भृगु ने ठहराया था। मान्यता है कि बाणासुर का संहार करने के लिए मां भगवती ने अवतार लिया था। बाणासुर शिव-पार्वती की कृपा से और श्रीकृष्ण से मिले जीवनदान के बाद और अधिक निरंकुश हो गया था। बाणासुर का वध शक्ति के ही अंश ‘कुंआरी देवी’ ने किया था, दक्षिण भारत में उन्हें कन्याकुमारी कहा जाता है और उत्तर भारत में सूर्यवंशियों की आराध्य देवी बायण माता कहलाती हैं।
राजा सुरथ ने स्थापित किया था मां ब्रह्माणी देवी का मंदिर
दुर्गा सप्तशती व मार्कंडेय पुराण में वर्णित है कि भवन के राजाओं से हार कर राजा सूरथ कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने के बहाने निकल गए। आज जहां ब्रह्माइन गांव स्थित है कालांतर में वहां जंगल था, वे वहीं रुके और सैनिकों से पानी लाने को कहा। सैनिकों को कुछ दूर चलने पर एक सरोवर दिखाई दिया। वहां से पानी लाकर उन्होंने राजा को दिया। राजा युद्ध में घायल हो गए थे और शरीर के कई जगह से मवाद निकल रहा था। राजा ने जब उस पानी का स्पर्श किया तो उन का कटा व मवाद युक्त घाव ठीक हो गया। इस घटना से चकित हो राजा ने सैनिकों को उन्हें उस स्थान पर ले चलने को कहा, जहां से वे जल लाए थे। वहां पहुंचने के बाद राजा ने उस सरोवर में छलांग लगा दी जिससे उनका पूरा शरीर पुनः पहले जैसा हो गया। राजा ने विचार किया कि निश्चय ही ये स्थान कोई पवित्र जगह है। सैनिकों को भेजकर राजा अकेले ही विचरण करने लगे वहीं पर उन्हें महर्षि मेधा का आश्रम दिखाई दिया।
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महर्षि से आज्ञा लेकर राजा उनके आश्रम में रहने लगे। कुछ दिनों बाद वहां पर एक समाधि नाम का वैश्य आया जिसे उसके परिजनों ने धन के लोभ में घर से निकाल दिया था। राजा सुरथ व समाधि ने ऋषि मेधा से शांति पाने का उपाय पूछा। ऋषि ने आदि शक्ति की उपासना करने को कहा। वहीं पर राजा सुरथ व समाधि ने तीन वर्षों तक मां ब्रह्माणी की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ब्रह्माणी देवी अवतरित हुई। दोनों को मनोवांछित फल देकर अभिलषित किया। राजा सुरथ की तपस्थली सुरहा के नाम से विख्यात हुई और उससे निकलने वाला एक मात्र नाला या झरना कटहल नाले (कष्टहर नाला) के नाम से विख्यात हुआ। मनोकामना पूरी होने पर सूर्यवंशी राजा सुरथ ने माता वीरणी और ब्रह्माणी मंदिर का निर्माण करवाया।
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