कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी की मांग मान ली है। शुभेंदु को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में नवगठित राज्य सुरक्षा आयोग का सदस्य बनाया गया है। इसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास है।
राज्य सचिवालय से सहमति मिलने के बाद प्रभारी राज्यपाल ला गणेशन ने इस आयोग का गठन किया है, जिसमें अध्यक्ष के तौर पर ममता बनर्जी और दूसरे सदस्य के तौर पर नेता प्रतिपक्ष शामिल हैं। आयोग के अन्य सदस्यों में राज्य के मुख्य सचिव हरि कृष्णा द्विवेदी, राज्य पुलिस के महानिदेशक, सेवानिवृत्त न्यायाधीश असीम राय, राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लीना गांगुली, शिशु अधिकार सुरक्षा आयोग की अध्यक्ष अनन्या चक्रवर्ती, एसएसकेएम अस्पताल के निदेशक मृण्मय बनर्जी और नृसिंह प्रसाद भादुड़ी हैं।
यह आयोग लंबे समय तक राज्य के अस्तित्व में नहीं था। हालांकि वाममोर्चा सरकार में ही इस आयोग को समाप्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार की भी आलोचना की थी लेकिन 2021 में हुए चुनाव के बाद विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने मांग की कि इस आयोग का गठन किया जाए। उन्होंने पिछले साल जून में तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मुलाकात की थी और इस संबंध में मांग पत्र दिया था। उन्होंने कहा था कि 2006 में प्रकाश सिंह बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उस फैसले में कहा गया था कि सभी राज्यों को सुरक्षा आयोग बनाना चाहिए। यह आयोग राज्य में पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखेगा। आयोग का गठन इस तरह किया जाना चाहिए कि इसका अस्तित्व राज्य सरकार के नियंत्रण से बाहर एक स्वतंत्र समिति के रूप में रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा आयोग के गठन के लिए तीन सूत्र दिए थे। इसमें कहा गया था कि रिबेरो समिति, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या सोराबजी समिति में से किसी एक की सिफारिश के अनुसार समिति का गठन किया जाए। तीनों समितियों ने सिफारिश की कि विपक्ष के नेता को राज्य सुरक्षा आयोग के सदस्यों में से एक होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 27 राज्यों ने पहले ही राज्य सुरक्षा आयोगों का गठन किया है। अकेले ओडिशा और जम्मू-कश्मीर ने इस आयोग का गठन नहीं किया है। बुद्धदेव भट्टाचार्य के सरकार के जमाने में ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव की एक रिपोर्ट में कहा गया कि पश्चिम बंगाल में स्थापित सुरक्षा आयोग में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की बड़े पैमाने पर अनदेखी की गई। यह सच है कि उस समिति में विश्वविद्यालय के कुलपतियों, पूर्व सेना अधिकारियों, कोलकाता के पुलिस आयुक्त, गृह सचिव आदि को रखा गया है लेकिन सरकार का प्रभाव स्पष्ट है। इस संबंध में 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को फटकार भी लगाई थी।
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