भारतीय सिनेमा के सपनों के सौदागर, द ग्रेट शोमैन, निर्माता-निर्देशक और अभिनेता राज कपूर आज भी लोगों के दिलों में धड़कते हैं। नेहरू के समाजवाद से प्रेरित राज कपूर की शुरुआती फिल्मों 'आवारा', 'श्री 420', 'बूट पॉलिश' और 'जागते रहो' में इसकी झलक देखी जा सकती है। आम आदमी के सुख-दुख को अभिव्यक्त देती यह शाहकार कालजयी हैं। राजकपूर की कई फिल्मों में रोमांस भी है। उनमें प्रेम को नई परिभाषा होती है। 14 दिसंबर, 1924 को अविभाजित भारत के पेशावर में जन्मे राज कपूर के पिता पृथ्वी राज कपूर जाने-माने थियेटर आर्टिस्ट और अभिनेता रहे हैं। पृथ्वीराज कपूर के तीन बेटे थे- राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर। संयोग से तीनों अपने दौर के बड़े अभिनेता हैं। पृथ्वी राज कपूर के बेटे ही क्या अब तो सारा का सारा कपूर खानदान सिल्वर स्क्रीन का बड़ा नाम है।
राज कपूर का पूरा नाम रणबीर राज कपूर है। पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर राज कपूर को फिल्मों में जगह बनाना मुश्किल नहीं था। मगर पृथ्वीराज कपूर चाहते थे कि राज कपूर अपने बूते सिनेमा में जगह बनाएं। और हुआ भी ऐसा। राज कपूर ने अपनी मेहनत और काबिलीयत के दम पर फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने अभिनय का आगाज पृथ्वी राज थियेटर के मंच से किया। हालांकि साल 1935 में वह मात्र 10 साल की उम्र में फिल्म 'इंकलाब' में छोटी भूमिका में नजर आ चुके थे। इसके बाद वह निर्देशक केदार शर्मा की फिल्मों में 'क्लैपर बॉय' के रूप में नजर आए। इस दौरान केदार शर्मा के साथ उनका एक वाकया भी जुड़ा है। एक फिल्म में केदार शर्मा ने उनसे क्लैप कर शूट शुरू करने के लिए बोला। राज कपूर कैमरे के सामने आकर अपने बाल ठीक करने लग गए। इस पर केदार शर्मा को गुस्सा आया और गुस्से में उन्होंने गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया। मगर इन्हीं केदार शर्मा ने 1947 में अपनी फिल्म ‘नीलकमल’ में राजकपूर को नायक की भूमिका दी। इस फिल्म में उनके साथ प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला थी।
कमाल देखिये कि महज 24 साल की उम्र में ही राज कपूर ने अपना प्रोडक्शन स्टूडियो 'आरके फिल्म्स' शुरू कर दिया। वो उस समय सबसे युवा निर्देशक थे। उनके स्डूडियो की पहली फिल्म थी 'आग'। इस फिल्म के वो निर्देशक भी थे और नायक भी। 28 साल की उम्र तक आते-आते राज कपूर ने हिंदी सिनेमा में शोमैन का खिताब हासिल कर लिया था। 'आग' के बाद 1949 में राज कपूर ने फिल्म 'बरसात' बनाई। इसमें उन्होंने तिहरी भूमिका निभाई। इस फिल्म में अभिनेता के साथ-साथ वह निर्माता-निर्देशक भी थे। इस फिल्म में उन्होंने नायिका से लेकर गीतकार, संगीतकार यहां तक की टैक्निशियन की भी अपनी एक नई टीम तैयार की। इस फिल्म में राज कपूर ने निम्मी को बतौर नायिका पहली बार लिया। 'बरसात' बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट रही। इस फिल्म के बाद तो राज कपूर नायक के रूप में फिल्मों की सफलता का पर्याय बन गए।
साल 1950 के बाद अभिनेता के रूप में राज कपूर की एक के बाद एक कई हिट फिल्में आईं। इनमें 'जान पहचान', 'प्यार', 'संगम', 'दास्तान', 'बावरे नयन', 'आवारा', 'चोरी-चोरी', 'श्री 420', 'जागते रहो', 'बूट पॉलिश', 'परवरिश', 'फिर सुबह होगी', 'दो उस्ताद', 'अनाड़ी', 'छलिया', 'श्रीमान सत्यवादी', 'जिस देश में गंगा बहती है' आदि हैं। यह फिल्में हिंदी सिनमा का माइल स्टोन हैं। इन फिल्मों की कामयाबी के साथ राज कपूर का नाम बड़े-बड़े दिग्गज कलाकारों के साथ लिया जाने लगा। 26 जून 1964 को अखिल भारतीय स्तर पर प्रदर्शित फिल्म 'संगम' बतौर निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए उन्हें ‘फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ संपादन का पुरस्कार मिला।
वर्ष 1951 की उनकी फिल्म 'आवारा' को हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। राज कपूर संगीत की भी अच्छी समझ रखते थे। यही वजह थी कि उन्होंने अपनी फिल्मों में संगीत पक्ष को काफी महत्व दिया। उनकी फिल्मों का गीत-संगीत आज भी लोगों की जुबां से नहीं उतरा है। राज कपूर खुद भी वायलिन, पियानो, मेंडोलिन और तबला बजाना जानते थे। अपनी मेहनत, लगन और टैलेंट से राज कपूर ने बेहतरीन फिल्में देकर कपूर खानदान के नाम को ऊंचाइयों पर पहुंचाया। नर्गिस के साथ राज कपूर की जोड़ी हिट रही है। 1951 से 1956 के बीच राज कपूर की लगभग सभी फिल्मों में उनकी नायिका नर्गिस रहीं। नर्गिस के साथ राज कपूर ने कुल 16 फिल्में कीं, जिनमें से छह फिल्में आरके स्टूडियो की ही थी। लंबे समय तक काम करते हुए राज कपूर को नर्गिस से लगाव हो गया था। बाद में कुछ निजी वजहों के चलते उनकी यह जोड़ी बिखर गई। नर्गिस ने भी राज कपूर से किनारा कर लिया। 1956 में फिल्म 'चोरी-चोरी' में नर्गिस और राजकपूर अंतिम बार परदे पर एक साथ दिखे। कहा तो यहां तक जाता है कि नर्गिस से अलग होने के बाद राज कपूर काफी टूट गए थे।
1970 के आखिर में राज कपूर ने अपने समय की सबसे महंगी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' बनाई। इसे उनके जीवन की सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म माना जाता है। मगर दर्शकों का भरपूर प्यार इसे नहीं मिला। इसके बाद राजकपूर किसी दूसरी फिल्म में नायक के तौर पर नजर नहीं आए। फिल्म के न चलने से राज कपूर आर्थिक दबाव में आ गए। लोगों को ऐसा लगा कि राज कपूर खत्म हो गए। मगर राज कपूर हार कहां मानने वाले थे। उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया को लेकर किशोरवय प्रेम पर केंद्रित कहानी बुनी और इस पर फिल्म 'बॉबी' बनाई। 'बॉबी' ने सफलता के झंडे ही नहीं गाड़े, इस अकेली फिल्म ने आर्थिक संकट से घिरे राज कपूर को उबार दिया। 'बॉबी' के साथ ही सिल्वर स्क्रीन को ऋषि कपूर के रूप में बेहतरीन अभिनेता भी मिला। राज कपूर ने ज्वलंत मुद्दों पर भी कुछ बेहतरीन फिल्में बनाई हैं। इनमें 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'प्रेम रोग' और 'राम तेरी गंगा मैली' प्रमुख हैं।
राज कपूर को 11 बार फिल्म फेयर अवॉर्ड और तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया। 1960 की फिल्म 'अनाड़ी' और 1962 की फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। 1965 में 'संगम', 1970 में 'मेरा नाम जोकर' और 1983 में 'प्रेम रोग' के लिए उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड प्राप्त हुआ। राज कपूर को सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1971 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। 1987 में उन्हें सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया। इस पुरस्कार को राष्ट्रपति से प्राप्त करते समय उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। इसके बाद वो लगभग एक महीने तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते रहे। 02 जून, 1988 को राज कपूर इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए। राज कपूर हिंदी सिनेमा का वह नाम है, जो फिल्मी आकाश पर आज भी जगमगा रहा है। राज कपूर की फिल्मों में उनकी पहचान आंखों का भोलापन भी रहा है।
राज कपूर के चरित्र चाहे सीधे-सादे ग्रामीण के हों या मुंबई की चाल के युवा के। वो सब में आम हिंदुस्तानी नजर आते हैं। उनमें सादगी और अपने सामाजिक-भावनात्मक मूल्यों के प्रति लगाव के साथ आशावाद झलकता है। उन्होंने अपने चरित्रों में ऐसा नायक गढ़ा जो अपनी थाती, मूल्यों और जमीन से प्यार करता है। जो दस-बीस आदमियों को पीट नहीं सकता, लेकिन 'सही' के पक्ष में रहते हुए पिट जाने से कदम पीछे नहीं खींचता।
मुकुंद