फीचर्ड संपादकीय

धार्मिक स्थल बनेंगे उत्तर प्रदेश की समृद्धि की नींव

ayodhya
धार्मिक नगरी अयोध्या अब रामलला प्राण प्रतिष्ठा के बाद अध्यात्म का वैश्विक केन्द्र बन गई है। ऐसे में अब राम मंदिर निर्माण के बाद अयोध्या के भाग्य भी खुल गए हैं तथा राम मंदिर सहित काशी, नैमिषारण्य, राम वन गमन पथ व मथुरा कॉरिडोर उत्तर प्रदेश की समृद्धि की नई बुनियाद बनकर सामने आ रहे हैं। ध्यातत्व है कि बेहद लंबे से प्रदेश के यह दिव्य व अलौकिक धार्मिक स्थल राजनीतिक उपेक्षा का दंश झेलते आ रहे थे, जिन्हें वर्तमान की केन्द्र व प्रदेश सरकार ने संवारने, भव्यता प्रदान करने और वैश्विक पहचान बनाने का काम किया है। दशकों तक राजनीति का शिकार हुए इन धार्मिक स्थलों में हमेशा से अपार संभावनाएं मौजूद थीं और जाहिर तौर पर इसी के चलते इन्हें महज एक सही दिशा-निर्देशन और बेहतर लीडरशिप मात्र की तलाश थी। वर्तमान में काशी कॉरिडोर निर्माण, अयोध्या श्रीराम मंदिर निर्माण, नैमिषारण्य सहित अनेकों धार्मिक स्थल देश-विदेश के लिए पर्यटन और करोबार की भी केन्द्र बन गया है। इसके अनुरूप रामनगरी अयोध्या सहित समस्त प्रदेश के भाग्य खुल गए हैं। अयोध्या अब आध्यात्म के साथ कारोबार का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आर्थिक रूप अयोध्या में संपत्ति के दाम तेजी से बढ़ गए हैं। बीते कुल साल की तुलना करें तो अयोध्या में जमीन व मकान आदिक की कीमत में 10 गुना से भी अधिक की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। बता दें कि, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से जमीन की मांग तेजी से बढ़ी है तथा ऐसे में बीते दो साल में करीब 80 हजार जमीन की रजिस्ट्री हो गई हैं। विभागीय आंकड़ों की मानें तो साल 2018 के बाद से अयोध्या में जमीन औसतन 9-10 गुना महंगी हो चुकी है। एक अनुमानित तौर पर साल 2026 तक जमीन की कीमतों में करीब 300 फीसदी की और वृद्धि देखने को मिलेगी। इसी के साथ पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पहले अयोध्या में जहां हर साल करीब दो लाख श्रद्धालु रामलला के दर्शन को आते थे, वहीं अब भव्य प्रभु श्रीराम मंदिर निर्माण के बाद कि यह आंकड़ा सालाना करीब दो करोड़ तक पहुंच सकता है। इस बड़ी संख्या में आवागमन और पर्यटन में भारी इजाफे के चलते अयोध्या में हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष करीब 20 से 30 हजार लोगों को रोजगार हासिल होने की संभावना है। साथ हीस साल-दर-साल जैसे अयोध्या में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ेगी, जाहिर तौर पर वैसे ही यहां रोजगार सृजन भी तेजी से होगा। बता दें कि, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ ही भगवान राम के जीवन से जुड़े स्थानों को भी पहचान दी जाएगी। इसी के ध्यातत्व अशोक सिंघल फाउंडेशन ने अयोध्या से रामेश्वरम तक राम वन गमन मार्ग पर 290 शिलालेख स्थापित करने की बात सार्वजनिक की है। पिंक सैंड स्टोन के इन स्तंभों पर वाल्मीकि रामायण में वर्णित स्थलों के महत्त्व व स्थानीय कथाओं को अंकित किया जाएगा। इस दौरान प्रत्येक स्तंभ 120 वर्ग फीट क्षेत्र में स्थापित किए जाएंगे, जिसके लिए प्रशासन की अनुमति ले ली गई है। भगवान श्रीराम से जुड़े रामलला मंदिर व राम वन गमन पथ सहित काशी, नैमिषारण्य, व मथुरा कॉरिडोर भी उत्तर प्रदेश को समृद्ध बनाने में महती भूमिका निभाएंगे। राम वन गमन पथ- अयोध्या में भगवान राम मंदिर से लेकर चित्रकूट तक राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण का कार्य जारी है। ऐसे में इस राजमार्ग “राम वन-गमन मार्ग” के काम को पांच श्रेणियों में बांटा गया है, जिसे दिसंबर 2024 तक पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राम वन गमन मार्ग को केंद्र व प्रदेश सरकार ने साझा रूप से अपनी उच्च प्राथमिकता में रखा है। मार्ग के निर्माण की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग के राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग को दिया गया है। कुल चार लेन के राम वन गमन मार्ग की लंबाई 147.2 किमी की होगी। साथ ही इसमें कुल 49 किलोमीटर की दूरी को नवीन रूप से निर्मित किया जाएगा, क्योंकि यहां पहले से कोई सड़क नहीं है। कुल पांच पैकेज या श्रेणियों में निर्मित हो रहे राम वन गमन पथ की जानकारी- • 35 किमी की लंबाई, 264.86 करोड़ की लागत, जिला प्रतापगढ़ • 14.155 किमी की लंबाई, 697.66 करोड़ की लागत, जिला प्रतापगढ़ व प्रयागराज • 25.545 किमी की लंबाई, 1156.72 करोड़ की लागत, जिला कौशांबी • 38.250 किमी की लंबाई, 1141.67 करोड़ की लागत, जिला कौशांबी, फतेहपुर व चित्रकूट • 34.250 किमी की लंबाई, 1141.67 करोड़ की लागत, जिला चित्रकूट ऐसे में उत्तर लोक निर्माण विभाग द्वारा जारी जानकारी के मुताबिक राम वन गमन पथ राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण को शीर्ष प्राथमिकता में रखा गया है। इस पथ के निर्माण के साथ ही प्रभु श्रीराम के चरणों के निशान को सरकार द्वारा नवोन्मेषित रूप देकर उसका भव्य विकास किया जा रहा है। बता दें कि, भारत के दस राज्यों में फैले इस मार्ग में 248 स्थानों की पहचान की गई है, जो भगवान राम के वनवास से जुड़े हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा, कर्नाटक महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के 248 स्थलों को सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से विकसित किया जाएगा। उत्तर प्रदेश में राम वन गमन पथ के प्रमुख स्थलों में 37 स्थान शामिल हैं, जिसमें अयोध्या, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद प्रमुख जगहे हैं। बता दें कि 4,400 करोड़ रुपए की लागत से 210 किलोमीटर क्षेत्र में स्थित इन स्थलों को सड़क मार्ग से जोड़ा जाएगा। इसमें तमसा नदी क्षेत्र, श्रृंगवेरपुर (निषादराज गुह राज्य), प्रयागराज वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम और भरतकूप तीर्थ स्थल शामिल हैं। इसी के साथ मध्य प्रदेश में राम वन गमन पथ से जुड़े प्रमुख स्थलों में चित्रकूट (मध्य प्रदेश), सतना, अमरकंटक, पन्ना, जबलपुर, विदिशा आदि जनपद शामिल हैं। छत्तीसगढ़ भगवान राम का ननिहाल है। राज्य में भगवान श्रीराम से जुड़े सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुलिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहाव सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर), रामाराम (सुकमा) आदि शामिल हैं। इसी के साथ महाराष्ट्र में राम वन गमन पथ के प्रमुख स्थलों में रामटेक, नासिक, तुलजापुर, नलदुर्ग आदि शामिल हैं।

काशी-

[caption id="attachment_763077" align="alignnone" width="700"] National[/caption] वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण से यह देश की आध्यात्मिक चेतना के साथ ही आर्थिक विकास की भी धुरी बन गया है। साल 2021 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर उद्घाटन के के दौरान तक करीब 69 लाख लोगों ने भगवान विश्वनाथ के दर्शन किए थे, जो कि साल 2023 में यह आंकड़ा 13 करोड़ की संख्या को भी पार कर गया है। आंकड़ों पर नजर डालें तो महज दो वर्ष के भीतर काशी में श्रद्धालुओं की संख्या में 20 गुना की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। इसी के साथ अब वाराणसी में पर्यटन व हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में रोजगार के अलावा यहां काम करने वाले लोगों की आय में भी भारी इजाफा देखने को मिला है। आंकड़ों के तगत रोजगार में 34.18 फीसदी की वृद्धि हुई है। बता दें कि, एक ओर जहां साल 2021 से पहले काशी विश्वनाथ मंदिर एक 03 हजार वर्ग फीट के महज एक सामान्य घर जितने क्षेत्र में फैला था। वह अब 05 लाख वर्ग फीट में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की दिव्यता और भव्यता को सहेजे हुए है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की भव्यता और इससे होने वाली प्रदेश की समृद्धि को संक्षेप में वर्णित करें तो यह महज एक ईंट-पत्थर की इमारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म की महिमा के पुनरुत्थान का आरंभ है। ऐसे में सबसे अहम व दिलचस्प बात यह है कि धर्म और आध्यात्मिक नगरी काशी का प्रदेश में 01 लाख करोड़ डॉलर और देश में 05 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था का योगदान दे रही है। अब वाराणसी सहित प्रदेशभर के लोग काशी के बढ़ते वैभव के साथ समृद्धि हासिल कर रहे हैं। पीएम मोदी ने काशी कॉरिडोर के उद्घाटन में कहा था कि विश्वनाथ धाम सिर्फ एक भव्य इमारत नहीं बल्कि यह सनातन संस्कृति, हमारी आध्यात्मिक आत्मा और भारत की प्राचीनतम परंपराओं, ऊर्जा व गतिशीलता का प्रतीक है।

मथुरा-

काशी और अयोध्या के बाद अब जल्द ही मथुरा में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्मित होने जा रहा है। इसके साथ ही कृष्ण नगरी भी अब जल्द ही अयोध्या व काशी की भांति देश-प्रदेश की समृद्धि में अहम भूमिका में रहेगा तथा जाहिर तौर पर मथुरा में बांके बिहारी कॉरिडोर निर्माण से रोजगार के भी कई अवसर सृति होंगे। जानकारी के मुताबिक बांके बिहारी मंदिर तक पहुंचने के लिए कुल तीन रास्तों का निर्माण किया जिसमें पहला मार्ग जुगलघाट से मंदिर, दूसरा मार्ग विद्यापीठ चौराहे से मंदिर तथा तीसरा व अंतिम मार्ग जादौन पार्किंग से मंदिर की ओर रहेगा। इस दौरान 05 एकड़ क्षेत्रफल में बांके बिहारी कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा। बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण के बाद इसमें 10 हजार श्रद्धालुओं के मंदिर परिसर में ही ठहरने का इंतजाम किया जा सकेगा। बता दें कि, कॉरिडोर की दो मंजिला ऊंचाई होगी तथा प्रवेश परिसर का निचला तल 11,300 वर्ग मीटर का होगा। इसके साथ ही 800 वर्ग मीटर में पूजा सामग्री की दुकानें के लिए स्थान निर्धारित किया जाएगा। वहीं, 800 वर्गमीटर में कान्हा लीला से जुड़े चित्रों के लिए जगह निर्धारित होगी तथा 5,113 वर्गमीटर का क्षेत्र पूर्ण रूप से खुला रखा जाएगा। बता दें कि, प्रदेश की उच्च न्यायालय की ओर से उप्र सरकार को बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण को हरी झंडी मिल चुकी है। इस दौरान मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने आनंद शर्मा और मथुरा के एक अन्य व्यक्ति की जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया है। पूर्व मे प्रदेश सरकार ने आश्वासन दिया था कि मथुरा बांके बिहारी मंदिर में गोस्वामी परिवार द्वारा संपन्न होने वाली पूजा-अर्चना में वह कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी तथा उनके अधिकार यथावत बने रहेंगे। जानकारों के मुताबिक मथुरा कॉरिडोर निर्माण के पश्चात मथुरा के पर्यटन उद्योग में जबरदस्त तरीके से इजाफा होगा। इसको हम काशी कॉरिडोर और अयोध्या श्रीराम मंदिर निर्माण के उदाहरण से समझ सकते हैं। Religious places will become the foundation अनुमानित तौर पर बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण के बाद वर्तमान की तुलना में दोगुनी संख्या में श्रद्धालु यहां विचरण करेंगे। स्थानीय प्रशासन और कारोबारियों के मुताबिक जैसे-जैसे सुविधाओं में विस्तार होगा, वैसे-वैसे लोगों का रुझान भी मथुरा के प्रति बढ़ता जाएगा। पर्यटन विभाग के मुताबिक मथुरा विदेशी पर्यटकों का चर्चित केन्द्र हैं। साल 2022 में 89,689 विदेशी काशी पहुंचे तो वहीं, 1,15,858 विदेशी पर्यटक मथुरा पहुंचे थे। इन आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में आगरा के बाद सबसे अधिक विदेशी पर्यटक भगवान बांके बिहारी की नगरी जाते हैं। नैमिषारण्य- नैमिषारण्य को प्राथमिकता के साथ एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थली के रूप में विकसित किया जा रहा है। एक ओर जहां नैमिषारण्य धाम में नवीन स्थलों, मंदिरों आदि का निर्माण हो गया है, वहीं आगे की दिव्य व भव्य योजना को विस्तार देने की तैयारी भी की जा रही है। केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत नैमिषारण्य को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए चुना गया है। प्रदेश व केन्द्र सरकार प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पूरी क्षमता का उपयोग कर रही है। इस दौरान योजना के अंतर्गत नैमिषारण्य के एकीकृत विकास के लिए विशेषज्ञ टीम का चयन किया जा रहा है। नैमिषारण्य व आस-पास के धार्मिक स्थलों के 88 हजार ऋषियों के पवित्र धाम व उनके पौराणिक महत्व को संजोने व महत्वता प्रदान करने के उद्देश्य से राज्य की योगी सरकार समूचे क्षेत्र का पर्यटन की दृष्टि से कायाकल्प करेगी, जिसके लिए सरकार ने 'श्री नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद' का गठन किया है और इसमें परिषद के अंतर्गत सीतापुर तथा हरदोई जिले के कुल 36 गांवों को शामिल किया है। इस क्षेत्र को वैदिक, आध्यात्मिक, धार्मिक और इको-टूरिज्म के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। नैमिषारण्य तीर्थ के इन प्रमुख बिंदुओं पर नजर डालें- • नैमिषारण्य तीर्थ जिला सीतापुर मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के किनारे स्थित है। • नैमिषारण्य स्थित कुल 108 पीठ में से मां ललिता देवी शक्तिपीठ का विशेष महत्व व योगदान है। • नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र में नवरात्रि पर्व के मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। • पौराणिक मान्यता के अनुसार नैमिषारण्य में विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र गिरा था और ऐसा माना जाता है कि उस स्थान पर आज भी पाताल लोक से पानी आता है। • नैमिषारण्य में अन्य देव स्थल भी मौजूद यह भी पढे़ंः-Yashasvi Jaiswal ने टेस्ट क्रिकेट में मचाया तहलका, बड़े-बड़े बल्लेबाजों को छोड़ा पीछे बता दें कि, 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र में शक्ति पीठ मां ललिता देवी के अलावा, हनुमान गढ़ी, देव देवेश्वर, वेद व्यास स्थली, रुद्रावर्त, मां कालिका देवी मंदिर आदि धार्मिल स्थल मौजूद हैं। मान्यता है कि देवताओं को तपस्या के लिए धरती पर स्थित नैमिषारण्य में ही तप करने का स्थान सुनिश्चित किया गया था और इसी के चलते पृथ्वी पर मौजूद सभी तीर्थों में से नैमिषारण्य तीर्थ की मान्यता अधिक मानी जाती है। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)