
बेगूसराय: लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से हर ओर शोक की लहर छा गई है। सबसे अधिक मर्माहत बेगूसराय के गढ़पुरा के लोग हुए हैं। भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने वाले रामविलास पासवान ने राजनीतिक सफर अपने ननिहाल गढ़पुरा से ही शुरू किया था। उनका जन्म खगड़िया जिला के गांव शहरबन्नी में हुआ था, लेकिन उन्होंने प्राथमिक से लेकर हाईस्कूल तक की शिक्षा ननिहाल गढ़पुरा में ही रहकर पूरी की।
गढ़पुरा हाई स्कूल के बाद उन्होंने कोशी कॉलेज खगड़िया में दाखिला लिया था। साथ में नौकरी की तैयारी भी कर रहे थे, पढ़ने में बचपन से ही तेज रामविलास पासवान ने डीएसपी बनने के लिए पीएसी की परीक्षा भी पास कर ली थी। इसी दौरान राजनीति का चस्का लगा तो उनके पिता ने विरोध किया। इसके बाद रामविलास पासवान ने गढ़पुरा निवासी अपने ममेरे भाई आनंदी पासवान से पिताजी को मनाने का अनुरोध किया। बड़ी मशक्कत के बाद पिताजी तैयार हुए। उसके बाद रामविलास पासवान राजनीति की राह पर चल पड़े। राजनीति में उनके गुरु बने गढ़पुरा निवासी रामकिशुन मुखिया, आनंदी मुखिया और मथुरा सहनी।
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1960 के दशक में गढ़पुरा में प्रत्येक दिन देर शाम बैठकी लगती थी, जिसमें रामविलास पासवान को राजनीति के तौर-तरीकों से अवगत कराया जाता था। दो से तीन घंटे तक लगने वाली इस बैठकी में राजनीति के तमाम मुद्दों पर बात होती थी। समाजवाद से लेकर विकासवाद तक की चर्चा होती थी और ऐसी चर्चा ने उन्हें राजनीतिक संबल प्रदान करते हुए प्रशिक्षित कर दिया। समाजवादी नेता रामजीवन सिंह ने उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ने की अपील की। रामकिशुन मुखिया ने उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जोड़ा और राजनीति में आगे बढ़ने की शिक्षा देते रहे।
रामविलास पासवान 1969 में जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अलौली (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बने तो गढ़पुरा के दर्जनों लोगों ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली और वह विधायक बन गए। इसी साल डीएसपी के पद पर नौकरी के लिए भी चुने गए, लेकिन नौकरी छोड़कर राजनीति को चुना और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रामविलास पासवान के प्रयास से ही 1992 में उनकी उपस्थिति में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गढ़पुरा प्रखंड का उद्घाटन किया। बाद में इन्हीं के प्रयास से बखरी अनुमंडल बना।
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2010 में रामविलास पासवान केंद्रीय इस्पात मंत्री थे तो स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के सहयोग से गढ़पुरा को स्टील ग्राम बनाने का शिलान्यास किया था। उनका यह सपना अधूरा ही रह गया और गढ़पुरा स्टील ग्राम नहीं बन सका लेकिन अपने अंतिम समय तक वे गढ़पुरा इलाके के लोगों के लिए समर्पित रहे, कोई भी जाता था तो उनसे मिलते थे। संयोग की बात देखिए, उनका पहली ससुराल भी गढ़पुरा प्रखंड क्षेत्र के खखरुआ में है। यहीं की राजकुमारी देवी के साथ उनकी शादी हुई थी। बाद में उन्होंने भले ही दूसरी शादी कर ली, लेकिन अपने पहली ससुराल को नहीं भूले। निधन की जानकारी पाते ही उनकेेे ससुराल में कोहराम मच गया है।
गढ़पुरा के लोगों को आज भी याद है जब पढ़ाई से लेकर राजनीतिक सफर की शुरूआत तक में घर-घर के लोग उन्हें मकई का भूंजा खिलाते थे। गढ़पुरा निवासी आनंदी पासवान कहते हैं कि रामविलास जी का जाना हम लोगों को रुला गया। लेकिन गढ़पुरा के लोग उन्हें न तो कभी भूले थे और न ही कभी भूलेंगे। यहां से उनका खून का रिश्ता था और वह रिश्ता आगे भी रहेगा, वे यहां के जन-जन में कण-कण में बसे हुए हैं।