छत्तीसगढ़

कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन 9 अगस्त को

Farmers protest against the construction of the Megadathu dam by the Karnataka government

रायपुरः संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के आह्वान पर नौ अगस्त को पूरे छत्तीसगढ़ में भी ''भारत बचाओ, कॉर्पोरेट भगाओ'' के नारे के साथ किसान आंदोलन करेंगे। यह आंदोलन कॉर्पोरेट परस्त तीन किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने तथा फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने और किसानों की पूरी फसल की सरकारी खरीदी का कानून बनाने तथा बिजली कानून में जन विरोधी संशोधनों को वापस लेने की मांग पर आयोजित किया जा रहा है।

किसानों ने इन मुद्दों पर की सरकार से मांग

इसकी जानकारी छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने दी। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में खाद-बीज की कमी और बाजार में कालाबाज़ारी पर रोक लगाने, बिजली दरों में की गई वृद्धि वापस लेने, सिलगेर जन संहार को केंद्र में रखकर आदिवासियों पर हो रहे राज्य प्रायोजित दमन तथा विस्थापन पर रोक लगाने तथा इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को सजा देने, प्रदेश के कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधान लागू करने जैसे मुद्दे भी आंदोलनकारी किसानों की मांगों में शामिल हैं।

इसके साथ ही कोरोना संकट के मद्देनजर मनरेगा में 200 दिन काम देने, आयकर दायरे से बाहर हर परिवार को प्रति माह 7500 रुपये की नगद मदद करने तथा प्रति व्यक्ति हर माह 10 किलो अनाज सहित राशन किट मुफ्त देने की मांग की जा रही है।

किसान सभा नेताओं ने बताया कि कोरोना संकट के मद्देनजर हर जिले में आंदोलन का स्वरूप अलग-अलग होगा। किसानों-आदिवासियों के इस आंदोलन को सीटू सहित विभिन्न मजदूर संगठनों और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी वामपंथी पार्टियों ने भी अपना समर्थन दिया है। इन मांगों पर पूरे प्रदेश में छग किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा द्वारा 25 जुलाई से अभियान चलाया जा रहा है।

सबसे बड़ा नुकसान देश के गरीबों और किसानों को होगा

किसान सभा नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह संसदीय प्रक्रिया को ताक पर रखकर और देश के किसानों व राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये तीन कृषि कानून बनाये हैं, ये कानून अपनी ही खेती पर किसानों को कॉरपोरेटों का गुलाम बनाने का कानून है।

इन कानूनों के कारण निकट भविष्य में देश की खाद्यान्न आत्म-निर्भरता ख़त्म हो जाएगी, क्योंकि जब सरकारी खरीद रूक जायेगी, तो इसके भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था भी समाप्त हो जायेगी। इसका सबसे बड़ा नुकसान देश के गरीबों, भूमिहीन खेत मजदूरों और सीमांत व लघु किसानों को उठाना पड़ेगा।

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