भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे बिहार के शिक्षामंत्री मेवालाल चौधरी ने शपथग्रहण के तीन दिनों के भीतर अपने पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन यह प्रकरण कई सवाल भी छोड़ गया। सवाल यह है कि अगर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उनका इस्तीफा हो सकता है तो बिहार के अन्य विधायकों और मंत्रियों को, यह जानते हुए भी कि वे अपराधी हैं, अपने पद पर क्यों बने रहना चाहिए? यह तो नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है। भ्रष्टाचार में लिप्त किसी भी व्यक्ति को मंत्री बनाना तो दूर किसी अपराधी व भ्रष्टाचारी को राजनीतिक दलों का टिकट भी नहीं मिलना चाहिए। राजनीतिक दल एक ओर शुचिता और पारदर्शिता का दम भरते हैं, दूसरी ओर ऐसे लोगों को चुनाव मैदान में उतारते हैं जो अपराधी और बाहुबली हों। करोड़पति, लखपति और अरबपति हों।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने पूछा है कि मेवालाल चौधरी अगर शिक्षा मंत्री रहते तो इससे शिक्षा व्यवस्था का क्या होता? सवाल बेहद सामयिक है लेकिन इस सवाल से और भी कई सवाल उपजते हैं, जिसपर तेजस्वी यादव या उन सरीखे अन्य नीतीश विरोधियों ने ध्यान नहीं दिया।
ऐसे विधायक जो खुद स्वीकार कर रहे हैं कि वे अपराधी हैं, उन्हें टिकट देकर और चुनाव जिताकर क्या विपक्ष ने अपराध नहीं किया है? वे जितने दोषी हैं, उससे अधिक दोषी तो वे राजनीतिक दल हैं जिन्होंने ऐसा गुनाह किया और जनभावनाओं के साथ खेलने की कोशिश की? क्या कभी यह जानने-समझने की कोशिश की गई कि कक्षा आठ, कक्षा दस और कक्षा 12 पास विधायक और इसी योग्यता पर कदाचित मंत्री बन चुकी शख्सियतें जनता के आखिर किस काम की हैं? मेवालाल को शिक्षा विभाग का मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए था। यह जानते हुए भी कि उनपर पांच साल पहले बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर में असिस्टेंट प्रोफेसरों और तकनीकी सहायकों की नियुक्ति में गड़बड़ी करने का आरोप है। उनपर अपनी पत्नी की कथित तौर पर हत्या का आरोप है लेकिन मुख्यमंत्री पर सीधे हमलावर हो जाने से पहले मेवालाल के स्पष्टीकरण पर तो विचार कर लिया गया होता।
राजनीतिक विरोध के लिए लालू प्रसाद यादव तक ने नीतीश कुमार पर मेवालाल से मेवा खाने का आरोप लगा दिया। यह तो वही बात हुई कि 'सब बोलय तो बोलय चलनियो बोलय जेकरे बहत्तर छेद।' लालू यादव ने तो अपने मुख्यमंत्रित्व काल में स्कूटर पर पंजाब से भैंस लाने, कोलतार पीने ओर पशुओं का चारा हजम करने का अपराध किया था। खुद तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग को अपने बारे में जानकारी दी है कि उनपर कई आपराधिक केस दर्ज। है। घारा 420 और 120 बी के तहत केस दर्ज है। ऐसा व्यक्ति अगर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हो सकता हे और मंत्रियों जैसी सरकारी सुविधा हासिल कर सकता है तो मेवालाल जो कुलपति रह चुके हैं ओर तेजस्वी से अनुभवी भी अधिक हैं और उनसे ज्यादा शिक्षित भी हैं, बिहार के शिक्षा मंत्री क्यों नहीं हो सकते?
गौरतलब है कि बिहार में नवगठित नीतीश मंत्रिमंडल के 14 मंत्रियों में से आठ ने एडीआर रिपोर्ट में अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी है। एडीआर की रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि राष्ट्रीय जनता दल के 54 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। भाजपा के 73 में से 47, जदयू के 43 में से 20, कांग्रेस के 19 में से 16 पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। नैतिकता का तकाजा तो यह है कि किसी भी अपराधी को चाहे वह छोटा अपराधी हो या बड़ा, जनप्रतिनिधि नहीं बनना चाहिए और अगर वे विधायक या मंत्री बन भी गए तो उन्हें मेवालाल चौधरी की तरह ही इस्तीफे दे देने चाहिए। मेवालाल चौधरी
विधानसभा चुनाव में तारापुर सीट से निर्वाचित हुए थे। उनके इस्तीफे को राज्यपाल फागू चौहान ने स्वीकार कर लिया है। हालांकि मेवालाल चौधरी ने अपनी सफाई देते हुए कहा है कि वे नियुक्तियों में सीधे तौर पर शामिल नहीं थे। कुलपति के रूप में, वे केवल विशेषज्ञों की समिति के अध्यक्ष थे जिसे भर्ती का काम सौंपा गया था। इसके अलावा, किसी भी अदालत ने मुझे दोषी नहीं ठहराया है और न ही मेरे खिलाफ कोई चार्जशीट दायर की गई है। उनका नाम 2017 में भागलपुर जिले के बिहार कृषि विश्वविद्यालय में सहायक शिक्षकों और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की नियुक्तियों में अनियमितता से संबंधित दर्ज एक प्राथमिकी में आया था।
जद (यू) प्रमुख के करीबी माने जाने वाले, चौधरी को कुलपति के तौर पर 2010 में नियुक्त किया गया था और पांच साल बाद अपने कार्यकाल की समाप्ति पर तारापुर विधानसभा सीट से पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुए थे, जिसे उन्होंने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बरकरार रखा। राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जो उस समय विपक्ष में थे और भ्रष्टाचार के मामले में उन्होंने उनके खिलाफ खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। हालांकि, उन्होंने 2010-15 में तारापुर से विधायक रहीं और पिछले साल गैस सिलिंडर विस्फोट में मारी गई अपनी पत्नी अपनी पत्नी नीता की मृत्यु पर कुछ लोगों द्वारा संदेह जताए जाने पर नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि वे उन लोगों को कानूनी नोटिस भेज रहे हैं जो उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। वे उनपर 50 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग करेंगे।
तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा कि जनादेश के माध्यम से बिहार ने हमें एक आदेश दिया है कि आपकी यानी नीतीश कुमार की भ्रष्ट नीति, नीयत और नियम के खिलाफ आपको आगाह करते रहें। महज एक इस्तीफे से बात नहीं बनेगी। अभी तो 19 लाख नौकरियां, संविदा और समान काम-समान वेतन जैसे अनेकों जन सरोकार के मुद्दों पर मिलेंगे। मैंने कहा था न आप थक चुके हैं । इसलिए आपकी सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो चुकी है। जानबूझकर भ्रष्टाचारी को मंत्री बनाया, थू-थू के बावजूद पदभार ग्रहण कराया, घंटे बाद इस्तीफे का नाटक रचाया। असली गुनहगार आप हैं। आपने मंत्री क्यों बनाया? आपका दोहरापन और नौटंकी अब चलने नहीं दी जाएगी।
यह भी पढ़ेंः-नंदबाबा मंदिर में नमाज अदा करने के मामले में आरोपियों को राहत नहींमंत्री तो अच्छे लोगों को ही बनना चाहिए। पढ़े-लिखे लोगों को ही बनना चाहिए लेकिन विरोध कैसे किया जाना चाहिए, यह बिहार में नेता प्रतिपक्ष को सीखना चाहिए। जनादेश का सम्मान इसी में है कि राजनीतिक दल अतीत की गलतियों से उबरें और कुछ ऐसा करें जिससे बिहार का सर्वांगीण विकास हो। विरोध करने का हक उसे ही है जिसका अपना दामन पाक-साफ हो। शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते, यह बात राजनीतिक दलों को जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, लोकतंत्र की भालाई का उसी क्षण मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
सियाराम पांडेय