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इंडी गठबंधन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का संदेह और ममता की ललकार

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जब एक के बाद एक घटनाएं क्रमबद्ध शृंखला में घटें तो समझदार व्यक्ति भविष्य का पता लगातार आगे के निर्णय बहुत सोच समझ कर लेता है, किंतु नासमझ अपने लिए जाने वाले निर्णय में देरी करता है या चूक जाता है और स्वयं का ही जाने-अनजाने में बहुत बड़ा नुकसान करा बैठता है। देश के कई राज्यों में बड़ी ही चतुराई से भाजपा को छोड़कर कांग्रेस समेत तमाम दलों की सत्ताओं ने संविधान के विरोध में जाकर धर्म के आधार पर आरक्षण देने का काम कर दिया है, अब जहां राज्यों के स्तर पर इस व्यवस्था को बंद कराना है, वहीं केंद्र में ऐसी व्यवस्था के भविष्य में होने वाली हर संभावना को रोकना है, लेकिन यह होगा कैसे? जब राज्य सरकारें यदि खुले तौर पर न्यायालय को ही चुनौती देने लगेंगी!

पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने जिस तरह से न्यायालय के निर्णय पर उंगली उठाई है, आज उससे तो यही लग रहा है कि अपनी सुविधा और राजनीतिक वोट बैंक के स्वार्थ के लिए भारतीय संविधान की जितनी अवमानना की जा सकती है, वह की जाती रहेगी, लेकिन सामनेवाले को घेरने के लिए उसी संविधान की आड़ भी ली जाती रहेगी । इस घटना से साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो चुनावी रैलियों में इंडी गठबंधन के सत्ता में आते ही एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण को मुसलमानों को दे देनी की बात कह रहे हैं, वह सच ही है!

प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों समेत पूरे इंडी गठबंधन पर धर्म के आधार पर आरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं । साथ ही यह भी कह रहे हैं कि जब तक मोदी जिंदा है, मैं दलितों का, एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण धर्म के आधार पर मुसलमानों को नहीं देने दूंगा। धर्म के आधार पर आरक्षण भारतीय संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों के खिलाफ है।

क्या कहते हैं आंकड़े

अब आप न्यायालय द्वारा इस निर्णय को देखिए, कलकत्ता हाई कोर्ट ने 22 मई को पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने का आदेश दिया है। जस्टिस तपोब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथर की बेंच ने कहा कि 2011 से प्रशासन ने किसी नियम का पालन किए बगैर ओबीसी सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए । इस तरह से ओबीसी सर्टिफिकेट देना असंवैधानिक है। इसलिए इन सभी सर्टिफिकेट को कैंसिल कर दिया गया है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर ओबीसी की नई सूची पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग तैयार करेगी।

तपोब्रत चक्रवर्ती की बेंच ने कहा, 'ओबीसी किसे माना जाएगा, इसका फैसला विधानसभा करेगी। बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण को इसकी सूची तैयार करनी होगी। राज्य सरकार उस लिस्ट को विधानसभा में पेश करेगी।' हाई कोर्ट के फैसले के तुरंत बार बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ और ऊंची आवाज में कहा है कि वे हाई कोर्ट के आदेश को नहीं मानेंगी। एक रैली में ममता ने कहा कि जरा इन लोगों की हिम्मत तो देखिए। ये हमारे देश का एक कलंकित अध्याय है।

वस्तुत: ममता सरकार के ओबीसी आरक्षण देने के फैसले के खिलाफ 2011 में जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इसमें दावा किया गया कि 2010 के बाद दिए गए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट 1993 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम को दरकिनार कर दिए गए। याचिका में ये भी कहा गया कि जो लोग वास्तव में पिछड़े वर्ग से थे, उन्हें उनके सही सर्टिफिकेट नहीं दिए गए। अब 13 साल बाद फैसला आया है, जिस पर भी आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल कितने लाख लोग गैर संविधानिक तरीके से आरक्षण का लाभ ममता राज में उठा चुके हैं, जिसमें कि अधिकांश एक विशेष वर्ग इस्लाम को माननेवाले मुसलमान हैं।

एनसीबीसी ने लगाए थे गंभीर आरोप

इस पूरे प्रकरण में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की प्रतिक्रिया भी सामने आई है, उन्होंने साफ कहा है कि यह पूरा मामला मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल करने का है, ममता बनर्जी ओबीसी आरक्षण खत्म करना चाहती थीं। मुसलमानों को ओबीसी में शामिल किया गया । एससी, एसटी और पिछड़ों का आरक्षण छीनकर यह मुस्लिमों को देना चाहते हैं लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। शाह कहते हैं, "ममता बनर्जी सर्वे कराए बिना 118 मुसलमानों को आरक्षण दिया। अब कोई कोर्ट चला गया तो अदालत ने मामले पर संज्ञान लेते हुए 2010 से 2024 के बीच दिए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द कर दिए । अब ममता बनर्जी कह रही हैं कि वो कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेंगीं । मैं जनता से पूछना चाहता हूं कि क्या कोई ऐसा मुख्यमंत्री होगा जो कहेगा कि वो कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेगा। मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं।"

पिछले साल राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने पश्चिम बंगाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे । उन्होंने कहा कि बंगाल की ओबीसी सूची में बांग्लादेशी प्रवासियों और कुछ रोहिंग्याओं को शामिल किए जाने की भी शिकायतें मिली हैं। बंगाल राज्य सूची में 179 ओबीसी समूहों में से 118 मुस्लिम समुदाय के हैं। एनसीबीसी मामले की जांच कर रहा है और राज्य से समस्या का समाधान करने को कहा है। एनसीबीसी प्रमुख हंसराज अहीर का कहना है कि इतनी सारी मुस्लिम जातियों को ओबीसी का दर्जा देने के पीछे तुष्टिकरण की राजनीति है। बंगाल में ओबीसी समुदायों को श्रेणी ए और बी में विभाजित किया गया है। श्रेणी ए में अधिक संख्या में पिछड़ी जातियां सूचीबद्ध हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत मुस्लिम जातियां हैं। उन्होंने दावा किया कि श्रेणी बी में, जिसका लाभ कम है उसमें 54 प्रतिशत हिंदू जातियां हैं। अहीर बोले कि मेडिकल कॉलेजों में श्रेणी ए के तहत 91.5 प्रतिशत मुस्लिम और 8.5 प्रतिशत हिंदू पाए गए।

कहना होगा कि 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाने के लिए उनकी कई जातियों को ओबीसी की लिस्ट में जोड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य की नौकरी या अन्य सरकारी योजनाओं में आरक्षण का 90 प्रतिशत से अधिक फायदा मुस्लिमों को मिला है। इसको लेकर ओबीसी आयोग ने सरकार पर सवाल भी उठाए। सरकार के संचालित सांस्कृतिक शोध संस्थान की एक रिपोर्ट में भी बताया गया है कि भारत आए बांग्लादेशी मुसलमानों को भी ओबीसी सूची में शामिल कर लिया गया। बंगाल की तरह ही आरक्षण का विवाद आज तेलंगाना, तमिलनाडु केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक से भी जुड़ा है।

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यानी कुल निष्कर्ष यही है कि इंडी गठबंधन यदि केंद्र की सत्ता में आ गया तो पूरे देश में यह नई व्यवस्था लागू हो जाएगी, जिसमें अजा, जनजा और पिछड़े वर्ग का आरक्षण बहुत अधिक हद तक पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की तरह ही अन्य सभी राज्यों में मुसलमानों को दे दिया जाएगा। अब विचार आपको करना है (आम नागरिक) देश के लिए क्या सही है और क्या गलत।

 डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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