Himachal Pradesh शिमलाः हिमाचल के मतदाताओं ने सियासी पिच पर बड़े-बड़े नेताओं को मात दी है। यहां तक कि राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों दिवंगत वीरभद्र सिंह, शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल (Virbhadra Singh, Shanta Kumar and Prem Kumar Dhumal) को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री विद्या स्टोक्स, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर, दिवंगत जीएस बाली, गुलाब सिंह ठाकुर (BJPNational President JP Nadda, senior Congress leader and former minister Vidya Stokes, State Congress President Pratibha Singh, former minister Kaul Singh Thakur, late GS Bali, Gulab Singh Thakur.) इत्यादि को भी यहां के वोटर चुनाव के समय दिन में तारे दिखा चुके हैं।
महज चार लोकसभा सीटों वाला हिमाचल बेशक छोटे राज्यों में से एक है, लेकिन यहां की राजनीति का दायरा देशव्यापी है। मौसम की तरह नेताओं का मूड और जनता की राय का अंदाजा लगाना भी मुश्किल माना जाता है। यही कारण है कि हिमाचल की धरती पर राजनीति के सूरमाओं को भी अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा है।
हिमाचल में दिग्गजों की हार का सबसे बड़ा उलटफेर विधानसभा चुनाव में हुआ है। लोकसभा चुनाव में बड़े नेताओं की हार की बात करें तो धूमल, शांता, वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह को हार का सामना करना पड़ा। राज्य के मतदाताओं के पास चौंकाने वाले परिणाम देने का एक लंबा और इतिहास है। यहां मतदाता जिस नेता पर कभी भरोसा करते थे, उसे हार का स्वाद चखाने में देर नहीं करते।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में धूमल की हार
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने 1984 में पहला लोकसभा चुनाव हमीरपुर से लड़ा था। उस समय कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण धूमल की हार हुई थी। हालाँकि, इसके बाद अगले दो लोकसभा चुनाव जीतकर उनका राजनीतिक कद बढ़ गया। वर्ष 1996 में धूमल कांग्रेस के मेजर जनरल बिक्रम जीत से हार गये। इसके बाद धूमल ने प्रदेश की राजनीति की ओर रुख किया और लगातार चार बार विधायक का चुनाव जीता। वह दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र राणा ने धूमल को हराकर सियासी सनसनी मचा दी थी। उस वक्त बीजेपी ने धूमल को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था।
छह बार सीएम रहे वीरभद्र भी हार गए
हिमाचल की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता और छह बार सीएम रहे वीरभद्र सिंह को भी विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 1990 में जब वीरभद्र सिंह ने दो जगह रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई से चुनाव लड़ा था। वीरभद्र सिंह रोहड़ू से जीते, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय ठाकुर राम लाल ने उन्हें जुब्बल कोटखाई से हरा दिया। ये वही रामलाल हैं जो वीरभद्र सिंह से पहले हिमाचल के मुख्यमंत्री थे। कांग्रेस ने ठाकुर राम लाल की जगह वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाया था। ठाकुर राम लाल ने 1990 का चुनाव जनता दल के टिकट पर लड़ा था। इससे पहले वीरभद्र सिंह को 1977 में मंडी संसदीय क्षेत्र से 35 हजार 505 वोटों की बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में उन्हें बीएलडी नेता गंगा सिंह ने हराया था।
अंत्योदय योजना लाने वाले शांता कुमार चुनाव हार गये
अंत्योदय योजना लाने वाले और दो बार मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार 1993 में विधानसभा चुनाव हार गए। एक साधारण कांग्रेस कार्यकर्ता मान चंद राणा ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद 1996 और 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कांगड़ा लोकसभा सीट पर हार मिली। 1996 के लोकसभा चुनाव में शांता कुमार 37 हजार 524 वोटों से चुनाव हार गये। उन्हें ये हार कांग्रेस के सत महाजन से मिली थी। 2004 के आम चुनाव में शांता कुमार अपनी दूसरी राजनीतिक पारी हार गए। इस चुनाव में उनके खिलाफ मौजूदा कृषि मंत्री चंद्र कुमार मैदान में थे। चंद्र कुमार ने शांता कुमार को 17 हजार 791 वोटों से हराया।
वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह दो बार हारीं
पराजित दिग्गजों की सूची में वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह भी शामिल हैं। उन्हें दो बार लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। 1998 के लोकसभा चुनाव में प्रतिभा सिंह को बीजेपी के महेश्वर सिंह ने 1 लाख 31 हजार 832 वोटों के अंतर से हराया था। इसके बाद 2014 में जब देश में मोदी लहर चल रही थी तो इस लहर में कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह लोकसभा सीट नहीं बचा पाईं और बीजेपी के रामस्वरूप शर्मा ने प्रतिभा सिंह को करीब 40 हजार वोटों से हरा दिया। हालांकि, साल 2021 में मंडी सीट पर हुए उपचुनाव में प्रतिभा सिंह ने बीजेपी के खुशाल ठाकुर को हरा दिया और एक बार फिर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। इस बार प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह मंडी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
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जेपी नड्डा समेत अन्य दिग्गजों को भी हार का सामना करना पड़ा
इनके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी एक बार विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। साल 2003 में बिलासपुर सीट पर कांग्रेस के तिलक राज ने नड्डा को हराया था। राज्य के कई अन्य वरिष्ठ और दिग्गज मंत्रियों और नेताओं को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। हार का सामना करने वाले दिग्गज नेताओं की सूची में पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह ठाकुर, दिवंगत जीएस बाली और रविंदर रवि भी शामिल हैं। प्रदेश की राजनीति और कांग्रेस से लेकर दिल्ली तक प्रभाव रखने वाली विद्या स्टोक्स भी हार गई हैं। लोकसभा चुनाव में स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनी राम शांडिल 2009 और 2019, कृषि मंत्री चंद्र कुमार को 2009 और 2014 में हार का सामना करना पड़ा था।
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