भारत में कुश्ती एक ऐसा खेल है जो गांव- देहात से लेकर बड़े शहरों तक में खेला जाता है। अखाड़ों में आज भी हम पहलवानों को दांव पेच लगाते देख सकते हैं। हॉकी के बाद कुश्ती ऐसा खेल है, जिसमें भारतीय एथलीटों ने विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा सफलता हासिल की है। भारत ने कुश्ती में अब तक 07 ओलंपिक पदक जीते हैं। हरियाणा इस खेल का गढ़ बन गया है, जहां से उच्च कोटि के पहलवान निकल रहे हैं। हालांकि, मिट्टी पर खेला जाने वाला यह खेल अब सिंथेटिक गद्दों पर खेला जाता है। भारत कुश्ती में हमेशा आगे रहा है, लेकिन ईरान, मंगोलिया और यूरोपीय देशों से अब कड़ी चुनौती मिल रही है। यह बात दीगर है कि ओलंपिक जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हमारे खिलाड़ी अधिक पदक नहीं जीत सके, लेकिन पिछले एक दशक में तस्वीर बदली है। अब हमारे पहलवान बड़ी खेल प्रतियोगिताओं में भी पदक बटोर रहे हैं। देश को खुश होने का अवसर मिलने लगा है। कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई खेलों में भारतीय पहलवान ढेरों पदक जीत रहे हैं। करीब पांच साल पहले कुश्ती पर बनी फिल्म ‘दंगल’ की लोकप्रियता से भी इस खेल को बहुत प्रोत्साहन मिला। यह फिल्म खासतौर से महिला कुश्ती में नाम कमा चुकीं हरियाणा की फोगाट बहनों पर आधारित थी। इसमें आमिर खान ने बेहतरीन भूमिका निभाई थी। यह फिल्म विदेशों में भी खूब हिट हुई।
ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान केडी जाधव थे, जिन्होंने 1952 के हेलसिंकी खेलों में यह उपलब्धि पाई। जाधव आजादी के बाद भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता भी बने। उन्होंने पुरुषों के फ्लाईवेट फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीता था। इसके बाद कुश्ती में अपने दूसरे पदक के लिए भारत को 56 सालों तक इंतजार करना पड़ा। अगला पदक 2008 के बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार ने दिलाया। यह भी कांस्य पदक ही था। बीजिंग से शुरू हुआ सफर आगे चल रहा है और देश को ओलंपिक में इक्का-दुक्का पदक हासिल हो रहे हैं।
जब लग रहा था कि कुश्ती में अब हमारा परचम लहराएगा तभी जैसे ग्रहण सा लग गया। पिछले साल जनवरी में देश की राजधानी दिल्ली में कुछ महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाते हुए जंतर-मंतर पर धरना आरंभ कर दिया। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर उछल गया। टीवी चैनलों ने इस मुद्दे को इतना प्रचारित कर दिया कि प्रियंका गांधी समेत विपक्ष के कई नेता समर्थन में धरना स्थल पर पहुंचने लगे। किसान नेताओं और हरियाणा की खाप ने भी इस आंदोलन को समर्थन दे दिया। पहलवान साक्षी मलिक की शिकायत थी कि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने उन्हें गलत तरीके से छुआ था। यह वाक्या रियो ओलंपिक 2016 का है, जब साक्षी ने उसमें कांस्य पदक जीता था। उनके साथ दूसरी महिला पहलवान विनेश फोगाट, पुरुष पहलवान बजरंग पूनिया और रवि दहिया भी धरने पर बैठ गए।
प्रकरण ने बिगाड़ा कुश्ती का माहौल
खिलाड़ियों के धरने पर बैठने से उन्हें जनता और राजनीतिज्ञों का नैतिक समर्थन तो मिला, लेकिन केन्द्र सरकार नाराज हो गई। पूरे प्रकरण का नकारात्मक असर पड़ा। कुश्ती को लेकर जो तैयारियां होनी थी उस पर विराम लग गया। ऐसे में अब जुलाई-अगस्त में पेरिस ओलंपिक 2024 होना है। भारत की प्रतिष्ठा दांव पर होगी, क्योंकि 2008 के बीजिंग ओलंपिक से भारत को इस खेल में कोई न कोई पदक अवश्य प्राप्त हो रहा था। सुशील कुमार ने बीजिंग में कांस्य और लंदन ओलंपिक 2012 में रजत पदक जीता था। लंदन में योगेश्वर दत्त ने भी कांस्य पदक हासिल किया था। इसके बाद साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक 2016 में कांस्य पदक जीता। यह सिलसिला टोक्यो ओलंपिक 2020 तक जारी रहा। वहां बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक और रवि दहिया ने रजत पदक पर कब्जा जमाया। बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम्स में भी भारतीय पहलवानों ने खूब पदक जीते। मगर, धरना प्रदर्शन में शामिल होकर कुछ पहलवानों ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। अब बृजभूषण सिंह ने कुश्ती संघ का अध्यक्ष पद छोड़ भी दिया है। उनकी जगह नए बने अध्यक्ष संजय सिंह को सरकार ने काम करने से रोक दिया है। सरकार ने एक तदर्थ समिति बना दी है, जो कुश्ती संघ का काम देखेगी। केन्द्र सरकार ने भाजपा सांसद बृजभूषण को न हटाकर खिलाड़ियों का गुस्सा और बढ़ा दिया। वह तब हटे जब मामला पूरी तरह बिगड़ चुका थ। हालांकि, वह यौन शोषण के आरोपों से हमेशा इनकार करते रहे। उनका कहना था कि मैनें बेटी समान साक्षी को सिर्फ दुलार किया था।
पदक जीतने की खुशी में वह एक यादगार पल था। बृजभूषण ने यहां तक कहा कि यदि मेरे खिलाफ एक भी आरोप सच साबित हो जाए तो मैं खुद को फांसी लगा लूंगा। सरकार की बेरूखी से नाराज पहलवानों ने विरोध स्वरूप अपने पदक लौटाने शुरू कर दिए। इन्होने प्रधानमंत्री आवास जाकर अपना पुरस्कार लौटाने का निर्णय किया। हालांकि, सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें प्रधानमंत्री आवास तक नहीं जाने दिया, तो उन्होंने वहीं सड़क पर अपना पदक रख दिया। साक्षी मलिक ने तो अपने जूते मेज पर रखकर कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान भी कर दिया। साक्षी के बाद दो अन्य पहलवानों ने भी विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लौटा दिए। बजरंग पूनिया ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हुए अपना पद्मश्री लौटा दिया है। इसके बाद विनेश फोगाट ने अपना खेल रत्न पुरस्कार वापस कर दिया है। जाहिर है, मोदी सरकार को किसी भी तरह का विरोध स्वीकार्य नहीं है। दिल्ली में 28 मई 2023 को जब नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था, तो धरना दे रहे पहलवानों ने वहां तक मार्च निकालने का निर्णय किया था।
उनकी वहां पर महिला पंचायत करने की योजना थी। बाद में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। संसद भवन तक जाने नहीं दिया। इस प्रकरण से देश की छवि भी धूमिल हुई है। ओलंपिक के बाद खेल प्रेमियों की सबसे ज्यादा नजर एशियाई खेलों पर रहती है। पिछले साल अक्टूबर में चीन के शहर हांगझोउ में उन्नीसवें एशियाड का आयोजन हुआ। भारतीय दल ने इसमें शानदार प्रदर्शन किया और पहली बार सौ से अधिक यानी 107 पदक हासिल किए। मगर, हमारे पहलवानों ने निराश किया। उन्होंने महज 05 पदक जीते, लेकिन सोने का तमगा किसी ने नहीं प्राप्त किया। सबसे आश्चर्य यह कि देश के स्टार पहलवान बजरंग पूनिया को खाली हाथ वापस आना पड़ा। कुश्ती में कोई स्वर्ण पदक न मिलना निराशाजनक रहा जबकि भारत का इस खेल में हमेशा दबदबा रहता है। बजरंग आंदोलन करने वाले पहलवानों में शामिल थे। इसके बावजूद वह भारतीय दल के साथ भेजे गए। उनसे सदैव बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रहती है, लेकिन लगता है मानसिक रूप से वह तैयार नहीं थे। विरोध प्रदर्शन के बाद उपजे विवाद का तनाव खिलाड़ियों पर होना स्वाभाविक है। संभव है, इसी वजह से बजरंग पूनिया अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर सके।
विवादों से रहा है कुश्ती का नाता
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कुश्ती भारत का लोकप्रिय खेल है, इसके बावजूद कई बार विवादों से इसका नाता रहा है। ब्राजील के रियो डी जनेरियो में जब 2016 के ओलंपिक में भारतीय कुश्ती टीम के चयन की बात आई, तो पिछले दो ओलंपिक के पदक विजेता सुशील कुमार और नरसिंह यादव में खींचतान मच गई। यह मामला काफी चर्चित हो गया। ट्रायल के आधार पर नरसिंह का पलड़ा भारी था, लेकिन दो बार पदक जीत चुके सुशील भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। आखिरकार अदालत ने नरसिंह के पक्ष में निर्णय सुनाया। मगर, रियो में दुर्भाग्य ने नरसिंह यादव का पीछा नहीं छोड़ा। वह डोप टेस्ट में फेल करार दिए गए और इस तरह वह बिना खेले ही वापस लौट आए। भारत को पदक की उम्मीदों पर करारा झटका लग गया। वह तो साक्षी मलिक ने कांस्य जीत कर भारत की झोली में एक पदक डाल दिया। बाद में सुशील हत्या के एक मामले में फंस गए। ओलंपिक पदक विजेता पहलवान की प्रतिष्ठा धूल में मिल गई। फिर नरसिंह भी खेल मैदान से गायब ही हो गए।
ऐसे में अब इस साल पेरिस में ओलंपिक खेल होने हैं। यह बड़ा आयोजन है। इसे देखते हुए कुश्ती को लेकर चिंता हो रही है। खेल मंत्रालय क्या रुख अपनाता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। हालिया विवाद को देखते हुए कुश्ती संघ भंग कर दिया गया है। अब नई कमेटी किस तरह काम करेगी। इसका खाका तैयार होना है। ओलंपिक की तैयार काफी पहले से आरंभ हो जानी चाहिए ताकि महिला और पुरुष पहलवानों को अभ्यास का भरपूर मौका मिल सके। पिछले एक साल से जो धरना प्रदर्शन चला, उससे माहौल खराब हुआ है। इसे ठीक होने में वक्त लगेगा, लेकिन जो भी हो निर्णय जल्द ही करने पड़ेंगे। कुश्ती पर कलंक लगना देश के लिए उचित नहीं है। उम्मीद है कुछ अच्छा ही होगा और पेरिस ओलंपिक में भी भारत के पहलवान कुछ पदक अवश्य हासिल करेंगे।
आदर्श प्रकाश सिंह