ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने एक बार फिर आर्यन थ्योरी का जिक्र कर नए विवाद को जन्म दे दिया है। वैसे उनकी जुबानी चालों से हर कोई वाकिफ है। लेकिन इस बार उन्होंने खुलेआम भारतीय मूल के विदेशी नहीं बल्कि आर्य होने का मुद्दा उठाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए हैं। दरअसल, ये आज का सबसे बड़ा मुद्दा है कि असदुद्दीन ओवैसी आज भी आर्यन थ्योरी को हवा दे रहे हैं, जिसे वैज्ञानिक भी खारिज कर चुके हैं।
दरअसल, वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के शो में एक सवाल के जवाब में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ''मैं चाहता हूं कि मेरा डीएनए हो और नरेंद्र मोदी जी का भी। आरएसएस के लोगों से ऐसा करवाओ। आपको पता चल जाएगा कि कौन आर्य है और कौन इस देश का है।'' आर्य अभी भी भारत के लोगों को यह कहकर संबोधित करने का प्रयास कर रहे हैं कि वे भारत के मूल निवासी नहीं हैं, बल्कि बाहर से आए हैं और यहां आकर बस गए हैं। यह जानकर आश्चर्य होता है कि संसद सदस्य होने के बावजूद लगातार कानून का अध्ययन कर रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि 'आर्यन थ्योरी' पूरी तरह से झूठी साबित हो चुकी है। यह कुछ अंग्रेजों की शरारत थी, जिसे भारत में इतिहास लिखते समय वामपंथी शिक्षाविदों ने भी हवा दी थी।
ऐतिहासिक तथ्य यह है कि देश में आजादी के लिए लड़ रहे भारतीयों को आपस में लड़ाने के लिए मैक्स मुलर, विलियम हंटर और लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले इन तीन लोगों ने भारत के इतिहास को विकृत करना शुरू कर दिया और यह कहना शुरू कर दिया कि भारतीय इतिहास की शुरुआत इसी से होती है। सिंधु घाटी सभ्यता, जिसमें सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे। आर्य बाहर से आए और सिंधु घाटी सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया। 1500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी तक के काल को अंग्रेजों ने आर्यों का काल घोषित किया था।
आश्चर्य की बात है कि अंग्रेज कभी भी उस इतिहास के कोई बुनियादी तथ्य और शोध दावे पेश नहीं कर पाए जिनके आधार पर वे यह "आर्यन आक्रमण सिद्धांत" बना रहे थे। उनमें से कुछ ने कहा कि आर्य मध्य एशिया के निवासी थे, जबकि अन्य ने कहा कि वे साइबेरिया, मंगोलिया, ट्रांस-काकेशिया या स्कैंडिनेविया के मूल निवासी थे। आर्य बाहर से कहाँ से आये? इसका सटीक उत्तर आज तक किसी के पास नहीं है।
हां, यह हम भारतीयों के लिए गर्व की बात जरूर है कि जिस संगठित सिंधु घाटी सभ्यता की बात की जाती है, वह आज दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता साबित हो चुकी है। आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता के बारे में बहुत कुछ विस्तार से बताया है। उनके शोध का निष्कर्ष यह है कि अंग्रेजों के अनुसार यह शहरी सभ्यता 2600 ईसा पूर्व या कुछ इतिहासकारों के अनुसार 5,500 वर्ष पुरानी नहीं, बल्कि 8,000 वर्ष पुरानी सभ्यता है।
सिंधु घाटी की यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। जहां नगर-नियोजन, भोजन के लिए बड़ी रसोई, बैठक स्थल, कपड़े, चांदी और तांबे का उपयोग होता था। लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और लोहे का प्रयोग भी करते थे। यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि इस सभ्यता में लोग कला पारखी भी थे।
नया शोध यह भी कहता है कि भारतीय इतिहास के किसी भी काल में आर्यों का आक्रमण नहीं हुआ और न ही आर्य और द्रविड़ नाम की दो अलग-अलग मानव जातियाँ कभी पृथ्वी पर अस्तित्व में थीं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. किविसिल्ड के निर्देशन में फिनलैंड की टार्टू यूनिवर्सिटी में भारतीयों के डीएनए क्रोमोसोम पर आधारित शोध यह साबित करता है कि सभी भारतीय एक ही पूर्वजों के वंशज हैं। गुणसूत्रों के आधार पर आर्य और द्रविड़ में कोई अंतर नहीं है और तो और जो आनुवंशिक गुणसूत्र भारतीयों में पाए जाते हैं, वे डीएनए गुणसूत्र विश्व के किसी भी अन्य देश में नहीं पाए जाते।
शोध में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल की आबादी में मौजूद लगभग सभी जातियों, उपजातियों और जनजातियों के लगभग 13000 नमूनों का परीक्षण किया गया। जिसका परिणाम यह कह रहा है कि भारतीय उपमहाद्वीप में चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों, 99 प्रतिशत लोग एक ही पूर्वज के वंशज हैं। शोध में पाया गया है कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश की सभी जातियों के डीएनए गुणसूत्र और उत्तर भारतीय जातियों के डीएनए के मूल-आधार गुणसूत्र एक ही हैं।
अमेरिका में हार्वर्ड के विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों का अध्ययन करने के बाद पाया कि सभी भारतीयों के बीच एक आनुवंशिक संबंध है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है। उत्तर और दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों के वंशज हैं।
यह भी पढ़ेंः-शंकराचार्यों ने की गौ हत्या बंद करने की मांग, कहा- राजनीतिक दलों को लेना चाहिए ये संकल्प
कहना होगा कि इस झूठ को समझाने में दो शताब्दियाँ लग गईं कि बाहर से भारत में आकर बसने वाले विदेशियों के लिए आर्य जैसा कोई शब्द था ही नहीं। भाषा विज्ञान में आर्य का अर्थ है अच्छा, आदरणीय, मान्य, प्रतिष्ठित, धर्म और नियमों के प्रति वफादार या श्रेष्ठ। प्राचीन भारत में सभी श्रेष्ठ लोगों को सम्मान सूचक शब्द अर्थात आर्य कहकर संबोधित किया जाता था। आज यह पूर्णतः सिद्ध हो गया है कि "आर्यन आक्रमण सिद्धांत" मिथ्या है।
फिर भी असदुद्दीन ओवैसी आज जिस तरह की भाषा बोल रहे हैं उससे साफ पता चलता है कि वह कितने बड़े झूठे हैं और अपनी बात को साबित करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। वे बार-बार आर्य सिद्धांत के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े लोगों को भारत से बाहर बताकर देश की आम जनता को गुमराह करने का जो प्रयास कर रहे हैं, वह देश हित में नहीं है। दरअसल इस तरह की हरकत भारत में जातीय उन्माद पैदा करने की कोशिश है। जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)