श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या में बालरुप रामलला के नूतन विग्रह की स्थापना को एक माह से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन दर्शन को आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। अयोध्या आकर श्रीरामलला के सामने शीश नवाने वालों में आम रामभक्तों के साथ ही भाजपा शासित राज्यों की सरकारें भी शामिल हैं लेकिन इनके साथ वह तमाम नामधारी राजनेता भी हैं, जिन्होंने श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा ’’प्राण प्रतिष्ठा समारोह’’ का निमंत्रण दिए जाने पर आना तो दूर, अनेक प्रकार के सवाल उठाए या फिर आरोप लगाए थे। श्रीरामलला के दर्शनार्थियों की संख्या का आंकड़ा सारे अनुमानों को गलत साबित कर रहा है।
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ को देखकर आयोजकों को कुछ दिन तक भारी भीड़ का अनुमान था लेकिन यह भीड़ सप्ताह के बाद महीनों तक चलेगी ऐसा कयास नहीं लगाया गया था। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले तक दर्शन करने वालों की संख्या औसतन 25-30 हजार के आस-पास रहा करती थी लेकिन 23 जनवरी को पांच लाख का आंकड़ा पार करने के बाद अब भी ढाई से तीन लाख दर्शनार्थी प्रतिदिन श्रीरामलला के दरबार में हाजिरी लगाकर माथा टेक रहे हैं। अयोध्या में इस समय लघु भारत की झलक दिखाई पड़ रही है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक के लोग अपनी परम्परागत वेश-भूषा और सांस्कृतिक पहचान के साथ दर्शन के लिए रामलला के दरबार में हाजिर हो रहे है।
आयोजको का अनुमान था कि बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को श्रद्धालुओं की संख्या सामान्य रहेगी जबकि मंगलवार, शनिवार और रविवार को भीड़ बढेगी, लेकिन ऐसा नही हो रहा है। यह सारे अनुमान गलत साबित हो रहे है। शनिवार और रविवार को दर्शनार्थियों की संख्या में अनुमान से अधिक की बढ़ोत्तरी अवश्य हो जा रही है। हालात यह है कि 22 जनवरी से लेकर फरवरी के प्रथम सप्ताह तक लगातार भीषण ठंड और बारिश भी रामभक्तों को नही रोक सकी। अब प्रशासन की चिंता यह है कि यदि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं का यही औसत बना रहा तो आगामी 17 अप्रैल को रामनवमी के पावन पर्व पर दर्शनार्थियों की संख्या 5-10 लाख के बीच पंहुच जाएगी। इस अनुमान ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों के साथ ही तमाम जिम्मेदारों को चिंता में डाल दिया है। फिलहाल कहा जा रहा है कि फरवरी माह की समाप्ति तक श्रीरामलला के दर्शनार्थियों का आंकड़ा एक करोड़ को पार कर जाएगा।
भारी पड़ रही राम से दूरी
श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को उस समय अधिकांश राजनैतिक दलों ने भाजपा का कार्यक्रम बताते हुए लोकसभा के चुनाव से जोड़ा और इसी को आधार बना कर कार्यक्रम में नहीं गए। अपनी ताकत भर इस बात को तमाम प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक तथा सोशल मीडिया के माध्यम से आम लोगों के बीच स्थापित करने का प्रयास भी किया, परन्तु देश के जागरुक हिन्दू समाज ने रामलला के विरोधियों की इस कुत्सित चाल को विफल कर दिया। देश और विदेश के हिन्दुओं ने श्रीराम से दूरी बनाने वाले राजनीतिज्ञों को अपनी ओर से यह सार्वभौमिक संदेश दिया कि यह कार्यक्रम सम्पूर्ण हिन्दू समाज का है, राम भक्तों का है। यह कार्यक्रम सरकार स्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज को स्थापित करने के लिए है। धूमिल होती सनातन संस्कृति के पुर्नजागरण, उत्थान का कार्यक्रम है। राष्ट्र के गौरव को स्थापित करने का कार्यक्रम है। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को हिन्दू समाज ने जिस हर्षोल्लास और उत्साह के साथ एक उत्सव के रुप में मनाया, उससे यह स्पष्ट संदेश गया कि श्रीरामलला से दूरी बनाने वाले अब हिन्दू समाज में स्वीकार्य नहीं है।
कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इसका आभास नहीं था, तभी तो पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चैधरी निमंत्रण दिए जाने के बाद भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए लेकिन कम से कम उप्र के कांग्रेस नेताओं को यह अनुमान हो गया था कि आने वाले समय में जनता के बीच जाने पर यह बड़ा सवाल खड़ा होगा, जिसका जबाब देना मुश्किल होगा इसलिए पार्टी की तय विचारधारा के विपरीत उप्र अध्यक्ष अजय राय के साथ राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडेय, सांसद दीपेन्द्र हुड्डा, उप्र विधान मंडल दल की नेता आराधना मिश्रा, वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रताप सिंह आदि ने मकर संक्राति के दिन अयोध्या आकर सरयू नदी में स्नान किया और हनुमानगढ़ी के साथ ही रामलला के दर्शन भी किए। इसी कड़ी में पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत्र ने भी प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही आकर दर्शन किया और सफाई दी कि इसे राजनीति से न जोड़ा जाए।
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूरी बनाने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 12 फरवरी को अयोध्या पंहुचे। उनके साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी थे। परिवार के साथ आए दोनों नेताओं ने श्रीरामलला के विधिवत दर्शन और पूजन किए। सबसे बड़ी बात यह थी कि केजरीवाल के सुर एकदम बदले हुए थे। उन्होंने रामभक्तों की भावनाओं के अनुरुप राम मन्दिर को भव्य, दिव्य बताते हुए कहा कि यह पूरे देश, समाज और विश्व के लिए गौरव की बात है कि श्रीराम का इतना भव्य और सुन्दर मन्दिर बन कर तैयार हुआ है। रामभक्तों की भारी भीड़ देखकर कहा कि दर्शन करने आने वाले लाखों रामभक्तो को देख कर मन गदगद है।
बौखलाहट में सपा और कांग्रेस
श्रीरामलला की पुर्नस्थापना के बाद आ रहे सामाजिक बदलाव से सबसे ज्यादा बौखलाहट कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में है। पार्टी की विचारधारा से हट कर श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने वाले अति वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और उप्र में प्रियंका गांधी के सलाहकार प्रमोद कृष्णम को पार्टी से 06 साल के लिए बाहर कर दिया गया। एक प्रकार से उनकी विदाई कर दी गई। प्रमोद कृष्णम का अपराध इतना है कि वह श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में न केवल शामिल हुए थे, बल्कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। यद्यपि प्रमोद कृष्णम पहले भी सार्वजनिक रुप से कहा करते थे कि कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को हिन्दू शब्द से नफरत है, कुछ नेताओं को राम मंदिर तो कुछ को राम से ही नफरत है। अपने निलम्बन पर उन्होंने कहा कि ’राम और राष्ट्र’ से समझौता नही किया जा सकता है।
इसी प्रकार जातिवादी राजनीति के लिये उप्र में विख्यात समाजवादी पार्टी में भी बौखलाहट है। पहले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण मिलने पर अखिलेश यादव नहीं गए। इसके बाद उप्र विधानसभा अध्यक्ष के अनुरोध पर जब मुख्यमंत्री द्वारा 11 फरवरी को श्रीरामलला के दर्शन का कार्यक्रम निर्धारित हुआ तो भी सपा ने योगी सरकार के मंत्रियों, विधायकों के साथ जाने से मना कर दिया। दूसरी ओर सपा में राष्ट्रीय सचिव रहे स्वामी प्रसाद मौर्य पिछले कई महीनों से सनातन संस्कृति, हिन्दू धर्म और हिन्दू देवी देवताओं पर अर्नगल प्रलाप करते रहे हैं। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके विवादित बोल पर न तो अंकुश लगा पा रहा था और न उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही ही कर पा रहा था। प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी स्वामी प्रसाद मौर्य अर्नगल प्रलाप करते रहे। उन्होंने श्रीरामलला पर अमर्यादित टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर पत्थर की प्राण प्रतिष्ठा करवाने से वह सजीव हो सकता है, तो मुर्दे क्यों नही चल सकते है।
मौर्या के इस प्रकार के बयानों से पार्टी के अंदर और बाहर का माहौल बेहद खराब हो रहा था और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनसे किनारा करना चाह रहा था। यही कारण है कि जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने राज्यसभा टिकट बटवारे को लेकर नाराजगी जाहिर की तो कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हुआ। उसके बाद राष्ट्रीय सचिव पद से त्यागपत्र फिर पार्टी से त्यागपत्र दिए जाने के बाद भी सपा नेतृत्व ने सुलह-समझौते का कोई प्रयास नहीं किया। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाहर जाने से सपा में राहत तो है, लेकिन रामलला के दरबार में वरिष्ठ नेताओं के अब तक न जाने को लेकर कार्यकर्ताओं में रोष भी है।
भाजपा की कारगर रणनीति
सपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी का एक और कारण भाजपा की रणनीति है। दरअसल, प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद भाजपा ने एक रणनीति के तहत विधानसभा के बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं, सहयोगियों को श्रीरामलला के दर्शन कराने हेतु विधायकों और सासंदों को दायित्व दिया है। इसके कारण बड़ी संख्या में कार्यकर्ता या तो दर्शन करके आ गए या उनके जाने का कार्यक्रम निर्धारित हो गया है।
भाजपा के अतिरिक्त विहिप और कुछ अन्य अनुषांगिक व हिन्दू संगठनों ने भी अपने कार्यकर्ताओं को दर्शन कराने की योजना बनाकर मूर्तरुप दे रहे हैं। जिसके कारण सपा, कांग्रेस सहित तमाम भाजपा विरोधी दलों के कार्यकर्ता समाज में बिलकुल अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं और वह अपने शीर्ष नेतृत्व को कोस रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण अस्वीकार कर रामलला से दूरी बनाने वाले अधिकांश राजनैतिक दलों के शीर्ष नेताओं पर आम कार्यकर्ता मुख्यधारा में शामिल होने का दबाव बना रहा है लेकिन अब उनके लिए रास्ता निकालना मुश्किल हो रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान अमेठी में विरोध का सामना करना पड़ा।
श्री रामलला लिखा भगवा ध्वज फहराती भीड़ ’राहुल गांधी वापस जाओ-वापस जाओ, जय श्रीराम, जय श्रीराम’ का नारा लगाती रही। भीड़ में शामिल लोग चिल्ला रहे थे राहुल गांधी राम मन्दिर के कार्यक्रम में नहीं गए, अमेठी एक बार भी नहीं आए तो अब क्या करने आए हैं। पुलिस ने भीड़ को रोकना भी चाहा लेकिन लोग विरोध करते रहे। दूसरी ओर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल और विधायकों के साथ श्रीरामलला के दरबार में शरणागत होकर माथा टेक रहे हैं। अब तक अरुणाचल, उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ रामलला के दर्शन कर चुके हैं, जबकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के मुख्यमंत्री अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या आने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
भाजपा अन्य राजनैतिक दलों के विपरीत देश में बह रही राम लहर के दृष्टिगत देश के कोने-कोने से अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं की भावनाओं को देखते हुए उनकी व्यवस्था के लिए तत्पर है। केन्द्र सरकार ने रामलला के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पहले 29 जनवरी से आस्था स्पेशल ट्रेनों के नियमित संचालन का निर्णय लिया गया था, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के समय अत्यधिक संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं की सुविधाओं के हित में इन ट्रेनों का संचालन 05 फरवरी से शुरु किया गया है। अब तक निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 03 मार्च तक 311 आस्था स्पेशल ट्रेनें देश के सभी राज्यों से चलाई जाएंगी लेकिन कहा जा रहा है कि यह व्यवस्था 24 मार्च तक या उसके बाद भी चलती रहेगी।
इन ट्रेनों के माध्यम से एक बार में लगभग 1,500 श्रद्धालु अयोध्या पंहुच रहे हैं। प्रतिदिन 8-10 ट्रेनें अयोध्या पंहुच रही है। भाजपा शासित राज्यों से भी अयोध्या धाम के लिए विशेष बसें चलाई जा रही है। उक्त के अतिरिक्त इन श्रद्धालुओं को दर्शन कराने तथा अन्य सहायता के लिए पूरे देश से भाजपा कार्यकर्ताओं को बुलाया जा रहा है, ताकि वह अपने प्रांत या क्षेत्र से आने वाले श्रद्धालुओं से आसानी से संवाद स्थापित कर आवश्यकतानुसार उनकी मदद कर सकें। गैर-हिन्दी भाषी राज्यों पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, असम, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों के भाजपा कार्यकर्ताओं की भूमिका तय हो गई है। आने वाले श्रद्धालुओं के जलपान और भोजन के लिए अयोध्या में कई स्थानों पर भंडारे संचालित किए जा रहे हैं।
मुस्लिम श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
श्रीरामलला की स्थापना ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय के बंधन तोड़ दिए हैं। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय संयोजक राजा रईस और प्रांत संयोजक शेर अली खान 30 जनवरी को 350 मुस्लिम श्रद्धालुओं के जत्थे के साथ पैदल अयोध्या पंहुचे। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का यह जत्था प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 150 किमी की पैदल यात्रा 06 दिन में पूरी करके अयोध्या पंहुचा। जत्थे के साथ सीता रसोई भी थी, जो श्रद्धालुओं के जलपान और भोजन की व्यवस्था कर रही थी। छह दिन की यात्रा में अनेकों मुस्लिम श्रद्धालुओं के पैरों में छाले पड़ गए थे, तो कुछ के जूते फट गए लेकिन राम का जयकारा लगाते दर्शन करने वाले इन श्रद्धालुओं के चेहरे पर थकान नहीं संतुष्टि के भाव थे।
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मंच के संयोजक राजा रईस ने दर्शन करने बाद मीडिया से कहा कि राम हम सभी के पूर्वज थे, हैं और रहेंगे। हमारा मुल्क, हमारी सभ्यता, हमारा संविधान आपस में बैर रखना नहीं सिखाता है। तमाम प्रकार के फतवे और आलोचनाओं पर कहा कि अगर कोई अलग धर्म का इंसान किसी अलग धर्म के इबादतगाह या पूजास्थल पर चला जाए तो इसका आशय यह नहीं लगाना चाहिए कि उसने खुद का धर्म और मजहब छोड़ दिया है।
हरि मंगल
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