वाराणसीः कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान और दीपदान करना शुभ और पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है। इस दिन दान, यज्ञ और मंत्र जाप का भी विशेष महत्व है। स्नान पर्व शुक्रवार 19 नवम्बर को है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर स्वर्गलोक से देवी-देवता पृथ्वीलोक पर आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली बनाने के पीछे का कारण है कि इस दिन देवताओं के धरती पर आने की खुशी में घाटों को दीयों से रोशन किया जाता है। इतना ही नहीं, इस दिन घर के अंदर और बाहर दीप जलाने के परंपरा है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवलोक से सभी देवी- देवता पवित्र नगरी वाराणसी यानि महाकाल की नगरी काशी में पधारते हैं। इसलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को काशी में बहुत साज-सज्जा की जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनायी जाती है देव दिपावली
पौराणिक कथा है कि त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से सभी बहुत त्रस्त हो चुके थे। तब सभी को उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने उस राक्षस का संहार कर दिया। जिससे सभी को उसके आतंक से मुक्ति मिल गई। जिस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का संहार किया था, वह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। तभी से भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी पड़ा। इससे सभी देवों को अत्यंत प्रसन्नता हुई। तब सभी देवता भगवान शिव के साथ काशी पहुंचे और दीप जलाकर खुशियां मनाई।
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कहते हैं कि तभी से ही काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती रही है। इस दिन दीप दान का बहुत महत्व माना गया है। इसलिए इस दिन विशेष रूप से दीपदान किया जाता है। तुलसी पूजा का कार्तिक पूर्णिमा में विशेष महत्व है। तुलसी पूजा से महालक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा की तिथि को ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसे विष्णु का पहला अवतार भी माना गया है।
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