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पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से होती संतान की प्राप्ति, विधि-विधान से पूजा कर सुनें यह व्रत कथा

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नई दिल्लीः श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। एकादशी पूरी तरह से भगवान विष्णु को समर्पित होती है। एकादशी के दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की आराधना करने से भक्त के सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन पितरों को जल अर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान प्राप्ति का फल मिलता है। पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करनी चाहिए और व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए।

पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
बहुत समय पहले भद्रावतीपुरी नगर में सुकेतुमान नामक राजा राज करते थे, लेकिन संतान न होने से राजा और रानी बेहद दुखी रहते थे। राजा-रानी को यह चिंता सताती थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा और उनके पितरों का श्राद्ध कौन करेगा। क्या उनकी आत्मा हमेशा भटकती रहेगी? एक दिन की बात है कि राजा सुकेतुमान शिकार खेलने वन में गए हुए थे। अचानक राजा सुकेतुमान को प्यास लगी तो वह एक तालाब के समीप पहुंचे। राजा सुकेतुमान ने कहा कि तालाब के समीप स्थित आश्रम में कुछ ऋषि पूजा-पाठ कर रहे थे।

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राजा पानी पीकर ऋषियों के आश्रम पहुंचे और ऋषियों से मंतव्य पूछा। इस पर ऋषियों ने राजा को बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है और जो भी व्यक्ति आज के दिन व्रत कर भगवान श्रीहरि की पूरे सच्चे मन से आराधना करता है उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होती है। ऋषि की बातें सुनकर राजा के मन में उम्मीद की किरण का संचार होने लगा। राजा ने भी मन ही मन पुत्रदा एकादशी के व्रत को करने का प्रण किया। राजमहल पहुंचकर राजा ने सारी बातें अपनी रानी को बताई और फिर उन्होंने पूरे भक्तिभाव से पुत्रदा एकादशी का व्रत कर विधि-विधान से भगवान विष्णु के बाल स्वरूप की पूजा की। इस व्रत के फलस्वरूप राजा-रानी को कुछ महीनों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।