कोविड-19 के त्रासद अनुभव के बीच हम 2021 का फीका-फीका स्वागत करने जा रहे हैं। फीका इसलिए कि कोरोना के साये में बीता 2020 जाते-जाते भी स्ट्रेन का भयावह चेहरा दिखाते हुए विदा ले रहा है। भले लोग इसे सदी का भयावह साल मानें पर सही मायने में देखा जाए तो मानव इतिहास के सबसे भयावह सालों में से 2020 का साल रहा है। हालांकि 2020 के साल की भयावहता का आभास तो 2019 की अंतिम तिमाही में ही होने लगा था जब चीन के बुहान में कोरोना के मामले सामने आने लगे। हमारे देश में इसकी भयावहता मार्च के पहले पखवाड़े के खत्म होते-होते सामने आने लगी थी।
कोविड-19 ने जीवन के हर क्षेत्र में अपना असर छोड़ा है। देखा जाए तो कोरोना सही मायने में कार्ल मार्क्स के साम्यवाद का प्रत्यक्ष अवतार माना जा सकता है, जिसने शक्तिशाली, अति विकसित से लेकर कमजोर व अविकसित देशों तक किसी को नहीं छोड़ा तो अमीर से लेकर गरीब तक समान रूप से इसके कुप्रभाव से बच नहीं सके। कोरोना के असर को लेकर उसपर कोई भी देश और कोई भी नागरिक पक्षपात का आरोप नहीं लगा सकता। इसका असर किसी एक देश पर नहीं पड़कर समूची दुनिया के देशों में देखने को मिला है। एक ओर जहां लंबे लॉकडाउन के चलते बिना किसी भेदभाव के घर में कैद होने का अनुभव कराया तो दूसरी और शुरुआती दौर में सभी गतिविधियों और अब भी बहुत-सी गतिविधियों पर लगभग विराम ही लगा दिया। शुरुआती दौर में कोरोना के नाम से इस तरह भय का अनुभव भी रहा जब सारी मानवीय संवेदनाओं को ताक में रखे देखा।
दूसरी ओर समाज का एक उजला पक्ष भी सामने आया जब धरती के साक्षात भगवान यानी चिकित्सकों और उनसे जुड़े चिकित्सा कर्मियों के सेवाभाव के साक्षात दर्शन किए। डरते-डरते भी लोग एक-दूसरे की सहायता के लिए आगे आए। अन्नदाता की मेहनत का असर भी देखने को मिला कि देश-दुनिया में घर की चारदीवारी में कैद होने के बावजूद कोई भूखा नहीं रहा। इस महामारी ने आपदा प्रबंधन का भी नया अनुभव कराया। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, को चरितार्थ करते हुए इनोवेशन और नवाचारों की देन इस दौरान साफ तौर से देखी जा सकती है।
2020 इसलिए भी याद किया जाएगा जब संभवतः मानव इतिहास में इतने नए शब्दों से समूची दुनिया को साक्षात होना पड़ा। जिस तरह का लॉकडाउन 2020 में देखने को मिला, मानव इतिहास में इस तरह का लॉकडाउन का भी पहला ही अनुभव होगा। सोचिए लॉकडाउन से लेकर सोशल डिस्टेसिंग तक के शब्दों और उनका प्रत्यक्ष उपयोग इसी साल देखने को मिला है। लॉकडाउन, क्वारंटाइन, सुपर स्प्रेडर, कंटोनमेंट जोन, आइसोलेशन, जूम, कांटेक्ट ट्रेसिंग, रेमडेसिविर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, पीपीई किट, सोशल डिस्टेसिंग, हेल्थ एडवाइजरी, डेडिकेटेड कोविड सेंटर, वेबिनार, वर्चुअल मीटिंग्स, वर्चुअल सुनवाई, वर्क फ्राम होम आदि से लगभग प्रतिदिन साक्षात होना पड़ा। मास्क केवल डाक्टरों के लिए वो भी ऑपरेशन थिएटर के लिए जाना जाता था, वह हर व्यक्ति की अनिवार्य जरूरत बन गया तो कोरोना वैक्सिन को लेकर वैज्ञानिकों के प्रयास काफी हद तक सफल रहे। लगभग थम चुकी आर्थिक गतिविधियां साल की तीसरी तिमाही तक पटरी पर आने लगी तो आर्थिक क्षेत्र में थोड़ा आशा का संचार दिखाई देने लगा है।
2020 की आखिरी तिमाही में जो आशा का संचार होने लगा था वह साल के अंत तक इंग्लैण्ड में पाए गए कोरोना के नए अवतार स्ट्रेन से हिलाकर रख दिया है। इसे रोकने के लिए इंग्लैण्ड के साथ ही दुनिया के कई देश ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, दक्षिणी अफ्रिका जैसे देश नए साल में लॉकडाउन लगाने की तैयारी में हैं तो भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों ने नए साल के जश्न मनाने पर रोक लगा दी है। ऐसे में नए साल के जश्न की बात तो दूर की बात है पर कोरोना वैक्सिन से लोगों में आशा का संचार अवश्य होने लगा है।
देश में डेडिकेटेड कोविड सेंटरों और केन्द्र व राज्य की सरकारों ने जिस संवेदनशीलता से कोरोना आपदा का प्रबंधन किया है वह नई आशा का संचार लेकर आया है। इसी तरह से देश में जिस तरह से पीपीई किट जिनके लिए विदेशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ता था आज हम निर्यात करने लगे है। मॉस्क और सेनेटाइजर का कुटीर उद्योग सामने आया है तो वेंटिलेटरों का देश की मांग के अनुसार निर्माण होने लगा है। उद्योग धंधे भी लगभग पटरी पर आने लगे हैं तो अर्थव्यवस्था में सुधार की आशा भी तेजी से बंधी है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के समग्र प्रयास जारी है। किसान आंदोलन को अलग रख दिया जाए तो देश के आर्थिक हालात तेजी से पटरी पर आने लगे हैं। फिर भी इससे नकारा नहीं जा सकता कि 2021 के शुरुआती छह माहों से कोई खास आशा नहीं की जानी चाहिए। क्योंकि कोरोना के नए रूप का असर और कोरोना वैक्सिन की उपलब्धता के चलते छह माह तो चुनौती भरे ही रहने वाले हैं।
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फिर भी निराश इस कारण नहीं होना चाहिए कि नया आता है वह अपने आप में अनेक संभावनाओं को लेकर आता है। वैक्सिन की उपलब्धता से आशा का संचार हुआ है तो आर्थिक गतिविधियां संचालित होने से अर्थव्यवस्था में सुधार की चहुंओर आशा व्यक्त की जा रही है। सबसे बड़ी बात कि लोगों में आत्मविश्वास जगा है और इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। मानव इतिहास में ऐसे अवसर आते रहते हैं और जाते रहते हैं। इन सब हालातों के बीच आशाओं भरा 2021 आरंभ हो रहा है आशा की जानी चाहिए कि 2021 हालातों को सामान्य बनाने में सहायक सिद्ध होगा।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा