साहित्य

इस बार राजग 400 पार, सपना हो पाएगा साकार !

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देश की आजादी के बाद हुए 1952 के पहले चुनाव के बाद अब तक हुए लोकसभा चुनावों पर यदि नजर डालें तो इस साल होने वाला लोकसभा चुनाव ऐसा है, जिसके पहले इस बात की चर्चा नहीं हो रही है कि सरकार किसकी बनेगी बल्कि इस बात पर बहस हो रही है कि राजग 400 सीटों का आंकड़ा पार कर पाएगा या नहीं। इस आंकडे़ को वास्तविकता में बदलने के लिए भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है, फिर चाहे वह उत्तर भारत का कोई राज्य हो अथवा दक्षिण भारत का कोई राज्य। यहीं नही, इस आंकड़े को पाने के लिए वह किसी भी दल से गठबंधन करने को तैयार है इसलिए हर राज्य में उस राज्य के ताकतवर दल से भाजपा का अलायंस हो रहा है।

 माहौल को बनाए रखना जरूरी

 संसद में 05 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं देश का मिजाज देख रहा हूं कि एनडीए को तो 400 पार करवा के ही रहेगा लेकिन भारतीय जनता पाटी को 370 सीट अवश्य देगी। इसके बाद से पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह आसमान पर है, वह उनके इस सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। जो राज्य 2019 में भाजपा के लिए सबसे बड़ी ताकत बने थे, उनमें 10 से 12 राज्यों में पार्टी 2019 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी है। इस बार भाजपा उन राज्यों में या तो उस प्रदर्शन को दोहराने में सफल होगी या नुक़सान का सामना कर सकती है। नुकसान की किसी भी आशंका को टालने के लिए अब एनडीए में अपने सहयोगियों की संख्या बढ़ाने पर भाजपा जोर दे रही है। 

 दरअसल, भाजपा को हिन्दी भाषी राज्यों से बड़ी उम्मीद है, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। इस राज्य की सभी 80 लोकसभा सीटों को वह जीतना चाहती है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड आदि प्रमुख हैं। मीडिया के अलग-अलग मंचों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह का माहौल पूरे देश में पिछले कई महीनों से बनाकर रखा है, उस माहौल की साख बरकरार रखने लिए जरूरी है कि भाजपा को इस बार 2019 की तुलना में काफ़ी अधिक सीट हासिल हो। प्रधानमंत्री मोदी ने आगामी चुनाव में भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए कुल मिलाकर 400 पार का आंकड़ा निर्धारित किया है। अगर भाजपा की सीट 2019 के मुकाबले कम होती है, भले ही बहुमत के आंकड़े से वो संख्या ज्यादा हो, ऐसा होने पर मनोवैज्ञानिक तौर यह बीजेपी के लिए और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बनाए गए माहौल के लिए बेहद नकारात्मक स्थिति होगी। यह एक तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उस लोकप्रियता से बनी साख से जुड़े दावे को तगड़ा झटका लगने जैसा होग। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इसका भी अहसास है। 

दक्षिण से उम्मीद कम, लेकिन हिंदी भाषी राज्यों पर फोकस

 भाजपा को दक्षिण के राज्यों में उम्मीद बेहद कम है इसलिए वह गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, झारखण्ड और हरियाणा में फोकस किए हुए हैं। पिछली बार राजस्थान की 25 में से 24 लोकसभा सीट पर भाजपा और एक सीट पर उसकी सहयोगी आरएलपी की जीत हुई थी। उसी तरह से मध्य प्रदेश में भाजपा को 29 में से 28 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। छत्तीसगढ़ में 11 में से 09 सीटें भाजपा के खाते में गई थी। गुजरात में शत-प्रतिशत सीटें जीतने का करिश्मा भाजपा 2014 और 2019 दोनों बार ही कर चुकी है। दोनों बार उसके खाते में यहां की सभी 26 लोकसभा सीट गई हैं। दिल्ली की सभी सात सीट भी भाजपा 2014 और 2019 में जीतने में सफल हुई थी।

 उसी तरह से हिमाचल प्रदेश की सभी 04 सीट और उत्तराखण्ड की सभी 05 सीट भी 2014 और 2019 में बीजेपी के खाते में गई थी। बिहार में मुख्यमंत्री और जनता दल (यू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार के साथ गठबंधन होने के बाद भाजपा इस राज्य में भी बेहद आश्वस्त दिख रही है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में जब भाजपा का गठबंधन जनता दल (यू) से था, तब बिहार की 40 में से 39 सीटें राजग को मिली थीं। इस चुनाव में झारखण्ड की 14 में से 12 सीट भाजपा की झोली में ही गयी थी, वहीं हरियाणा में भी पिछली बार भाजपा 10 में से 10 सीट जीतने में सफल रही थी।


 इस तरह से गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखध्ड, बिहार और झारखण्ड में चाहकर भी भाजपा के लिए 2019 की तुलना में सीट बढ़ाने की कोई खास गुजांइश बचती नहीं है। भाजपा को यदि सबसे ज्यादा चिंता है तो वह पश्चिम बंगाल की है क्योंकि विधानसभा चुनाव में वह सरकार बनाने में विफल रही थी, पर उसका प्रदर्शन बेहतर रहा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पश्चिम बंगाल में 42 में से 18 सीट जीतने में सफल रही थी। हालांकि, इस बार ममता बनर्जी की मजबूत स्थिति को देखते हुए भाजपा के लिए उस प्रदर्शन को ही दोहराना आसान नहीं होगा। भाजपा ओडिसा में कभी अपनी सरकार बनाने में भले ही सफल न हो पाई हो, पर लोकसभा में उसकी ताकत बढ़ी है।

 पिछली बार यहां उसको 21 में से 08 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार जरूर उसकी कोशिश जरूर होगी कि लोकसभा सीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी की जाए। महाराष्ट्र में भी भाजपा की ताकत काफी बढ़ी है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के भाजपा में शामिल होने के बाद उसे इसका लाभ जरूर मिलेगा। पिछली बार उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हुए बीजेपी को महाराष्ट्र की कुल 48 में से 23 सीटें मिली थी। शिवसेना को 18 पर जीत मिली थी। इस तरह से महाराष्ट्र से एनडीए के खाते 41 सीट आई थी। इस बार उसके साथ शिवसेना का एकनाथ शिंदे गुट और एनसीपी का अजित पवार गुट है। पंजाब में 13 लोकसभा सीट है। पंजाब में भाजपा कभी भी कोई बड़ी ताकत रही नहीं है।

 यह तथ्य जरूर है कि इससे पहले शिरोमणि अकाली दल के सहयोग से भाजपा पंजाब में 2019 में दो सीट, 2014 में दो सीट, 2009 में एक सीट और 2004 में तीन सीट जीतने में सफल रही है। सिक्किम को मिलाकर पूर्वोत्तर के 08 राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीट है। इनमें सबसे अधिक असम में 14 सीट है, जहां पिछली बार भाजपा को 09 सीट पर जीत मिली थी। त्रिपुरा में भी पिछली बार उसे दोनों ही सीट पर जीत मिली थी।  अरुणाचल प्रदेश की दोनों सीट भी भाजपा के खाते में ही गई थी।  मणिपुर की दो में से एक सीट भाजपा जीतने में सफल रही थी।  2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूर्वोत्तर की इन 25 में से 14 सीट पर जीत मिली थी। सिक्किम, मिज़ोरम और नागालैंड की एक-एक सीट और मेघालय की दो सीट पर भाजपा के लिए इस बार भी कोई खास उम्मीद नहीं है। 

 अगर दक्षिण भारत के पांच राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु की बात करें, तो इन राज्यों में भी भाजपा के लिए पिछली बार के मुक़ाबले सीट बढ़ाने की गुंजाइश न के बराबर दिखती है। दक्षिण भारत के इन 05 राज्यों- तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में कुल मिलाकर 129 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से 29 सीट भाजपा के खाते में गई थी। कर्नाटक और तेलंगाना में इस बार भाजपा के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा। पिछले चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में कुल 28 में से 25 सीट पर जीत मिली थी, वहीं तेलंगाना की 17 में से 04 लोकसभा सीट भाजपा के खाते में गयी थी। दक्षिण भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में भाजपा के लिए कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिखती है। इन तीनों ही राज्यों में पिछली बार भाजपा का खाता तक नहीं खुला था।

 इस बार भी इन तीनों राज्यों को मिलाकर भाजपा को इक्का-दुक्का सीट हासिल होने से अधिक की संभावना नहीं है। हालांकि, आंध्र प्रदेश में भाजपा इस कोशिश में है कि पवन कल्याण की जन सेना पार्टी और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को साथ लाकर राजग की झोली में कुछ सीट डाली जाए। ऐसा हो भी गया, तब भी जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस की ताकत के सामने राजग के लिए बहुत सीट की उम्मीद नहीं बचती है। पिछली बार आंध्र प्रदेश में जगन मोहन की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस को कुल 25 में से 22 सीट पर जीत मिली थी, बाकी तीन सीट चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी के खाते में गयी थी। तमिलनाडु और केरल ऐसा राज्य है, जहां जनाधार के मामले में भाजपा अभी भी सबसे कमज़ोर स्थिति में है। उसी तरह से केरल में भी कांग्रेस और सीपीआई(एम) के सामने भाजपा की राजनीतिक जमीन अभी वैसी तैयार नहीं हो पाई है, जिससे लोकसभा चुनाव में कुछ लाभ हो।

 उत्तर प्रदेश में क्लीन स्वीप पर हैं निगाहें

 उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं। 2014 और 2019 दोनों ही बार बीजेपी की सबसे बड़ी ताक़त भी उत्तर प्रदेश ही था। इसके बावजूद पिछली बार से तुलना करें, तो इस बार भी यहां भाजपा के साथ ही एनडीए के लिए सीट बढ़ाने की गुंजाइश सबसे अधिक है। आम चुनाव, 2014 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को 71 और उसकी सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को दो सीट पर जीत मिली थी। इस तरह से उत्तर प्रदेश में राजग के खाते में 80 में 73 सीटें आई थीं। इसके पांच साल बाद 2019 में भाजपा को मायावती और अखिलेश यादव के साथ आने से उत्तर प्रदेश में नुक़सान उठाना पड़ा था और भाजपा 62 सीटें ही जीत पायी थी और सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को दो सीट पर जीत मिली थी।

 इस तरह से वोट शेयर में 07 फीसदी से अधिक का इजाफा होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में भाजपा को 2014 की तुलना में 09 सीट का नुकसान हुआ था। इस बार भाजपा की नजर उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर है। अगर भाजपा ऐसा कर पाती है, तो पिछली बार के मुक़ाबले सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही एनडीए की 19 सीट बढ़ सकती है। इतना ही नहीं बीजेपी की सीट संख्या में भी 10 या उससे अधिक का इजाफा हो सकता है। अपने सहयोगियों के साथ मिलकर भाजपा चाहती है कि प्रदेश की सभी सीटें एनडीए के खाते में चली जाएं। उत्तर प्रदेश में भाजपा काफी मजबूत स्थिति में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राम मंदिर फैक्टर भाजपा की सबसे बड़ी ताकत है। इसके साथ ही मायावती की बहुजन समाज पार्टी इस बार अखिलेश यादव के साथ नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा को समाजवादी पार्टी और जयंत चैधरी की आरएलडी के साथ से हार का खतरा सता रहा था। 

 अकेले दम पर राष्ट्रीय लोक दल की कोई खास राजनीतिक हैसियत लोकसभा चुनाव के नजरिए से अब नहीं है। यह राजनीतिक वास्तविकता है लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर आरएलडी के मिलने से पश्चिम उत्तर प्रदेश की कम से कम 10 से 18 सीट पर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती थीं। सहारनपुर और मुरादाबाद डिवीजन में पड़ने वाली सीट के साथ ही मेरठ, अलीगढ़ और आगरा को लेकर भाजपा कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। पश्चिम उत्तर प्रदेश में 27 सीटें है। इनमें से 22 पर जाट वोट बेहद निर्णायक साबित होते हैं। पिछली बार भाजपा इन 22 में से 08 सीटों पर हारी थी। 

सपा की कोर वोट पर नजर

 पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के जनाधार के साथ जाट-मुस्लिम वोट बैंक के एकजुट रहने से होने वाले राजनीतिक खतरे को टालने के लिए भाजपा की जयंत चैधरी को अपने साथ लेने में सफल हो चुकी है। चैधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा से पूरी जाट बेल्ट मोदी की फिर से दीवानी हो चुकी है। इतना भी तय है कि भाजपा जयंत चैधरी की पार्टी के लिए 07 सीट नहीं छोड़ने वाली है। कहा जा रहा है कि बीजेपी की ओर से आरएलडी के लिए सीधे तौर से 04 सीट का प्रस्ताव है। पिछली बार लोकसभा चुनाव में आरएलडी उस गठबंधन का हिस्सा थी, जिसमें सपा और बसपा थी। इस गठबंधन के तहत आरएलडी तीन सीट पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में जयंत चैधरी के पिता और दल के संस्थापक अजीत सिंह ख़ुद मुजफ्फरनगर सीट पर हार गए थे। जयंत चैधरी को बागपत सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।

dream will come true

 लोकसभा चुनाव, 2014 में भी 08 लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के बावजूद आरएलडी का खाता नहीं खुला था। उस चुनाव में भी अजीत सिंह बागपत से हार गए थे। 2014 में आरएलडी का वोट शेयर एक फीसदी से कम और 2019 में दो फीसदी से कम रहा था। साल 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 49.98 प्रतिशत मत के साथ 62 सीटों और उसके सहयोगी अपना दल (एस) को 1.21 प्रतिशत मत के साथ 02 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। पिछले चुनाव में भाजपा ने गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले अमेठी में राहुल गांधी तक को हरा दिया था। बाद में भाजपा ने लोकसभा उपचुनाव में सपा के दो और गढ़ आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट भी छीन ली थी लेकिन उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीटें अभी भी विपक्षी दलों के कब्जे में हैं। भाजपा इस बार के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के गढ़ मैनपुरी और गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली सहित उत्तर प्रदेश की उन सभी 14 लोकसभा सीटों को भी जीतने की विशेष तैयारी कर रही है, जिस पर वर्तमान में विपक्षी दलों का कब्जा है। मिशन-2024 की निश्चित सफलता के लिए मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की जवाबदेही तय की गई है। भाजपा के सभी मंत्री, सांसद व विधायक गांव में प्रवास कर रहे हैं।

 विधानसभा क्षेत्र में प्रबुद्ध सम्मेलन आयोजित होंगे और ग्रामीण क्षेत्रों में जनता से मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी अपना घोषणा पत्र तैयार करेगी। फरवरी में भाजपा के सभी सात मोर्चा के राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित होंगे। इसमें उत्तर और दक्षिण भारत में सभी मोर्चों के राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन किए जाएंगे। उत्तर भारत में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलनों में दो की मेजबानी प्रदेश भाजपा करेगी। भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय सम्मेलन कानपुर में होगा, जबकि अनुसूचित जाति का राष्ट्रीय सम्मेलन आगरा में होगा। हाल ही में भाजपा की एक बड़ी बैठक में उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी को देखते हुए ओबीसी मोर्चा का भी राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की मांग उठी है।

 बैठक में मुख्यमंत्री ने सरकार की उपलब्धियों की चर्चा के साथ ही सत्ता व संगठन के समन्वय से इन्हें घर-घर तक पहुंचाने का टास्क पदाधिकारियों को सौंपा है। भाजपा ने सभी सीटों के लिए लोकसभा चुनाव के प्रभारियों और संयोजकों के नाम तय कर लिए हैं। प्रत्येक विधानसभा में दो नवमतदाता सम्मेलन करने और कॉलेजों के कैंपस व हाॅस्टल में युवाओं से संपर्क करने की कार्ययोजना साझा की। संभावना बन रही है कि उत्तर प्रदेश में एनडीए के तहत भाजपा 72 सीट पर, जयंत चैधरी की आरएलडी 04 सीट पर, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाल) दो सीट पर, संजय निषाद की निषाद पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एक-एक सीट पर चुनाव लड़े। अब देखना है कि लोकसभा चुनाव घोषित होने के पहले भाजपा अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए और क्या नई रणनीति अपनाएगी, जिससे वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 400 पार के लक्ष्य को पूरा कर सके।

 श्रीधर अग्निहोत्री

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