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Navratri Special: गंगा नदी से निकल कर विराजमान हुई थीं मां काली, सैकड़ों साल पुराना है इतिहास

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बलियाः चैत्र नवरात्रि (navratri) में जिले के हर छोटे-बड़े देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ रहा है। जिले के सुदूर दोकटी थाना क्षेत्र के जगदीशपुर गांव स्थित काली मंदिर भी इन दिनों आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां की महिमा ऐसी है कि जो भी अपनी सच्चे दिल से पूजा पाठ करता है, उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। मान्यता है कि जो भी मन्नत मांगकर पूजा-पाठ देवी माँ की करता है, उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है।

क्षेत्रीय लोगों में इस मंदिर के प्रति आस्था सैकड़ों साल से कायम है। जगदीशपुर निवासी रामेश्वर पाण्डेय मंदिर के विषय में बताते हैं कि लगभग सौ साल पहले काली जी की इस मूर्ति को कोलकाता के एक बड़े माड़वारी ने पूजा करने के लिए बनवाया था। मूर्ति की भव्यता देख एक तांत्रिक उस पर मोहित हो गया। उसे हथियाने के लिए माड़वारी से झूठ बोल दिया कि मूर्ति ठीक नहीं है, आपको नुकसान पहुंचा देगी।

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माड़वारी डर गया और मूर्ति को हटाने की बाते कहने लगा। उसी माड़वारी के यहां काम कर रहे जगदीशपुर निवासी शिवशंकर पाण्डेय मूर्ति को किसी तरह अपने गांव लाये। गांव स्थित एक पेड़ के नीचे रख पूजा पाठ करने लगे। बाद में जयराम पाण्डेय ने मंदिर बनवाकर उसमें मूर्ति को रख दिया तो गांव के लोग पूजा पाठ करने लगे। तांत्रिक उस मूर्ति के लिए खोजते-खोजते गांव भी पहुंच गया। मूर्ति खंडित होने की बात कहकर गांव वालों से मूर्ति को गंगा नदी में प्रवाहित करा दिया। रात में वही तांत्रिक मूर्ति को गंगा नदी में खोजने लगा।

गांव वालों ने जब देखा तो उनको शक हुआ। तब अगली सुबह गांव वालों ने मूर्ति को पानी से निकालकर मंदिर में रख दिया। इसके बाद मूर्ति की स्थापना कर पूजा-पाठ होने लगा। मान्यता है कि जो भी मन्नत मांगकर पूजा-पाठ देवी माँ की करता है, उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है। यही आस्था इस मंदिर तक लोगों को खींच कर लाती है। इस नवरात्रि (navratri) में भी लोगों की भीड़ उमड़ रही है।

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