कहा जाता है ‘लव एंड वार’ यानी प्रेम और युद्ध में सब जायज है। इसके आगे नीति, नैतिकता और सिद्धांत की बातें गौण हैं। लक्ष्य है कि कब्जा किया जाए, जीता जाए और मकसद को हासिल किया जाए। इसके लिए झूठ-सच, छल-कपट, तिकड़म आदि का सहारा लेना कोई गलत बात नहीं है। लोकतंत्र में चुनाव भी किसी युद्ध से कम नहीं है। यह भी हार और जीत का खेल है। इस खेल के लिए सभी उचित-अनुचित तौर-तरीके अपनाए जाते हैं। सत्तालोलुपता के बढ़ने से आदर्शों और सिद्धांतों के लिए कोई जगह नहीं बची है। हम देखते हैं कि चुनाव आचार संहिता के पालन में चुनाव आयोग को पसीना छूट जाता है। कई बार तो मर्यादाएं तार-तार हो जाती हैं और आयोग असहाय-सा नजर आता है। 18वीं लोकसभा के चुनाव का पारा जैसे-जैसे ऊपर चढ़ रहा है, पक्ष-विपक्ष के बीच तकरार व आरोप-प्रत्यारोप भी बढ़ता जा रहा है।
दो मोर्चे आमने-सामने हैं। एक तरफ भाजपा नीति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) है तो दूसरी ओर कांग्रेस नीत आईएनडीआईए (इंडिया) गठबंधन है। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध का जो मैदान है, वहां भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य संघर्ष है। कांग्रेस ने 05 अप्रैल को अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया। 10 ‘न्याय’ और 25 ‘गारंटी’ पर आधारित इस घोषणा पत्र को ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया गया है। उसका दावा है कि उसने समाज के विभिन्न तबकों तथा क्षेत्रों के साथ न्याय की बात की है। ये तबके हैं किसान, युवा, महिला, श्रमिक आदि। पांच क्षेत्र हैं, जहां विशेष पहल की जरूरत है। यह है संविधान, आर्थिक, राज्य, रक्षा और पर्यावरण। कांग्रेस पार्टी ने वादा किया है कि देश में सरकार बनने पर वह जाति आधारित जनगणना कराएगी और आरक्षण की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करेगी। कांग्रेस ने यह भी वादा किया है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में मिलने वाले 10 प्रतिशत के आरक्षण को सभी वर्गों के गरीबों के लिए भेदभाव रहित लागू करेगी।
भाजपा ने 14 अप्रैल यानी अम्बेडकर जयंती के दिन अपना घोषणापत्र जारी किया। इसे ‘संकल्प पत्र’ कहा गया है, जो ‘देश के सभी नागरिकों को मोदी की गारंटी है’। इसमें समाज के सभी वर्गों से लेकर क्षेत्रों के लिए कुछ नहीं, बहुत कुछ है। ट्रांसजेंडर से लेकर वरिष्ठ नागरिकें के लिए योजनाएं हैं। मुफ्त राशन व सस्ती गैस आदि की जो सुविधाएं मोदी सरकार से मिल रही हैं, वह जारी रहेंगी। इसकी गारंटी है। इसमें ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का भी वादा है। घोषणपत्र सुधार कार्यक्रम और विकास योजनाएं जारी रखते हुए 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प है। राजनीति में ‘गारंटी’ शब्द इस समय केन्द्र में है। नए शब्द गढ़ने में नरेन्द्र मोदी का कोई तोड़ नहीं है। गारंटी का दोहरा चरित्र है। यह एक तरफ सरकार के आत्मविश्वास का प्रतीक है, तो दूसरी तरफ मोदी सरकार के प्रति आम लोगों के विश्वास का प्रतीक है।
यह गारंटी इस बार कांग्रेस के घोषणापत्र में भी आ गया है। उसने भी गारंटी की बात की है। यह अलग बात है कि इसी को लेकर विपक्ष मोदी सरकार पर हमला बोलता है। उसने भाजपा के घोषणापत्र को ‘जुमलों का दस्तावेज’ की संज्ञा दी है। आमतौर पर चुनाव से पहले पार्टियां लोक-लुभावन बातें करती हैं और वह सब बातें उनके घोषणा पत्र में आती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद वह घोषणा पत्र आामतौर पर कागजी बनकर रह जाता है। उस पर अमल या रिव्यू कम ही हो पाता है। कोई सरकार इस संबंध में अपवाद नहीं है। होना तो यह चाहिए कि जो सरकार सत्ता में हो, उसे अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करना चाहिए लेकिन यह संस्कृति नहीं बन पाई है।
कांग्रेस के घोषणापत्र पर लीग की छाप
पक्ष और विपक्ष के दलों के बीच वाकयुद्ध का होना स्वाभाविक है। चुनाव के दौरान आरोप व प्रत्यारोप लगाए जाते हैं। मर्यादाएं टूटती रहती हैं। जुबान फिसलती रहती है लेकिन बात यदि देश की सुरक्षा, उसके अस्तित्व तथा स्वाभिमान जैसे संवेदनशील मुद्दों को लेकर हो, तो उस पर ध्यान जाना और उस पर गंभीर विचार-विमर्श आवश्यक हो जाता है। ऐसा ही मुद्दा कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने पर हुआ। घोषणा पत्र जारी नहीं हुआ कि भाजपा और उसके नेताओं ने कांग्रेस पर आरोपों की झड़ी लगा दी। सबसे गंभीर आरोप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगाया और अपनी चुनावी सभा में कहा कि इस पर मुस्लिम लीग, जो देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार है, के 1936 के घोषणापत्र की छाप है। कांग्रेस और लीग में वैचारिक साम्य है। नरेन्द्र मोदी के आरोप में साफ है कि कांग्रेस की विचारधारा अलगाववादी और विभाजनकारी है।
नरेन्द्र मोदी के द्वारा दक्षिण भारत की जनसभा में कांग्रेस और डीएमके को देशविरोधी तक बताया गया। क्या यह मात्र चुनावी बातें हैं ? क्या ऐसा है ? कांग्रेस मुस्लिम लीग के रास्ते पर तो नही बढ़ रही है ? क्या कहा पीएम मोदी ने ? इस पर गौर किया जाए। अपनी एक चुनावी जनसभा के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में वही सोच झलकती है, जो आजादी के आंदोलन के समय मुस्लिम लीग में थी। भाजपा ने मुस्लिम लीग के 1936 के घोषणापत्र और कांग्रेस के 2024 के घोषणापत्र के तीन बिंदुओं की आपस में तुलना की है। इसमें उन्होंने तीन प्वाइंट्स को फोकस किया। पहला, भाजपा के मुताबिक, ‘1936 में मुस्लिम लीग ने अपने मेनिफेस्टों में कहा था कि वह मुस्लिमों के लिए शरिया व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉज) की रक्षा करेगी।
2024 में कांग्रेस ने भी कहा है कि वह यह तय करेगी कि अल्पसंख्यकों के व्यक्तिगत कानून हों। दूसरा, 1936 में आए मुस्लिम लीग के घोषणा पत्र में उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी बहुसंख्यकवाद के खिलाफ लड़ेगी। कुछ ऐसा ही जिक्र 2024 चुनाव को लेकर आए कांग्रेस के घोषणा-पत्र में भी देखने को मिला है। कांग्रेस ने इसमें कहा है कि भारत में बहुसंख्यकवाद के लिए कोई जगह नहीं है। तीसरा, 1936 में मुस्लिम लीग ने कहा था कि हम मुस्लिमों के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप और नौकरियों के लिए संघर्ष करेंगे। 2024 में कांग्रेस ने कहा है कि हम इंश्योर करेंगे कि मु्स्लिम छात्रों को विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिले और उन्हें सुविधाएं प्राप्त हो।
मुस्लिम हित कांग्रेस की सर्वोच्च प्राथमिकता
भाजपा समान नागरिक कानून की पक्षधर है। वह कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का जनसंघ के जमाने से विरोध करती रही है। मोदी सरकार ने 05 अगस्त 2019 को धारा 370 को खत्म ही नहीं किया, बल्कि जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य के दर्जे से भी वंचित कर दिया। कांग्रेस का मत इसके विरुद्ध रहा है और है। उसने अपने घोषणपत्र में इन मुद्दों से परहेज नहीं किया है। समान नागरिक कानून पर वह मोदी सरकार का विरोध करती रही है और उसने मुस्लिम हितों को आगे रखा है। ऐसा करना क्या कांग्रेस की राजनीतिक बाध्यता तो नहीं ? इस समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। आजादी के बाद सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई थी।
अपने शासन की सुदृढ़ता और अस्तित्व के लिए उसने जिस सामाजिक आधार का निर्माण किया, वह जाति पर आधारित था। कांग्रेस के सामाजिक आधार की धुरी ब्राह्मण, हरिजन और मुसलमान बने। कांग्रेस के ‘हरिजन नीति’ के तहत ही जगजीवन राम जैसे हरिजन से आए नेता को स्थापित किया गया, वहीं राजाओं, सामंतों, राजे-रजवाड़ों और ब्राह्मणों को सरकार के शीर्ष पदों पर सम्मानित किया गया। धार्मिक आधार पर देश विभाजन और पाकिस्तान बनने के बाद मुसलमानों के अंदर असुरक्षा के भाव को आधार बनाकर उनके हितैषी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। इंडियन मुस्लिम लीग भंग हो चुकी थी। कांग्रेस की यही जमीन थी, जिस पर राम मनोहर लोहिया ने चोट की थी और गैर-कांग्रेसवाद तथा द्विजों के विरुद्ध वर्ण संघर्ष का नारा दिया था। पिछड़ी जातियों द्वारा आरक्षण की मांग की गई। ‘मंडल-कमंडल’ जैसी परिघटना उसी की उपज है। इस परिघटना के बाद भारतीय राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन आया।
मंडल और कमंडल परिघटना के बाद ‘सामाजिक न्याय’ आंदोलन को एक नया आधार मिला। दलित और पिछड़ों की सत्ता में हिस्सेदारी का सवाल प्रमुखता से उभरा। दलित आंदोलन की सबसे सशक्त धारा के रूप में काशीराम का उदय हुआ। उन्होंने नई सोशल इंजीनियरिंग करते हुए नया दलित एजेंडा पेश किया। कांग्रेस के हरिजन वोट बैंक को आक्रामक दलित राजनीति के तहत गोलबंद किया गया। दलित अस्मिता, सम्मान और सत्ता में उनकी भागीदारी को लेकर नए दलित विमर्श की शुरुआत हुई। दलित जातियों से आए नायकों को प्रतिष्ठित किया गया। गांधी, नेहरू, पटेल आदि स्थापित नेताओं की जगह डॉ. अंबेडकर और दलित नेताओं को स्थापित करने का काम जोर-शोर से किया गया। यही सामाजिक न्याय आंदोलन के उभार का दौर है। मंडल कमीशन लागू हुआ। सपा, राजद, जदयू जैसे अनेक छोटे व बड़े दलों का उदय हुआ।
लोहिया, जनेश्वर मिश्र, कर्पूरी ठाकुर आदि समाजवादी नेताओं के साथ पिछड़ी जातियों से आए नेताओं को प्रतिष्ठा मिली। भारतीय राजनीति विशेष रूप से उत्तर भारत की राजनीति का नए आधार पर या कहिए जातिवादी आधार पर ध्रुवीकरण हुआ। कांग्रेस का सामाजिक आधार छिन्न-भिन्न हो गया। जहां ब्राह्मण और सवर्ण जातियां जो कांग्रेस के परंपरागत वोट हुआ करते थे, वह भाजपा के साथ गया तो वहीं हरिजन आधार बसपा जैसी पार्टियों की ओर। अपने सामाजिक आधार को प्राप्त करना तथा अपने साथ ले आना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। समाज का अल्पसंख्यक समुदाय भी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगााल आदि बड़े प्रदेशों में काांग्रेस से छिटक गया तथा वह वहां के क्षेत्रीय दलों के साथ हो लिया। यहां तक कि उत्तर प्रदेश में रायबरेली और अमेठी इंदिरा गांधी परिवार का गढ़ माना जाता था, वह भी उनसे बिदक गया। राहुल गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा। वे यहां से पलायन कर गए तथा केरल के वायनाड पहुंच गए, ताकि मुस्लिम मतदाताओं के जरिए उनकी जीत की गारंटी तय हो सके। केरल देश का ऐसा प्रदेश है, जहां इसाई और मुसलमान दोनों समुदायों की संख्या बहुतायत है। कांग्रेस और वामपंथियों का गढ़ है और भाजपा लम्बे समय से यहां सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस की वर्तमान रणनीति
आज कांग्रेस से उसका परम्परागत सामाजिक आधार अलग हो चुका है। वह अपने मुस्लिम आधार को एकजुट करने में लगी है। वह इसी दिशा में काम कर रही है। उसकी समझ है कि अनेक प्रदेशों में मुस्लिम समाज को वह अपने साथ ले आ सकती है। आम तौर पर कांग्रेस का मजबूत सामाजिक आधार इस अल्पसंख्यक समुदाय के अंदर पूरे देश में मौजूद है। हिन्दी प्रदेशों में कांग्रेस के साथ अन्य दलों की भी मुसलमान मतों पर दावेदारी है बल्कि यूपी, बिहार, बंगाल में इनके बीच कांग्रेस का आधार नहीं ंके बराबर है। वह यहां भी अपने आधार को बढ़ाने में लगी है। कांग्रेस मूलतः अल्पसंख्यकवाद की समर्थक है। मुस्लिम हितों की समर्थक होकर ही वह अपने सामाजिक आधार को बरकारार रख सकती है। ब्रिटिश भारत में मुस्लिम समुदाय के हितों के लिए मुस्लिम लीग थी। उसके दो राष्ट्र की अवधारणा से देश का विभाजन हुआ। यदि ऐसी ही नीतियां बनी तो अलगाव व विभाजन बढ़ेगा। एक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है।
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आज देश में बहुसंख्यकवाद बढ़ रहा है, तो इसके पीछे राजनीति का अल्पसंख्यकवादी होना बड़ा कारण है। वैसे भारत के बहुलतावाद के दोनों विरुद्ध है। कांग्रेस के लिए आवश्यक है कि वह बताए कि उसके घोषणापत्र या न्यायपत्र में जो कहा गया है, वह मुस्लिम लीग से कहां अलग है। दोनों में कहीं न कहीं कुछ साम्य अवश्य है इसीलिए प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम लीग के 1936 के घोषणापत्र की छाप है। यदि भारत को एक आधुनिक व विकसित राष्ट्र बनना है तो उसे धर्म, जाति, क्षेत्र आदि की संकीर्णता से मुक्त होना होगा। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। सरकारें आती रहेंगी, जाती रहेंगी लेकिन मूल भारत के लिए उसकी अखण्डता व प्रगति अधिक आवश्यक है। आज वह विश्व की बड़ी ताकत है। दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम 2024 में अवश्य हैं लेकिन लक्ष्य 2047 के लिए आगे की राह बनाने का है। कांग्रेस के घोषणापत्र में ऐसा नहीं दिखता। वह आज भी जाति जनगणना में फंसी हुई है, वहीं भाजपा के संकल्प पत्र में विकसित भारत की संकल्पना या उसकी झलक मिलती है।
कौशल किशोर
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