भोपालः कोरोना महामारी की याद सिहरन पैदा कर देती है। यह तो बच्चों के लिए और भी ज्यादा असर डालने वाली रही, क्योंकि उनकी जिंदगी पंछी की तरह पिंजरे में कैद हो गई थी। ऐसे समय में मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में बेटियों ने इन बच्चों की आकांक्षाओं और कल्पनाओं को न केवल उड़ान दी, बल्कि उनके मन में पढ़ने की ललक भी जिंदा रखी। कोरोना महामारी के दौर में स्कूल बंद कर दिए गए थे। लॉक डाउन लगाया गया, जिसके चलते सारी गतिविधियां रुक गई, आम जिंदगी पूरी तरह थम गई थी।
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12 हजार से ज्यादा बच्चों के बीच किया गया सर्वे
ऐसे में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास की चिंता सभी को थी। तब भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने सीहोर जिले में सामुदायिक शिक्षण केंद्र खोलने की योजना बनाई। इसमें बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ का भी साथ मिला। भारत ज्ञान विज्ञान समिति की आशा मिश्रा बताती हैं कि जिले में 12 हजार से अधिक बच्चों के बीच सर्वे किया गया और उनकी जरूरत को महसूस करते हुए समुदायों से बातचीत की गई। समुदाय के प्रतिनिधि इसके लिए राजी हुए और बेटियां इस काम के लिए आगे आई। इसके लिए वे इलाके चुने गए जो समाज के हाशिए पर हुआ करते हैं। उदाहरण के तौर पर आदिवासी, दलित और अन्य कमजोर वर्ग वाले। इसमें समाज का सहयोग मिला और उसके बाद यह केंद्र शुरू किए गए।
सीहोर जिले में पांच सैकड़ा से ज्यादा सामुदायिक शिक्षण केंद्र संचालित हो रहे हैं, उनमें 687 वॉलिंटियर्स बच्चों की रुचि के अनुसार पढ़ाई के काम में लगे हुए हैं। खास जोर भाषा और गणित पर है। इन केंद्रों में पहली से पांचवीं तक के बच्चे आते हैं। सामुदायिक शिक्षण केंद्र (कम्युनिटी लनिर्ंग सेंटर) में अधिकांश केंद्रों पर बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं ने संभाल रखी है। जो बच्चों को खेल-खेल में भाषा और गणित का ज्ञान देने में लगे हैं। यहां के कांकरिया गांव में संचालित केंद्र की बबली इवने खुद एमए की पढ़ाई कर रही है।
बच्चों को पढ़ाने में आता है मचा
वे बताती है कि उन्हें बच्चों को पढ़ाने में आंतरिक सुख की अनुभूति होती है, साथ ही बच्चों का भविष्य बना रहे इसके लिए वे खेल खेल में पढ़ाई कराती है। बच्चे भी स्कूल से लौटने के बाद पांच बजे केंद्र पर आ जाते हैं और दो घंटे तक खूब मस्ती में पढ़ाई करते हैं। इसी तरह कोकरिया के ही एक अन्य केंद्र में पिंकी दांगोटिया खुद राजनीति शास्त्र में एमए की पढ़ाई कर रही हैं, मगर घर में 20 बच्चों को पढ़ाती हैं। पिंकी बताती हैं कि बच्चों को जब खेल-खेल में पढ़ाया जाता है तो उन्हें यह एहसास नहीं होता कि वे पढ़ रहे हैं और दबाव भी महसूस नहीं करते। लिहाजा स्कूल जाने के बाद भी यह बच्चे खुशी खुशी पढ़ने केंद्र तक आ जाते हैं।
एक अन्य गांव है चकल्दी, जहां दो बहने अभिलाषा और प्रियांशी धुर्वे केंद्र का संचालन करती है। बीते एक साल से इस काम में लगी दोनों बहनें बताती हैं कि बच्चे केंद्र पर आकर खूब मस्ती करते हैं और पढ़ाई भी करते हैं। हां इस बात का ध्यान जरूर रखना पड़ता है कि बच्चे जब खेलने की इच्छा जताते हैं तो उनके साथ खेलना भी पड़ता है। बच्चों को यह केंद्र घर जैसे लगते हैं। यही कारण है कि बच्चे स्कूल से घर पहुंचते हैं और केंद्र में आने की जिद करने लगते हैं।
यूनिसेफ मध्य प्रदेश के शिक्षा विशेषज्ञ एफ.ए. जामी का कहना है, "यह देखना अच्छा है कि समुदाय के नेतृत्व में विशेष रूप से लड़कियों द्वारा किए गए प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सीहोर जिले में देखने को मिल रहे हैं जब कोरोना के दौरान स्कूल बंद होने के कारण सीखने के नुकसान को दूर करने के लिए काम किया गया।" चकल्दी के शासकीय प्राथमिक विद्यालय की अध्यापिका सुमन उपाध्याय मानती है कि कोरोना काल में शुरू हुए सामुदायिक शिक्षण केंद्र में बच्चों को पढ़ाए जाने और उसके बाद किए गए संपर्क अभियान के चलते विद्यालय में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी है।
वर्ष 2020 में जहां छात्र संख्या 70 थी जो अब बढ़कर 116 हो गई
वर्ष 2020 में जहां छात्र संख्या 70 थी जो अब बढ़कर संख्या 116 हो गई है। सामुदायिक शिक्षण केंद्र में पढ़ने जाने वाले बच्चों की मां रीना धुर्वे और ममता विश्वकर्मा का कहना है कि कोरोना के हाल में बच्चों की सबसे ज्यादा चिंता रहती थी क्योंकि बच्चे खेलने जा नहीं सकते और उन्हें बीमारी से बचाना चुनौती भरा था। ऐसे में अगर पढ़ाई की ललक बनी रही तो उसकी बड़ी वजह यह केंद्र है क्योंकि स्कूल तो बंद हो गए थे और ट्यूशन पढ़ाना आसान नहीं था। इस स्थिति में यह केंद्र बच्चों में नया उत्साह बनाने में बड़े मददगार हुए हैं।
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