दंतेवाड़ा: जिले में स्थित मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ संभवत: देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां देवी दंतेश्वरी नवरात्रि और बाकी दिनों में शक्ति स्वरूपा दुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं, तो दीपावली पर उनका मां लक्ष्मी स्वरूप में पूजन होता है। यह पूजन एक दिन नहीं बल्कि पूरे 09 दिनों तक चलता है, जिसे तुलसीपानी विधान कहा जाता है।
मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ के पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के मुताबिक इस शक्तिपीठ में मांईजी, देवी नारायणी स्वरूप में विराजित हैं। यही वजह है कि यहां पर मंदिर के सामने गरूड़ स्तंभ स्थापित हैं, जो अन्यत्र किसी भी देवी मंदिर में नहीं मिलता। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान विष्णु कार्तिक माह में मत्स्य स्वरूप में रहते हैं। कार्तिक माह में ही उन्होंने जलंधर का वध करने उसकी पत्नी तुलसी का पतिव्रत धर्म भंग किया था। इसके बाद से तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में पूजा करने का वर दिया था। तब से ऐसी परंपरा चली आ रही है।
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शक्तिपीठ में महामंडप में प्रवेश से पहले भैरवमंडप के पीछे एक ही शिलाखंड के एक तरफ माता गजलक्ष्मी और दूसरी तरफ भैरव उत्कीर्ण की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है, जिसकी विशेष पूजा दीपावली में की जाती है। डेढ़ फीट चौड़ी, एक फीट मोटी और 02 फीट ऊंची प्रतिमा विशिष्ट है। आमतौर पर प्रतिमा शिलाखंड के एक तरफ ही उकेरी जाती है। पुजारी हरेंद्र नाथ की मानें तो देवी तक बात पहुंचाने के लिए भैरव को उपयुक्त संदेशवाहक की मान्यता मिली हुई है, इसी वजह से अगले हिस्से में भैरव और पिछले हिस्से में गजलक्ष्मी अंकित हैं।
कार्तिक अष्टमी से चतुर्दशी 08 दिनों तक लगातार दंतेश्वरी सरोवर से पानी लाकर देवी को स्नान कराया जाएगा। दीपावली की पूर्व संध्या जड़ी-बूटियों से सर्वऔषधि का काढ़ा तैयार किया जाता है। इस काढ़े से सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में देवी को स्नान कराकर पूजा अर्चना की जाती है। देवी दंतेश्वरी मंदिर में दीपावली के सप्ताहभर पहले से पूजन की शुरूआत हो जाती है। लक्ष्मी पूजा की पूर्व संध्या पर मंदिर में सेवा देने वाले काढ़ा तैयार करने जंगल से तेजराज कदंब की छाल, छिंद का कंद और अन्य दर्जनों जड़ी बूटियां जाती हैं, जिसे पारंपरिक रायगिड़ी वाद्य की गूंज के साथ मंदिर तक पहुंचाया जाता है।
दीपावली की पूर्व संध्या पर तुलसीपानी पूजन के दौरान सर्वऔषधि लाने मंदिर के पुजारी व सेवादार जयस्तंभ चौक तक जाते हैं। सर्वऔषधि से काढ़ा तैयार करने के लिए सेवादार दंतेश्वरी सरोवर से जड़ी-बूटी लेकर लौटते हैं, फिर मंदिर के भोगसागर में काढ़ा तैयार किया जाता है, जिससे लक्ष्मी पूजन की सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में देवी को स्नान करवाया जाता है।
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