वाराणसीः अगहन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर गुरूवार को अन्न-धन की देवी मां अन्नपूर्णा के दरबार को धान की बालियों से सजाया गया। श्रद्धालुओं ने दरबार की 21 या 101 बार परिक्रमा कर माता रानी के दर्शन पूजन के साथ 17 दिवसीय व्रत का समापन भी किया। व्रत का संकल्प श्रद्धालुओं ने अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 24 नवम्बर को लिया था। व्रत रहने वाली महिलाओं ने पूर्णाहुति पर 17 गांठ के धागे और इतनी ही संख्या में फल-फूल, दूर्वा, चावल और सिंदूर से मां अन्नपूर्णा को चढ़ाया।
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इसके पहले भोर में मंदिर के महंत शंकर पुरी महाराज की देख रेख में माता के विग्रह को पंचामृत स्नान कराने के बाद नूतन वस्त्र धारण करा श्रृंगार रचाया गया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भोग लगा पूजन अर्चन, महाआरती कर मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया। मध्यान भोग आरती में दरबार को धान की बालियों से सजाकर गर्भगृह का भी श्रृंगार किया गया। दरबार में पूर्वांचल के जिलों से आये किसानों ने अपनी फसल की बाली चढ़ाई। दर्शन पूजन के दौरान घर परिवार में सुख शान्ति और वंश बेल वृद्धि की अर्जी लगाई। किसानों को प्रसाद स्वरूप धान की बाली दी गई।
मान्यता है कि मां को धान की बाली अर्पित करने से फसल में बढ़ोत्तरी होती है। किसान प्रसाद स्वरूप मिले धान की बाली को दूसरी धान की फसल में मिला देते हैं। मंदिर के प्रबंधन से जुड़े पदाधिकारियों ने बताया कि यह परम्परा आदि काल से चली आ रही है। किसानों के खेत की पहली फसल होते ही पूर्वांचल के किसान मां के दरबार में धान अर्पित करते हैं। मान्यता यह है कि इससे खेती में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती और महाव्रत से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। धान के एक बाल को रखने से धन, धान्य दोनों भरा रहता है। माता के कृपा से अन्न-धन और ऐश्वर्य की कमी नहीं होती है।
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