प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अपने प्रचार अभियान की शुरुआत मेरठ से करने जा रहे हैं। ध्यान रखना होगा कि मोदी ने इसी मैदान पर पहली चुनावी रैली 2019 में और उससे पहले 2014 में भी संबोधित की थी। पिछली बार ये रैली 28 मार्च को हुई थी, इस बार 30 तारीख को होने जा रही है। पिछले चुनाव के पहले चरण में इस जाटलैंड की जिन आठ सीटों पर वोटिंग हुई थी, उनमें से छह सीटें बीजेपी ने जीती थीं। बहुजन समाज पार्टी ने दो लोकसभा सीटों, बिजनौर और सहारनपुर में जीत हासिल की थी।
राज्यसभा जा सकते हैं जयंत
तब बसपा और सपा के बीच बुआ-भतीजे की जोड़ी असरदार रही थी। इन दोनों पार्टियों ने राष्ट्रीय लोकदल को भी समर्थन दिया था लेकिन प्रमुख जाट नेता चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी हार गये थे। पिता-पुत्र दोनों मुजफ्फरनगर और बागपत से प्रत्याशी थे। चौधरी अजित सिंह अब नहीं रहे और तब से जयंत चौधरी कई राजनीतिक चालें चल चुके हैं। फिलहाल उन्होंने सपा छोड़कर बीजेपी से हाथ मिला लिया है और वह प्रधानमंत्री के मंच पर जरूर नजर आएंगे।
काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने बीजेपी से सिर्फ दो सीटों पर समझौता किया है, जबकि एसपी से थोड़ी ज्यादा सीटें मिल रही थीं। वह खुद चुनाव मैदान में नहीं हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा में बनाए रखने का फैसला किया है। चौधरी की पार्टी बीजेपी के समर्थन से बिजनौर और बागपत से चुनाव लड़ रही है।
स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री की रैली में मेरठ के अलावा जयंत चौधरी के प्रभाव वाले इलाकों से भी बड़ी संख्या में समर्थक शामिल होंगे। आरएलडी के उम्मीदवार बिजनौर और बागपत के अलावा मुजफ्फरपुर से कैराना और खतौली से लेकर सहारनपुर तक के जाट प्रभावित इलाकों के लिए इस बार क्या फैसला लेते हैं, यह देखने वाली बात होगी। पिछली बार उन्होंने जाटों के प्रतीक पिता-पुत्र को शिकस्त दी थी। अब सवाल ये है कि बीजेपी घटते प्रभाव के बावजूद जयंत की पार्टी को तवज्जो क्यों दे रही है।
मुस्लिम-जाट एकता पर पीएम का संदेश
इसे समझने के लिए यह देखना होगा कि पार्टी की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुरादाबाद मंडलों के साथ-साथ मेरठ, अलीगढ़ और आगरा के 18 जाट बहुल इलाकों पर भी है, जहां वह बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। इसीलिए मुजफ्फरनगर के संजीव बालियान को मंत्री पद दिया गया, जबकि मुरादाबाद के भूपेन्द्र चौधरी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इसके बाद भी चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी का किसानों, खासकर जाट किसानों के बीच प्रभाव बना हुआ है। जयंत के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से मुस्लिम-जाट समीकरण को भी मजबूती मिल रही थी। अब जब जयंत ने सपा छोड़ दी है तो बीजेपी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है।
मुस्लिम-जाट एकता टूटने के संकेत के साथ प्रधानमंत्री मोदी अपनी मेरठ रैली से एक और बड़ा संदेश दे सकते हैं। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मेरठ रैली में पार्टी प्रत्याशी अरुण गोविल भी मंच पर होंगे। गोविल ने अपने समय के मशहूर धारावाहिक रामायण में राम की भूमिका निभाई थी। देखा जाए तो इस सीरियल के अलावा अरुण गोविल को फिल्मों या छोटे पर्दे पर ज्यादा जगह नहीं मिली।
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इस तरह वह लोगों की नजरों से ओझल रहे, लेकिन अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम की हर निशानी महत्वपूर्ण लगने लगी है। ऐसा संभव नहीं लगता कि बीजेपी और उसके नेता नरेंद्र मोदी इस मौके को बिना चर्चा किये जाने देंगे। इसलिए जाट-मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ने के साथ-साथ हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना मेरठ रैली का मूल उद्देश्य होगा और इस प्रयोग को पूरे उत्तर भारत में लागू करने की तैयारी की गई है।
डॉ. प्रभात ओझा