Mahashivratri: महाशिवरात्रि भगवान शिव का त्योहार है। देश के सभी राज्यों में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भारत के साथ-साथ नेपाल, मॉरीशस समेत दुनिया के कई अन्य देशों में भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है। हर साल फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन सृष्टि के आरंभ में आधी रात को भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि कहा जाता है। हमारे वेदों और पुराणों में शिवरात्रि के प्रसंग के बारे में बताया गया है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तो समुद्र में चौदह रत्न निकले। उन रत्नों में हलाहल भी था। जिसके ताप से सभी देवता और दानव त्रस्त होने लगे। तब भगवान शिव ने उसे पी लिया। उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपना बलिदान दे दिया। इसीलिए उन्हें महादेव कहा जाता है। जब उन्होंने हलाहल को अपने कंठ के पास रखा तो उसकी गर्मी से उनका कंठ नीला हो गया। तभी से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। शिव का अर्थ है कल्याण। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उनका वध करके लोगों की रक्षा करते हैं। इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है।
यौगिक परंपरा में, इस दिन और रात को इतना महत्व दिया जाता है क्योंकि वे आध्यात्मिक साधक के लिए जबरदस्त संभावनाएं प्रदान करते हैं। आधुनिक विज्ञान कई पड़ावों से गुजरने के बाद आज उस मुकाम पर पहुंच चुका है। जहां वह हर उस चीज़ को मान्य करता है जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं। पदार्थ और अस्तित्व के रूप में या जिसे आप ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के नाम से जानते हैं। यह सिर्फ एक ऊर्जा है। जो लाखों रूपों में स्वयं को अभिव्यक्त करता है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस दिन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी व्रत रखते हैं। महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने वालों के लिए भोजन करना वर्जित है। इसीलिए फल खाए जाते हैं। राजस्थान में व्रत के दौरान गाजर और बेर के फल खाए जाते हैं। लोग मंदिरों में भगवान शिव की पूजा करते हैं और उन्हें आक और धतूरा चढ़ाते हैं। भगवान शिव को भांग चढ़ाना विशेष प्रिय है। इसी कारण इस दिन कई स्थानों पर शिवभक्त भांग मिलाकर पीते हैं।
पुराणों में कहा जाता है कि एक समय शिव-पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे। पार्वती ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके ? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्यक्ति रहता था, जो जीवों को बेचकर अपना भरण पोषण करता था। उसने सेठ से धन उधार ले रखा था। समय पर कर्ज न चुकाने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बन्द कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी चतुर्दशी थी। वहां रातभर कथा, पूजा होती रही जिसे उसने भी सुना। अगले दिन शीघ्र कर्ज चुकाने की शर्त पर उसे छोड़ा गया। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिये। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आयेगा। अतः उसने पास के बील वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बील के नीचे एक शिवलिंग था। जब वह पेड़ पर अपने छिपने का स्थान बना रहा था उस समय बील के पत्तों को तोडकर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था। साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गये।
एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। उस व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किन्तु हिरणी की कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि सुबह होने पर वह स्वयं आयेगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि सुबह होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थी। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराये। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया।
जब भोर हुई तो वह बेल के वृक्ष से नीचे उतरा। नीचे आने पर और भी बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ गये। अत: भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसके हृदय को इतना नरम कर दिया कि वह अपने पुराने पापों को याद करके पश्चाताप करने लगा और उसे पशुओं की हत्या से घृणा हो गयी। प्रातःकाल वे सभी मृग-हिरनियाँ आये। उसे अपने सत्य वचनों का पालन करते देख उसका हृदय दूध के समान श्वेत हो गया और वह फूट-फूट कर रोने लगा।
योगियों और तपस्वियों के लिए, यह वह दिन है जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। योगिक परंपरा में शिव को भगवान के रूप में नहीं पूजा जाता है। बल्कि उन्हें प्रथम गुरु, आदि गुरु माना जाता है। योग विज्ञान के प्रवर्तक कौन थे? कई शताब्दियों तक ध्यान करने के बाद, शिव एक दिन पूरी तरह से स्थिर हो गए। उसके भीतर की सारी हलचल बंद हो गई और वह पूरी तरह शांत हो गया। उस दिन महाशिवरात्रि थी। इसलिए भिक्षु महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात के रूप में मनाते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण है। इस रात पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि मानव शरीर में ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति मनुष्य को अपने आध्यात्मिक शिखर पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की अपने शत्रुओं पर विजय के रूप में देखते हैं।
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महाशिवरात्रि का पर्व हमारे जीवन में दैवीय शक्ति के महत्व को दर्शाता है। यह हमें भगवान शिव द्वारा मानव जाति और सृष्टि के कल्याण के लिए जहर पीने जैसे महान त्याग को दर्शाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि यदि हम अच्छे कर्म करेंगे और ईश्वर पर विश्वास रखेंगे तो ईश्वर हमारी रक्षा अवश्य करेंगे। लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव हमारे करीब होते हैं और जो लोग इस दिन पूजा और रात्रि जागरण करते हैं उन्हें उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। कई लोग इस दिन दान करते हैं और गरीबों को खाना खिलाते हैं और भगवान शिव से उनके सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं।
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