Maa Kalratri Puja Vidhi and Mantra: माता दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि (Maa Kalratri) के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माता कालरात्रि की उपासना का विधान है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी-काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी भी कालरात्रि के अन्य प्रसिद्ध नाम हैं।
माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो माता के आगमन से पलायन करते हैं। यह ध्यान रखना जरूरी है कि मां कालरात्रि (Maa Kalratri) के नाम काली और कालरात्रि का उपयोग एक दूसरे के परिपूरक है, हालांकि इन दो देवियों को कुछ लोगों द्वारा अलग-अलग रूप में माना गया है। जानें मां का स्वरूप व मंत्र -
मां कालरात्रि का स्वरूप
देवी कालरात्रि (Maa Kalratri) का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है। मां कालरात्रि अपने तीनों बड़े बड़े उभरे हुए नेत्रों से भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं। देवी की चार भुजाएं हैं। दायीं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बायीं भुजा में क्रमशः तलवार और खड्ग धारण किया है। देवी कालरात्रि (Maa Kalratri) के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं। देवी कालरात्रि गर्दभ पर सवार हैं। मां का वर्ण काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है। देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है।
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मां कालरात्रि का प्रिय भोग
चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए उन्हें गुड़ और हलवा का भाग लगाना चाहिए। यह भोग मां कालरात्रि का अति प्रिय है। माता रानी इससे बेहद प्रसन्न होती हैं और अपने भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
देवी कालरात्रि का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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