बेगूसरायः पर्व-त्योहार के पावन माह कार्तिक में अगला सोमवार (15 नवंबर) सनातन धर्मावलंबियों के लिए बहुत ही पावन तिथि है। कहा जाता है कि चार माह पहले देवशयनी एकादशी के दिन क्षीरसागर में सोए भगवान विष्णु 15 नवंबर देवोत्थान एकादशी के दिन जग जाएंगे। इसके साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा तथा सबसे पहले तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन कर मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी। दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को सनातन धर्मावलंबी देवोत्थान एकादशी, देव उठान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से मनाते हैं। लेकिन लक्ष्य एक ही है क्षीर सागर में सोए भगवान विष्णु के जगाने के अवसर को उत्सव के रूप में मनाना। यूं तो यह एकादशी तमाम जगहों पर मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन का भी विशेष महत्व है।
24 एकादशी में देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व
साल में होने वाले 24 एकादशी में इस देवोत्थान एकादशी का विशिष्ट महत्व है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में विख्यात तिथि को भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन पर चले जाते हैं। शास्त्र पुराणों के अनुसार माना गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं। देवताओं का शयन काल मानकर इन चार महीनों में विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य नहीं होता है। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को क्षीर सागर में सोए भगवान विष्णु जागते हैं। इस अवसर पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह पूरे धूमधाम से मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है।
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भगवान विष्णु के जगने के बाद सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। विद्वतजन एवं वांग्मय के अनुसार इस चतुर्मास का प्रकृति सेे भी सीधा संबंध है। दीपावली और छठ के तुरंत बाद होने वाला यह एकादशी वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव से सामंजस्य बैठाने का भी संदेश देता है। जगत के आत्मा कहे जाने वाले सूर्यदेव इस दिनों में बादलों में छिपे रहते हैं। इसलिए वर्षा के इस चार महीनों में भगवान विष्णु सो जाते हैं। जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो जाग उठते हैं और सबको अपने भीतर जागने का संदेश देेेतेे हैं।
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