Lok Sabha Elections 2024, मेरठः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘किसानों के मसीहा’ व देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा कर विपक्ष को चौंका दिया है। इसी के साथ ही मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में विपक्ष का सूपड़ा साफ करने के अपने इरादे की ओर पुख्ता कदम बढ़ा दिया है।
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किसानों और जाट समुदाय को साधने की दिशा में यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। बीजेपी के इस कदम से सभी विपक्षी दल हैरान हैं और बधाई देने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली और कर्मभूमि रही है। जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के सफल क्रियान्वयन से किसानों को उनकी जमीन पर मालिकाना हक मिला। इसी कारण किसानों और जाट समाज में उन्हें देवता की तरह मान दिया जाता है।
कांग्रेस विरोध की राजनीति के बाद चौधरी चरण सिंह को अपना राजनीतिक गुरु मानने वाले नेताओं की बड़ी पंक्ति तैयार हो गई। इनमें मुलायम सिंह यादव, त्रिलोक त्यागी, केसी त्यागी, राजेंद्र चौधरी जैसे नेता शामिल है। मुलायम सिंह यादव ने तो खुद को चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। हालांकि उनके राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर चरण सिंह के बेटे अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच जीवनभर रस्साकशी चलती रही।
विरोधी दल भी पश्चिमी यूपी में आकर करते रहे गुणगान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश (खासकर जाट समुदाय) की राजनीति में चौधरी चरण सिंह का इतना प्रभाव था कि उनके कट्टर विरोधी भी चुनाव प्रचार के दौरान यहां आकर उन्हें प्रणाम करते थे। चौधरी चरण सिंह के विरोधी भी उनकी अनदेखी नहीं कर पाते थे और सार्वजनिक सभाओं में उन्हें प्रणाम करने के बाद ही अपना भाषण शुरू करते थे।
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2014 में टूट गया था जाट-मुस्लिम गठबंधन
चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह को स्वाभाविक रूप से उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी होने का लाभ मिलता रहा। इस कारण अजित सिंह बागपत से सात बार चुनाव जीते। 2013 के दंगों के बाद राष्ट्रीय लोकदल का परंपरागत जाट-मुस्लिम समीकरण टूट गया और रालोद सियासी बियाबान में फंस कर रह गया। 2014 और 2019 के चुनाव में अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी को लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
चौधरी चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी होने का लाभ स्वाभाविक रूप से उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह को मिलता रहा। इसी कारण अजित सिंह 7 बार बागपत से चुनाव जीते। हालांकि 2013 के दंगों के बाद राष्ट्रीय लोकदल का पारंपरिक जाट-मुस्लिम समीकरण टूट गया और रालोद राजनीतिक जंगल में फंस कर रह गया। यही कारण रहा कि 2014 और 2019 के चुनाव में अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
भारत रत्न की घोषणा से विरोधी सन्न
गौरतलब है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की मांग लगातार उठ रही थी। आरएलडी के साथ-साथ चरण सिंह द्वारा स्थापित लोकदल भी उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहा था। लोकसभा चुनाव से पहले चरण सिंह को भारत रत्न देने की प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा से विपक्षी दल भी हैरान रह गये हैं।
चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की पीएम मोदी की घोषणा का किसी भी दल का नेता विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। इसके लिए सभी लोग पीएम मोदी और केंद्र सरकार को धन्यवाद दे रहे हैं। वहीं लोकसभा चुनाव को देखते हुए इसे केंद्र सरकार का बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
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