लखनऊः बारिश के दिनों में जब हल चलाए जाते थे, तब किसानों के पास बोने के लिए अलसी जरूर रहती थी। धीरे-धीरे गेहूं, धान जैसी फसलों का विस्तार हुआ और अलसी की बोनी भी कम पड़ गई। किसानों के पास अब बोने के लिए बीज के रूप में भी अलसी नहीं है। सरकार की ओर से मोटे अनाज में अलसी बोने पर भी जागरूक किया जा रहा है, इसलिए किसानों का ध्यान अलसी की ओर खिंचने लगा है।
अलसी ऐसी फसल है, जिसमें आमदनी काफी है। एक ओर इसका उत्पादन बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर व्यापारिक प्रतिष्ठानों में इसकी मांग बढ़ रही है। अब लाभ और मांग के साथ सरकारी प्रोत्साहन मिलने पर किसान अलसी के प्रति दिलचस्पी ले रहे हैं। आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर अलसी की मांग किन क्षेत्रों में बढ़ रही है और किसानों को इसमें लाभ क्या है? अलसी के बीजो से मिलने वाला तेल दवाओं को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल को वार्निश, पेंट, इंक, साबुन आदि बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। अलसी के तेल को दीपक जलाने में भी प्रयोग किया जाता है। फोडे़े और फुंसी को ठीक करने के लिए इसकी पुल्टिस भी बनाई जाती है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले रेशे होते है। तेल निकालने से प्राप्त होने वाली खली पशुओं का पौष्टिक आहार बनती है जबकि कुछ किसान इसकी खाद भी बनाते हैं।
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अलसी की खेती के लिए उत्तर प्रदेश की मिट्टी, जलवायु के अलावा यहां का तापमान काफी अनुकूल है। हालांकि, अभी गर्मी के दिन हैं, लिहाजा अलसी के बीज गर्मी में नहीं बोए जा सकते हैं। अभी किसानों को उनकी लाभदायक और पारंपरिक फसल के लिए जमीन तैयार करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। किसानों को बारिश के दिनों में इसके उपज का पूर्वानुमान भी होगा, क्योंकि अलसी 50 फीसदी वार्षिक बारिश में बेहतर होती है और अब ऐसे दिन भी आने वाले हैं, जिनसे बारिश के साथ बोनी के दिनों का तापमान भी परख लिया जाएगा।
इसके बीज 15 से 20 डिग्री तापमान पर अंकुरित होते हैं। यदि सरकार की ओर से दिए जाने वाले प्रोत्साहन किट का लाभ किसान लेते हैं, तो सरकार भी केंद्रों को अलसी जमा करने का लक्ष्य दे सकती है। कृषि विभाग इस बात को पहले ही कह चुका है कि अच्छी उपज होने पर हम फसल को उस स्थान तक भी पहुंचाने में मदद करेंगे, जहां उसका उत्पादन नगण्य जबकि मांग ज्यादा है।
गोबर की खाद है सर्वोत्तम -
जब कभी अलसी के बीजों को खेत में बोएं, उससे पहले खेत की गहरी जुताई कर लेनी चाहिए, बाद में गोबर की खाद मिट्टी में मिलाएं। रसायन में एनपीके का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी रोपाई अक्टूबर में की जाती है। तीन सिंचाई में अलसी तैयार हो जाती है। एक माह के अंतराल में इसको सींचा जा सकता है। अलसी उपज में भी बेहतर होती है। करीब 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर में उत्पादन होता है।
- शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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