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लता मंगेशकर ने दिवंगत गीतकार शैलेन्द्र की जयंती पर इस तरह दी श्रद्धांजलि

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मुंबई: आज दिवंगत कवि एवं गीतकार शैलेन्द्र को उनकी 97 वीं जयंती  मनाई जा रही है। इस मौके पर स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने शैलेन्द्र को उनकी जयंती पर याद किया है। उन्होंने दिवंगत शैलेन्द्र की जयंती पर एक वीडियो शेयर किया है, जो साल 1960 में आई फिल्म 'अनुराधा' के गीत 'जाने कैसे सपनो' का है। इस गीत को लता मंगेशकर ने गाया था, जबकि इस गीत को शैलेन्द्र ने लिखा था। आज उनके जयंती पर लता मंगेशकर ने इस गीत को ट्विटर पर फैंस के साथ साझा करते हुए लिखा-'नमस्कार। आज महान कवि और गीतकार शैलेन्द्र जी की जयंती है। मैं उनकी याद को विनम्र अभिवादन करती हूँ। शैलेन्द्र जी का लिखा पंडित रवि शंकर जी के संगीत में गाया ये मेरा बहुत पसंद का गीत आप सबके लिए !'

https://twitter.com/mangeshkarlata/status/1299985285334200320

बता दें,  जाने-माने गीतकार व कवि शैलेन्द्र का जन्म 30 अगस्त,1923 को रावलपिंडी में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण शैलेन्द्र का पूरा परिवार मथुरा आ गया। मथुरा में शैलेंद्र के बड़े भाई रेलवे में नौकरी किया करते थे। शैलेंद्र का बचपन मथुरा में ही बीता और स्कूली शिक्षा मथुरा के सरकारी स्कूल से हुई। उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई वहीं के राजकीय इंटर कॉलेज से की। शैलेन्द्र को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति देखते हुए जल्द ही शैलेन्द्र ने अपने परिवार का गुजर बसर करने के लिए मुंबई का रुख किया और मुंबई के माटूंगा रेलवे स्टेशन पर हेल्पर की नौकरी की।

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साल 1948 में शैलेन्द्र एक कवि सम्मलेन में कविता पाठ कर रहे थे। उस कवि सम्मलेन में मशहूर अभिनेता व निर्देशक राजकपूर भी मौजूद थे। राजकपूर उन दिनों फिल्म 'आग' की शूटिंग कर रहे थे। शैलेन्द्र की कविता सुनकर राजकपूर इतने खुश हुए कि उन्हें आग्रह किया कि वह अपनी कविता को उनके फिल्म के लिए लिखें लेकिन शैलेंद्र ने राजकपूर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और बोले- मैं अपनी कविता का कारोबार नहीं करता।

वक्त की नज़ाकत को कौन समझ सकता है। कुछ समय बाद हालात ऐसे पनपे कि शैलेंद्र की मां की अचानक तबियत खराब हो गई और उनके पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं थी। फिर शैलेंद्र राजकपूर के पास गए और 500 रुपये उधार मांगे। तब तक राजकपूर शैलेंद्र पर फिदा हो चुके थे। उन्होंने अपने फिल्म में शैलेंद्र से गीत लिखवाने का वादा किया था और इस तरह मां के कर्ज ने उन्हें गीतकार बना दिया। इसके बाद शैलेन्द्र ने राजकपूर की कई फिल्मों के लिए कई ख़ूबसूरत गीत लिखे। शैलेन्द्र के लिखे गीत आज भी काफी मशहूर हैं।

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उनके लिखे गीतों में आवारा हूं (श्री 420 ), मेरा जूता है जापानी (श्री 420 ), आज फिर जीने की (गाइड), दोस्त दोस्त ना रहा (संगम), कुछ सीखा हमने (अनाड़ी), किसी की मुस्कराहटों पे (अनाड़ी), सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है (तीसरी कसम) आदि शामिल हैं। शैलेन्द्र फिल्म तीसरी कसम के निर्माता भी थे। 14 दिसंबर, 1966 को शैलेन्द्र ने मुंबई में अंतिम सांस ली।