नई दिल्लीः भाद्रपद (भादो) माह में पड़ने वाली अमावस्या को कुशगृहिणी अमावस्या कहा जाता है। इस बार शनिवार का दिन होने से ये शनिश्चरी अमावस्या भी है, हालांकि यह अमावस्या शुक्रवार दोपहर से शुरू हो चुकी है और शनिवार को दोपहर 1.46 बजे तक ही है। हिंदू पंचांग के अनुसार भादों में शनिवार को अमावस्या का ये संयोग 14 साल बाद बना है। इससे पहले ऐसा संयोग 30 अगस्त 2008 को बना था और अब 23 अगस्त 2025 को बनेगा। इस बार शनि अमावस्या पर शिव योग और पद्म योग का संयोग भी बन रहा है।
आज है साल की अंतिम अमावस्या
भादों माह में आने वाली ये साल की अंतिम शनि अमावस्या रहेगी। शनिश्चरी अमावस्या के दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। यही वजह इसे खास बनाती है। शनिश्चरी अमावस्या पर दान करने से दरिद्रता दूर होती है। कष्टों का निवारण होता है।
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साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को कम करने को करें खास उपाय
शनि अमावस्या के दिन किसी भी शनिदेव के मंदिर में जाकर उन्हें शुद्धभाव के साथ सरसों का तेल अर्पित करें। साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलायें।
जिन लोगों की कुंडली में शनि साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव चल रहा है। उन्हें आज के दिन रुद्राक्ष की माला से ‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
शनि अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ में जल चढ़ाने से भी भगवान शनिदेव प्रसन्न होते है। इस दिन सुबह और शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलायें। इससे साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है।
साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को कम करने के लिए शनिवार के दिन भगवान की पूजा के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी भगवान शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
शनि अमावस्या के दिन दान करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन सरसों का तेल, उड़द दाल, लोहे की चीजें, काला वस्त्र, काला तिल आदि चीजों का दान करना चाहिए। इसके साथ ही शनिश्चरी अमावस्या के दिन चींटियों को आटा, शक्कर, काला तिल खिलाना चाहिए।
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