औरेयाः पंचनद धाम एक ऐसा स्थान जहां औरैया तथा इटावा, जालौन की सीमा पर बसा प्राचीन पंचनद धाम का इतिहास हजारों वर्षों से अधिक का है। वैसे देखा जाए यहां पर दर्जनों मंदिर हैं। इन मंदिरों से जुड़े अनेक इतिहास और पौराणिकताएं हैं। ऐसा ही यहां एक कर्णखेरा शिवालय मंदिर है। जहां दर्शन मात्र से काल सर्प दोष व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है और उसके जीवन में आ रही सभी बाधाएं भी स्वतः ही दूर हो जाती हैं। इस मंदिर का निर्माण संत बब्बनपुरी महाराज ने कराया था।
कर्णखेरा शिवालय मंदिर में छिपा है जीवन का सार
पंचनद (पांच नदियों के संगम) में पौराणिक कर्णखेरा शिवालय मंदिर में जीवन का सार छुपा हुआ है। मंदिर में स्थित शिवलिंग के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। मंदिर में शिवलिंग की विधिवत आराधना करने से भय, रोग, दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। भारतीय संस्कृति के अनुसार सामाजिकता और आध्यात्मिकता के साथ-साथ जीवन जीने की कला इस मंदिर में विद्यमान है। हजारों वर्ष पूर्व एक महान संत बब्बनपुरी महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। उस समय जगम्मनपुर नहीं बसाया गया था। उस समय सेंगर वंश के महाप्रतापी एवं रोज सवा मन सोना दान करने वाले राजा सिंह भूमि थे। गरीबों को सवा मन सोना दान करने की वजह से लोगों ने उन्हें महाभारत के राजा कर्ण की उपाधि दी थी और उनका नाम कर्ण पड़ गया था। राजा सिंह भूमिक संत बब्बनपुरी शिवजी के उपासक थे।
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मनमोहक है मंदिर की कलाकृति
इस मंदिर की कलाकृति मनमोहक है। मंदिर के पूर्व की ओर का मुख्य द्वार वैश्वीकृत शैली में बना हुआ है जिसके मध्यम में गर्भ गृह है। वर्तमान में देखरेख के अभाव में मंदिर प्रतिदिन जमींदोज होता जा रहा है। इस मंदिर की उच्च कला को देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। मंदिर के गर्भ के द्वार अनुचरों से अलंकृत है। मंदिर में सरस्वती-गणेश भगवान, नटराज नवग्रह तथा सप्त मातृकाओं की प्रतिमाएं भी सुशोभित हो रही हैं। गर्भगृह के बाहर हनुमान भगवान की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। मिथुन दृश्य तथा गजराज का भी मंदिर में शिल्पांकन है। देखरेख के अभाव में जर्जर मंदिर का शिखर वर्तमान में लगभग आधा जमींदोज हो चुका है।
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