नई दिल्लीः केन्द्र सरकार द्वारा मुनाफों के दावों के बावजूद भारतीय रेल घाटे से जूझ रही है। महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे को 26 हजार 338 करोड़ रुपए का पिछले एक साल में घाटा हुआ। माना जा रहा है कि रेलवे को इतिहास में पहली बार इतना घाटा हुआ है। रेलवे की मानें तो मंत्रालय के अनुसार 1,589 करोड़ रुपए का नेट सरप्लस दिखाया गया था, जो कि सीएजी की रिपोर्ट का अनुसार गलत साबित हुआ है। सीएजी ने मंगलवार 21 दिसंबर को रेलवे वित्त प्रतिवेदन पेश किया था।
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प्रतिवेदन के तीन अध्यायों में इसे 26,326.39 करोड़ रुपए का घाटा बताया गया है। समान्य तौर पर इसे ऐसे समझा जा सकता है कि साल 2019-20 में 100 रूपए कमाने के लिए रेलवे ने 114 रुपए के करीब खर्च किए, जबकि रेलवे विभाग की बैलेस सीट में इस वित्तीय वर्ष में परिचालन अनुपात 98.36 फीसदी अनुमानित बताया गया था। रेलवे ऋण की बात करें तो पहली बार 2019-20 में 25,730.65 करोड़ रुपये के ऋण शेष हैं, जो वित्तीय वर्ष 2019-20 में 95,217 करोड़ रुपये का पर अनुमानित था। रेलवे की कोयले के परिवहन पर भारी निर्भरता थी, जो 2019-20 के दौरान माल ढुलाई आय का लगभग 49 प्रतिशत थी।
थोक वस्तुओं की परिवहन पद्धति में किये गए बदलाव ने माल ढुलाई आय को काफी प्रभावित किया। वित्तीय वर्ष 2018-19 में 3,773.86 करोड़ रुपये की तुलना में 2019-20 में 1589.62 करोड़ रुपये का कारोबार रहा है। इसके साथ ही जानकारों का ये कहना है कि रेलवे ने सेवानिवृत्त कर्मियों की पेंशन व अन्य व्यय जोनल रेलवे के कुल व्यय (टोटल एक्सपेंडीचर) के बजाए केवल पेंशन फंड में दर्शाया गया। अगर इस हिसाब से रेलवे पेंशन व अन्य व्यय को कुल व्यय में दर्शाया जाता, तो रेलवे की बैलेंस शीट ऐतिहासिक रूप से पहली बार 26,326.39 करोड़ रुपये के घाटे में मानी जाती है।
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