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हरितालिका तीज शिव-पार्वती के अखंड जुड़ाव का प्रतीक, जानें इस पर्व की पौराणिक कथा

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नई दिल्लीः पति के दीर्घायु जीवन और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला व्रत हरितालिका तीज गुरुवार को पारंपरिक श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हरितालिका तीज के दिन महिलाएं स्नान ध्यान कर गौरी-शंकर की पूजा अर्चना कर अखंड सुहाग की कामना करती हैं। तीज को लेकर सभी विवाहित महिलाओं में उत्साह रहता है, लेकिन विवाह होने के बाद पहली बार तीज कर रही नवविवाहिता महिलाओं में इसका कुछ अलग ही उल्लास देखा जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला हरितालिका तीज के नाम से लोकप्रिय यह पर्व शिव-पार्वती के अखंड जुड़ाव का प्रतीक है। भगवान शंकर और पार्वती के मिलन के कई प्रसंग आज भी आदर्श हैं।

हरितालिका तीज की पौराणिक कथा
शिवपुराण से लेकर रामचरितमानस तक अनेक ग्रंथों में शिव और पार्वती को श्रद्धा और विश्वास की संज्ञा दी गई है। सती प्रसंग में अपनी जिद है लेकिन पार्वती के रूप में हर स्त्री सौभाग्यवती है। हरितालिका तीज का प्रसंग भी इसी से जुड़ा है। शिव पुराण की कथा के अनुसार सबसे पहले राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तीज किया था। उनके तप और आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने पत्नी के रूप में स्वीकार किया। कथा के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय में गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया, काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और कई वर्षों तक केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।

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इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती के विवाह का प्रस्ताव लेकर पिता हिमवान के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। सखी के पूछने पर पार्वती ने बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही है, जबकि उसके पिता विष्णु से विवाह कराना चाहते हैं। सहेली की सलाह पर पार्वती घने जंगल के गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाए और स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट होकर पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। तभी से यह व्रत का विधान चल रहा है तथा मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि और पूर्ण निष्ठा से व्रत करती है, वह अपने मन के अनुरूप पति और पति का दीर्घायु जीवन को प्राप्त करती है।

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