नई दिल्लीः गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु के बिना किसी क्षेत्र में ज्ञान सम्भव नहीं है। चाहे वह लौकिक जगत की बात हो या फिर पार लौकिक जगत की। गुरु जीवन को रोशनी से भर देता है। गुरु रूखे सूखे मरुस्थल रुपी जीवन को बगिया बना देता है। गुरु शब्द का अर्थ होता है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये। जो चेतना के बंद सभी द्वार खोल दे। जिसके स्पर्श मात्र से जीवन महक उठे। जीवन में सबसे पहले गुरु माता-पिता होते हैं। इसके बाद शिक्षा अध्ययन कराने वाला शिक्षक होता है। महाकवि तुलसी दास ने गुरु महिमा का वर्णन करते हुए कहा है, बिनगुरु भव निधि तरई न कोई, जिमि बिरंचि शंकर किमि होई।
आषाढ़ की पूर्णिमा को क्यों मनायी जाती है गुरू पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा आषाढ़ी को ही क्यों मनाई जाती है। इसके पीछे एक तथ्य छिपा हुआ है। गुरु के वचन शिष्य पर आषाढ़ के मेघ की तरह बरस कर उसके अंदर छिपे काले बादल छांट देता है। अंधेरी को चांदनी में बदल देता है। आषाढ़ी को आसमान में छाई काली घटाओं को देख साधक सहज ही गहन ध्यान में प्रवेश कर जाता है। यह दिन अपने-अपने गुरु को याद करने का दिन है। भगवान राम के सम्बंध में तुलसी दास ने कहा है कि ‘प्रातः काल उठि रघुनाथा। मात-पिता गुरु नामहि माथा।
यह भी पढ़ेंःदेश में स्वस्थ की तुलना में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या अधिक, 39,097 नए मामले मिलेगुरू पूर्णिमा पर पूजा की विधि प्रातःकाल के समय घर की सफाई करने के बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा की चैकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद गुरू व्यास, शुक्रदेव, शंकराचार्य को याद करके उनका आवाहन करें। इसके बाद ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र के उच्चारण के साथ ही पूजा करें।