उज्जैन: महर्षि पाणिनी संस्कृत वैदिक विवि का दीक्षान्त समारोह शुक्रवार दोपहर में राज्यपाल मंगुभाई पटेल के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। राज्यपाल पटेल ने समारोह में विवि के 11 पीएचडी धारकों तथा 34 विद्यार्थियों को पदक प्रदान किए।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत भाषा में भारत की आत्मा बसती है। संस्कृत ज्ञान को प्रचारित प्रसारित करना विश्व के कल्याण की दिशा में एक कदम है। संस्कृत ज्ञान विज्ञान की भाषा रही है। आर्यभट्ट, वराहमिहीर, सुश्रुत एवं चरक ने अपने मूल्यवान ग्रंथों की रचना देव भाषा संस्कृत में ही की थी। संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा में ज्ञान-विज्ञान को संरक्षित करने का दायित्व पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय का है। हमारा देश विश्व को एक कुटुंब मानता है। भारत के धर्म ग्रंथ विश्व के धर्म ग्रंथों के मूल में है। हमें सभी क्षेत्रों में संस्कृत को लेकर जाना है।
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि विक्रम की नगरी संस्कृत की शिक्षा के लिए जानी जाती है। जीवन में अमृत का संचार शिक्षा के माध्यम से ही होता है। सारे धन एक तरफ, विद्या एक तरफ, सबसे बड़ा धन उन्होंने कहा कि देव भाषा संस्कृत में कई संभावनाएं छिपी हुई है। प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन व रिसर्च करने के लिए पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय को आवश्यक धनराशि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा उपलब्ध करवाई जाएगी।
विशेष अतिथि संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति डॉ. आचार्य श्रीनिवास बरखेड़ी ने कहा कि संस्कृत भाषा तथा शास्त्र के संवर्धन तथा पोषण में महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय सर्वदा तत्पर है। भारत में जितने भी प्रान्त की भाषाएं हैं, उनकी मातृ स्वरूपा संस्कृत पाली और प्राकृत भाषा है। उसमें भी संस्कृत भाषा एक विशिष्ट स्थान को धारण करती है। देवभाषा के रूप में अलंकृत संस्कृत ज्ञान-विज्ञान की भी जननी है। नवीन शिक्षा नीति में संस्कृत का प्रथम चरण में स्थान है। संस्कृत विश्वविद्यालय अनेक शास्त्रों वाले विश्वविद्यालय की तरह विद्या विवेक में निपुण छात्रों का निर्माण कर रहा है।
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स्वागत भाषण में कुलपति आचार्य विजय कुमार सीजी ने कहा कि यह मध्य प्रदेश का एकमात्र संस्कृत विश्वविद्यालय है, जिसके कार्यक्षेत्र की सीमा सम्पूर्ण मध्य प्रदेश है। इस विश्वविद्यालय से वर्तमान में नौ शासकीय एवं 11 अशासकीय महाविद्यालय संबद्ध है।
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