लखनऊः नौकरियों में आरक्षण को लेकर खून-खराबा, तोड़फोड और आगजनी अब आम बात हो गई है। इसमें अगर कोई दोषी है तो वह प्रदेश सरकार है। हमारे यहां आरक्षण की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वह दशकों से समाज में जहर घोलती आई हैं। सरकारें नहीं सोच पाती हैं कि परीक्षा को सफल कराने के लिए किन-किन विकल्पों से गुजरा जाए। यही कारण है कि तमाम भर्ती प्रक्रियाओं के दौरान लोग मारपीट, तोड़-फोड़, आगजनी और हाईवे बंद करने पर उतर आते हैं। इस बार तो राजस्थान के डूंगरपुर में कई दिनों से लूटपाट भी हो रही है। तमाम ऐसी परीक्षाएं यूपी में भी हुई हैं, जो विवादों के चलते नतीजे तक नहीं पहुंच पाई हैं। राजस्थान में पिछले दिनों जो भी हुआ, उससे राज्यों को सीख लेने की जरूरत है। जिन कारणों से हिंसा और आगजनी हुई ? उसकी पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए प्रशासन और संबंधित विभाग को अपनी गलतियां सुधारनी ही होंगी। सरकार ने जब केंद्र से सैनिक सहायता मांगी, तब तक प्रदेश में बड़ा नुकसान हो चुका था।
आखिर ऐसा क्या हो गया कि लोग प्रदर्शन के दौरान हिंसक हो उठे। बताया जाता है कि डूंगरपुर में 12 अप्रैल 2018 को 5,431 पदों के लिए भर्ती निकली थी। इसमें एसटी को 45 प्रतिशत, एससी को 5 और सामान्य वर्ग को 50 फीसदी आरक्षण की बात कही गई थी। इस भर्ती में सामान्य वर्ग के लिए 2,721 पद थे। यह भर्ती शिक्षा विभाग की थी। सरकार का पक्ष है कि भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही ये बातें स्पष्ट कर दी गई थीं।
सामान्य कोटे में मांग रहे हैं जगह
जानकारों का कहना है कि आरक्षण के अनुपात में एससी और एसटी के छात्रों को 36 फीसदी नंबर पर्याप्त हैं। मगर सामान्य वर्ग के छात्रों को 60 फीसदी नंबर की सीमा निर्धारित थी। ऐसे में सामान्य वर्ग से 1,554 पद पर ही छात्र 60 फीसदी नंबर ला सके और 1,167 पद खाली रह गये। अब आदिवासी उम्मीदवारों का मानना है कि बाकी रह गए 1,167 पदों पर भी 36 फीसदी नंबर लाने वाले आदिवासियों को भर्ती किया जाए। यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा था कि सामान्य वर्ग के खाली पद भरने के लिए 60 फीसदी अंक जरूरी है।
गोली लगने से एक की मौत
प्रदर्शनकारी पिछले कई दिनों से उपद्रव कर रहे हैं। पिछले दिनों आंदोलनकारियों ने पूरे खेरवाड़ा इलाके को घेर लिया और कई होटल और मकानों में आग लगा दी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी। इसमें 17 साल के तरुण अहारी नाम के एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि करीब 5 लोग घायल हो गए हैं। कई दिनों से यहां आगजनी और मारपीट हो रही है तो प्रशासन ने सड़कों पर उतरने से मना क्यों नहीं किया। दिन में हंगामा तो होता ही रहा रात में इस तरह से तोड़-फोड़ की गई कि तमाम सरकारी और प्राइवेट संपत्ति को लाखों का नुकसान हुआ। आदिवासी आंदोलनकारियों ने 20 किलोमीटर से ज्यादा बड़ा इलाका अपने कब्जे में ले लिया है। जहां पर वो लूटपाट, आगजनी और तोड़-फोड़ कर रहे हैं। पिछले 7 घंटे से उदयपुर-अहमदाबाद हाईवे बंद है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र से रायपुर एक्शन फोर्स मांगी है।
दूसरे राज्यों से आए थे उपद्रवी
राज्य सरकार कह रही है कि उपद्रवी दूसरे राज्यों से आए थे। जब सरकार को यह पता चल ही गया था तो उसने बाहरी लोगों की संख्या बढ़ने क्यों दी ? डूंगरपुर बांसवाड़ा प्रतापगढ़ और उदयपुर में धारा 144 लगाते हुए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थी। स्थिति बहाल होने तक पूरे उदयपुर संभाग में पंचायत चुनाव भी रद्द रहेंगे। प्रशासन दावा कर रहा था कि भीड़ में कुछ बाहरी लोग घुस आए थे जो बातचीत नहीं होने दे रहे थे और बातचीत को हिंसा का रूप दे रहे थे। स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला है कि कुछ लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ से आए हैं क्योंकि उनकी भाषा यहां की स्थानीय भाषा नहीं है। यहां बड़ा सवाल यह है कि सरकार केवल राजनैतिक मोड़ पर खड़ी दिखेगी या वह कठोर निर्णय लेगी। प्रदर्शनकारियों ने बड़े पैमाने पर नुकसान किया और अदालत के आदेशों की अवहेलना भी की। वह लोग जिनका इस आदोलन से वास्ता नहीं है, उनका कहना है कि प्रशासन उपद्रवियों से पाई-पाई वसूले। वह लोग जो बाहरी थे, उन पर कठोर कार्रवाई भी होनी चाहिए।