नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पाया कि उपराज्यपाल केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से संबंधित सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक पर्यवेक्षण नहीं कर सकते हैं। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि उपराज्यपाल की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और चुनी हुई सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती हैं।
कोर्ट ने कहा कि नौकरशाह इस धारणा के तहत नहीं हो सकते कि वे मंत्रियों के प्रति जवाबदेह होने से अछूते हैं। यदि अधिकारी इस धारणा के तहत मंत्रियों को जवाब नहीं देते हैं, तो वे लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे। न्यायालय ने कहा कि दिल्ली विधान सभा के पास भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर दूसरी लिस्ट में सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है, लेकिन संसद ने दिल्ली के लिए सेकेंड लिस्ट और तीसरी लिस्ट विषयों पर विधायी शक्ति को निरस्त कर दिया है, जो इसकी अनूठी स्थिति को देखते हुए , यह अन्य केंद्र शासित प्रदेशों से अलग है। कोर्ट ने दोहराया कि उपराज्यपाल दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं।
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14 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने दिल्ली में अधिकारियों पर नियंत्रण के मुद्दे पर खंडित फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण द्वारा अलग-अलग फैसलों के बाद, इस मामले को 06 मई, 2022 को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया गया था।
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