सनातन धर्म में श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेष महिमा बताई गई है। स्कंद पुराण के अनुसार, जो मनुष्य भगवान श्री रामचन्द्रजी के द्वारा स्थापित रामेश्वर शिवलिंग का एक बार दर्शन कर लेता है, वह भगवान शंकर के सामुज्य स्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है। भारतवर्ष के दक्षिण भाग में समुद्र तट पर रामेश्वरम स्थान में यह परम पुण्यदायक स्थान स्थित है। सतयुग में दस वर्षों में जो पुण्य किया जाता है, उसी को त्रेता के मनुष्य एक वर्ष में सिद्ध करते हैं, वहीं द्वापर में एक मास और कलियुग में एक दिन में साध्य होता है। जो लोग भगवान रामेश्वर का दर्शन करते हैं, उनको वही पुण्य कोटि गुना होकर एक-एक पल में प्राप्त होता है, इसमें संदेह नहीं है। स्कंद पुराण के ब्राम्हखण्ड में वर्णित हैं कि रामेश्वर नामक महालिंग में सर्व तीर्थ, सम्पूर्ण देवता, ऋषि-मुनि तथा पितर विद्यमान है। जो एक समय, दो समय, तीनों समय अथवा सर्वदा ही मोक्ष दायक रामेश्वर नामक महादेव जी का स्मरण या कीर्तन करते हैं, वे पाप समूह से मुक्त हो जाते हैं और सच्चिदानन्दमय अद्वैत रूप साम्बशिव को प्राप्त होते हैं।
स्कंद पुराण में वर्णित है कि रावण के मारे जाने पर देवताओं और ऋषियों ने दशरथ नन्दन श्रीराम को आशीर्वाद देकर उनकी जय-जयकार की और अत्यंत संतुष्ट हो भगवान श्रीराम का स्तवन किया। तब श्रीरामचन्द्र जी उन देवताओं, वानर सैनिकों तथा सीता और लक्ष्मण के साथ लंका में विभीषण को राजा के पद पर अभिषिक्त करके पुष्पक विमान पर आरूढ़ हो गन्धमादन पर्वत पर आए। तद्नन्तर दण्डकारण्य में निवास करने वाले मुनि अगस्त्यजी को आगे करके कमलनयन जानकी-वल्लभ श्रीरामचन्द्र जी का दर्शन करने के लिए आए और उनकी स्तुति करने लगे। तद्नन्तर श्रीरामचन्द्र जी ने हाथ जोड़ प्रणाम कर के मुनियों से कहा- मुनिवरों ! इस समय आप लोगों से मैं कुछ पूछता हूँ, आप उसे विचार कर उत्तर दें।
ब्राम्हणों ! रावण के वध से मुझे जो पाप लगा है, उसका प्रायश्चित क्या है ? यह मुझे बताइए। मुनि बोले- सत्य की रक्षा का व्रत लेने वाले जगन्नाथ, आप समस्त संसार की रक्षा का भार वहन करने वाले हैं। सम्पूर्ण जगत के उपकार के लिए यहां शिवजी की आराधना कीजिए। गन्धमादन पर्वत का यह शिखर अतिषय पुष्यमय तथा मोक्ष देने वाला है। आप यहां लोकसंग्रह के लिए शिवलिंग की प्रतिष्ठा कीजिए। इससे रावण के मारने से होने वाला दोष भी दूर हो जाएगा। गन्धमादन पर्वत पर आपके द्वारा जिस शिवलिंग की स्थापना होगी, उसका दर्शन मनुष्यों को काशी-विश्वनाथ के दर्शन से कोटि गुना अधिक फल देने वाला होगा। इसके साथ ही वह शिवलिंग संसार में आपके ही नाम से ख्यातिलाभ करेगा, इसलिए रघुनाथजी आप शिवलिंग स्थापना के कार्य में विलम्ब न करें। मुनियों के ये वचन सुनगर जगत्पति श्रीरामचन्द्र जी ने लिंग स्थापना के लिए पुण्यकाल निश्चित किया, जो दो ही मुहूर्त में आने वाला था। उसे निश्चित करके उन्होंने हनुमान जी को शिवलिंग शिला ले आने लिए कैलाश पर्वत पर भेजा। वहां उन्हें लिंगरूपधारी महादेव जी का दर्शन नहीं हुआ। तब हनुमानजी ने महादेव जी को प्रसन्न किया और उनकी कृपा से शिवलिंग को प्राप्त किया। इतने में ही वहां तत्वदर्शी मुनियों ने जब यह देखा कि हनुमानजी अभी नहीं आए तथा स्थापना का मुहूर्त अब बीतने ही वाला हैं, तब उन्होंने परम बुद्धिमान श्रीरामचन्द्र जी से कहा श्री रामचन्द्रजी ! अब तो पुण्यकाल बीत रहा है, अतः जानकी ने जो लीलापूर्वक बालू का शिवलिंग बनाया है, उसी को इस समय स्थापित कर दीजिए। यह सुनकर श्रीरघुनाथजी ने शीघ्रतापूर्वक श्रीजानकी जी तथा मुनियों के सहित मंगलाचार आरम्भ किया और परम पुण्यमय शुभ मुहूर्त में गंधमादन पर्वत पर सेतु की सीमा में लिंगरूपधारी भगवान शिव की स्थापना की।
यात्रा मात्र से प्राप्त होता है अश्वमेध यज्ञ का पुण्य
उस समय लिंग में पार्वती सहित भगवान शंकर प्रत्यक्ष प्रकट हो गए थे। भगवान साम्बशिव ने सब लोगों को शरण देने वाले महात्मा रघुनाथजी को इस प्रकार वरदान दिया- राघवेन्द्र ! आपके द्वारा यहां स्थापित किए गए शिवलिंग का जो दर्शन करेंगे, वे महापातकों से युक्त होंगे, तो भी उनके पापों का नाश हो जाएगा। जैसे धनुष्कोटि में गोता लगाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार इस रामेश्वर लिंग के दर्शन से महापातक भी नष्ट हो जाएंगे। तत्तपश्चात् श्रीरामचन्द्र जी ने भगवान रामेश्वर के सामने नन्दिकेश्वर को स्थापित किया और अपने धनुष को कोटि (धनुष का एक छोर) से रामेश्वर शिव के अभिषेक के लिए धरती फोड़कर एक कुंड तैयार किया फिर उससे जल लेकर भगवान शंकर को स्नान कराया वही पुण्यमय तीर्थ ‘कोटि तीर्थ’ (धनुष्कोटि) के नाम से विख्यात हुआ। इस प्रकार रामेश्वर नाम शिवलिंग भगवान श्रीरामचन्द्र जी के द्वारा पूजित हुआ, उसके स्मरण मात्र से यमराज की पीड़ा नहीं प्राप्त होती। जो मनुष्य रामेश्वर नाम महालिंग के प्रति भक्ति भाव रखते हैं, उन लोगों के प्रणाम, स्मरण और पूजन में तत्पर रहने वाले मानव भी कभी दुःख नहीं देखते। करोड़ों जन्मों में किए गए जो कोई भी पाप है, वे भगवान रामेश्वर का दर्शन कर लेने पर तत्काल नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य रामेश्वर शिव के क्षेत्र की प्रसन्नतापूर्वक यात्रा करते हैं, उन्हें पग-पग पर अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है। श्री रामेश्वर महालिंग का दर्शन करने वाले पुरूष के दर्शन मात्र से दूसरे प्राणियों का पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। जो प्रातःकाल उठकर तीन बार ‘रामेश्वर’ शब्द का उच्चारण करता है, उसके पहले दिन का पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। यदि प्राण त्याग के समय मनुष्य भगवान रामेश्वर का स्मरण करें, तो फिर उसका जन्म नहीं होता। रामेश्वर महादेव सदा मेरी रक्षा कीजिए। इस प्रकार जो सदा उच्चारण करता है, वह कलियुग से पीड़ित नहीं होता।
जो रामेश्वर महालिंग को गाय के दूध से स्नान कराता है या उनके निमित्त दूध अर्पण करता है, वह अपनी 21 पीढ़ियों का उद्धार करके शिवलोक में पूजित होता है। रामेश्वर शिव को नारियल के जल से कराया हुआ स्नान ब्रह्महत्या आदि पापों का नाशक बताया गया है। ‘रामसेतु धनुष्कोटि में विराजमान भगवान रामेश्वर’ ऐसा उच्चारण करके मनुष्य जहां कहीं भी स्नान करे, सेतु-स्नान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य भगवान रामेश्वर के आगे प्रसन्नतापूर्वक दीपक अर्पण करता है, वह अविद्यामय अंधकार का भेदन करके प्रकाश स्वरूप सनातन ब्रह्म को प्राप्त होता है। भगवान रामेश्वर के उद्देश्य से जो थोड़ा भी आदरपूर्वक ‘दान’ किया जाता है, वह दाता को परलोक में अनंत फल देने वाला होता है। जो लाए हुए गंगाजल के द्वारा रामेश्वर महालिंग को स्नान कराता है, वह भगवान शिव के लिए भी आदरणीय हो जाता है। जब तक मृत्यु नहीं आती, जब तक बुढ़ापा का आक्रमण नहीं होता और जब तक सम्पूर्ण इन्द्रियां शिथिल नहीं हो जाती, तभी तक मोक्ष, भक्ति चाहने वाले मनुष्यों को सदैव भगवान रामेश्वर का वंदन, पूजन, चिंतन तथा स्तवन कर लेना चाहिए। परम दयालु भगवान रामेश्वर का जो भक्तिपूर्वक सदा दर्शन, भजन करते हैं, वे इस भूतल पर मनोवांछित फल प्राप्त करके सदा सुखी होते हैं और अंत में सनातन मोझ को प्राप्त होते हैं।
लोकेंद्र चतुर्वेदी ज्योतिर्विद